Chhattisgarh Election: बीजापुर विधानसभा सीट पर बराबर है BJP-कांग्रेस की जीत का स्कोर, दांव पर दोनों पार्टियों की प्रतिष्ठा

बात करें बीजापुर के सियासी समीकरण की तो पिछले चार चुनाव में यहां से जीत के अंक में भाजपा-कांग्रेस 2-2 की बराबरी पर है. लिहाजा 2023 का यह चुनाव दोनों ही राजनीतिक दलों के लिए ना सिर्फ महत्वपूर्ण हैं बल्कि प्रतिष्ठा भी दांव पर है.

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बीजापुर सीट पर बराबर है कांग्रेस बीजेपी की जीत का स्कोर

Chhattisgarh Assembly Election: लगभग 6562.48 वर्ग किमी में फैले बीजापुर विधानसभा में 7 नवंबर 2023 को प्रथम चरण में मतदान होना है, जिसमें कांग्रेस-भाजपा दो प्रमुख राजनीतिक दलों के अलावा सीपीआई, आप, बसपा भी मैदान में हैं. इसके अलावा सर्व आदिवासी समाज की तरफ से भी उम्मीदवार खड़े करने का ऐलान किया गया है. बात करें बीजापुर के सियासी समीकरण की तो पिछले चार चुनाव में यहां से जीत के अंक में भाजपा-कांग्रेस 2-2 की बराबरी पर है. लिहाजा 2023 का यह चुनाव दोनों ही राजनीतिक दलों के लिए ना सिर्फ महत्वपूर्ण हैं बल्कि प्रतिष्ठा भी दांव पर है.

पिछले चुनावी नतीजों पर गौर करें तो 2008 से बीजापुर की सत्ता पर काबिज हुई भाजपा आगे चलकर अपने परफॉर्मेंस को सहेज कर रखने में विफल रही. नतीजा यह रहा कि 2008 और 2013 में लगातार सिलसिलेवार जीत हासिल करने के बाद भी 2018 के चुनाव में भाजपा को करारी हार झेलनी पड़ी थी. 2008 से भाजपा से महेश गागड़ा ही उम्मीदवार बनते रहे हैं. एक दफा फिर भाजपा संगठन ने गागड़ा पर भरोसा जताते हुए उन्हें टिकट दिया है तो वहीं गागड़ा के लिए भी यह चुनाव उनके पॉलिटिकल करियर के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है.  चुनाव परिणाम ही उनके लिए आगे का रास्ता तय करेगा. हालांकि जीत की डगर इतनी आसान भी नहीं है. 

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कभी कांग्रेस का गढ़ था बीजापुर

2018 में बड़े मतों के अंतर से भाजपा को पटखनी देकर विधायक बने विक्रम मंडावी दोबारा कांग्रेस से उम्मीदवार बनाए गए हैं. कांग्रेस के लिए पिछले चुनाव का परिणाम ही इस चुनाव में जिला संगठन के लिए बूस्टर का काम करता दिख रहा है. निश्चित ही कांग्रेस जीत का सिलसिला बरकरार रखने के मकसद से अपनी ताकत झोकेंगी.

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बात करें परफॉर्मेंस में उतार-चढ़ाव की तो बीजापुर को कभी कांग्रेस का गढ़ कहा जाता था, लेकिन 2003 के बाद 2008 के चुनाव में 13.83 प्रतिशत से बढ़त बनाते हुए इस सीट पर भाजपा काबिज हुई.

2008 में भाजपा को जहां 45.95 फीसदी मत पड़े थे तो वहीं कांग्रेस को 21.84 प्रतिशत. जबकि 2003 में कांग्रेस को 23.12 और भाजपा को 26.63 मत पड़े थे.

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बीजेपी के सामने बड़ी चुनौती

2008 में एक बड़ी लीड लेने के बाद भाजपा के पक्ष में वोटिंग प्रतिशत का ग्राफ 2013 और फिर 2018 में लगातार गिरता चला गया या यूं कहे कि 2008 में जीत का स्वाद चखने के बाद भाजपा का प्रदर्शन लगातार कमजोर पड़ता गया. 2013 में भाजपा को 2008 के मुकाबले 4.13 फीसदी कम वोट मिले. इस बार भाजपा के पक्ष में 41.82 प्रतिशत मतदान हुआ था.

इसके बाद 2018 में यह अंतर और भी बढ़ गया, जिसमें 13.32 प्रतिशत के अंतर रहा. इस बार बीजेपी 28.5 प्रतिशत में सिमट गई तो वहीं कांग्रेस को 55.92 प्रतिशत मतदान के साथ बड़ी बढ़त मिली.

इस चुनाव में भाजपा के लिए इस बड़े अंतर को पाटना गागड़ा के लिए बड़ी चुनौती होगी. बहरहाल स्थिति तो 7 नवंबर को वोटिंग के बाद ही साफ हो पाएगी कि जनता आखिर किसके पक्ष में वोट करती है.