हिडमा,देवा,दामोदर,आज़ाद जैसे नक्सल कमांडर जहां फंसे हैं वहां कैसे हैं हालात? ग्राउंड पर पहुंचा NDTV

जब पूरा देश पहलगाम के आतंकियों और पाकिस्तान को सबक सिखाने की मांग कर रहा है ठीक उसी वक्त छत्तीसगढ़-तेलंगाना सीमा पर पांच हज़ार फीट ऊंची कर्रगुट्टा की वीरान पहाड़ी पर भारत का सबसे बड़ा सर्च ऑपरेशन चल रहा है. जहां 10 हजार जवान कई हत्याओं के मास्टरमाइंड और बेहद खतरनाक नक्सल कमांडरों हिडमा,देवा,दामोदर और आज़ाद की कहानी हमेशा के लिए खत्म करने की कोशिश में जुटे हुए हैं.

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Anti-Naxal operation: जब पूरा देश पहलगाम के आतंकियों और पाकिस्तान को सबक सिखाने की मांग कर रहा है ठीक उसी वक्त छत्तीसगढ़-तेलंगाना सीमा पर पांच हज़ार फीट ऊंची कर्रगुट्टा की वीरान पहाड़ी पर भारत का सबसे बड़ा सर्च ऑपरेशन चल रहा है. जहां 10 हजार जवान कई हत्याओं के मास्टरमाइंड और बेहद खतरनाक नक्सल कमांडरों हिडमा,देवा,दामोदर और आज़ाद की कहानी हमेशा के लिए खत्म करने की कोशिश में जुटे हुए हैं.आशंका है कि यहां 2000 नक्सली छुपे हुए हैं. NDTV ने वहीं पहुंच कर पूरे हालात का जायजा लिया. हमारी टीम ने एक करोड़ के इनामी हिडमा के गांव के अलावा भद्रकाली में भी हालात का जायजा लिया जिसे छत्तीसगढ़ में नक्सलियों का प्रवेश द्वार माना जाता है. 

कर्रेंगट्टा की ये वही पहाड़ी हैं जहां 10 हजार जवानों ने 2000 नक्सलियों को घेर रखा है.

हर चट्टान के नीचे IED और पगडंडी पर बारूदी सुरंग

कर्रगुट्टा की काली पहाड़ियों की हर चट्टान के नीचे IED और हर पगडंडी पर बारूदी सुरंग का खतरा है. इसके अलावा यहां ऊपर से नक्सली स्नाइपर भी नीचे से आने वाले किसी भी शख्स को निशाना बनाने के लिए तैयार बैठे हुए हैं. ऐसे मुश्किल लक्ष्य को साधने के लिए सुरक्षा बलों ने इतिहास का सबसे बड़ा ऑपरेशन शुरू किया है. जिसे नाम दिया गया है- ऑपरेशन संकल्प. यहां सुरक्षाबलों के निशाने पर है नक्सलियों का सर्वोच्च और सबसे खतरनाक संगठन- बटालियन नंबर 1. इसकी कमान खुद हिडमा के पास है. यहां  M-17 हेलिकॉप्टर जंगल की काली चादर के बीच नक्सलियों की तलाश कर रहे हैं. दूसरी तरफ नीचे जवान 44 डिग्री की गर्मी में पसीने से लथपथ ऊपर चढ़ रहे हैं. उनका सिर्फ एक कदम उन्हें मौत के मुंह में पहुंचा सकता है क्योंकि यहां हर कदम पर अदृश्य आईडी का खतरा है. 

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कर्रगुट्टा में है नक्सलियों की एक विशाल गुफा 

सुरक्षाबलों को कर्रगुट्टा की पहाड़ियों में एक विशाल गुफा मिली है. वो इतनी गहरी है कि हज़ारों लोगों को निगल जाए. इसमें से कोई गूंज नहीं लौटती.ये नक्सलियों के लिए एक प्राकृतिक क़िले का काम करता है.

हिडमा का पूर्वर्ती भी तो बदल गया है

ये भारत के नक्सल विरोधी इतिहास का सबसे बड़ा अभियान है.  280 किलोमीटर लंबे इस जंगल में अभी शिकारी कौन है और शिकार कौन ये समझना मुश्किल हो रहा है. दरअसल बस्तर की लड़ाई अब आख़िरी अध्याय में प्रवेश कर चुकी है _ कुछ माओवादी ढेर हो चुके हैं। लेकिन हिडमा? अब भी भीतर है. घिरा हुआ है.अब उसके पास सिर्फ दो रास्ते हैं— आत्मसमर्पण… या कर्रेंगट्टा की किसी चोटी पर चलती गोली का शिकार होना.हम उसकी जन्मभूमि पुर्वर्ती गांव भी पहुंचे. एक साल पहले तक यहां आना नामुमकिन था.  लेकिन फरवरी 2024 में सीआरपीएफ कैंप बनने के बाद डर कम होने लगा है. अब यहां रोशनी, सड़क और स्कूल हैं. हिडमा यहीं पला-बढ़ा लेकिन अब वो बटालियन -1 का कमांडर है. नक्सलियों की सेंट्रल कमिटी का सदस्य है. 

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नक्सली हिडमा का घर जो अब खंडहर में तब्दील हो चुका है.

भद्रकाली में डर अब इतिहास बन रहा है

कहा जाता है कि किसी भी युद्ध का अंत जानने से पहले उसकी शुरुआत समझनी होती है. इसलिये हम सीमा पर बसे गांव भद्रकाली आए.ये वो गाँव है जहाँ से नक्सलवाद ने छत्तीसगढ़ में प्रवेश किया.

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ये गांव बीजापुर और तेलंगाना के बीच बसा है. 90 के दशक से हर सुरक्षा एजेंसी की फाइल में इसका नाम लाल स्याही से दर्ज है. गाँव के प्रवेश द्वार पर एक पहाड़ी पर है माँ भद्रकाली का मंदिर. आज यहां भक्ति की गूंज है

… लेकिन कुछ साल पहले यहाँ से क्रांति की पदचाप गूंजती थी. यहां के पुजारी सुरे लक्ष्मी बताते हैं कि पहले यहां पूजा-पाठ भी मुश्किल था. यहां के जंगलों में बंदूक की गोलियों की गूंज हुआ करती थी. गाँव के सबसे बुजुर्ग रिटायर्ड पोस्टमैन — कुर्साम इंकैया के मुताबिक 1997-98 में भद्रकाली नक्सल गतिविधियों का गढ़ बन गया. तब यहां सड़क नहीं थी. उजाला नहीं था. सिर्फ़ विचारधारा थी — जो जंगल से फैल रही थी ... बैलगाड़ी से लोग आते- जाते थे. साल 2015 के बाद यहां सड़क आई. अब पिछले 5 सालों से यहां शांति है.  यहां के थाना इंचार्ज सत्यवादी साहू बताते हैं कि अब ये गांव अब सरकारी योजनाओं का लाभ पा रहा है. वो ज़मीन, जिसने कभी सरकार को ठुकरा दिया था अब उसका स्वागत कर रही है.  

बहरहाल कर्रेंगट्टा से भद्रकाली तक की इस यात्रा में NDTV की टीम ने देखा — कैसे एक राज्य अब डर के जंगल से निकलकर विकास की रोशनी की ओर बढ़ रहा है. लेकिन लड़ाई अब भी जारी है- 2026 का लक्ष्य — नक्सलवाद का अंत. दरअसल किसी भी चीज का अंत सिर्फ़ तारीख़ों से नहीं आता… वो आता है जब लोग फिर से भरोसा करना शुरू करें.जब गांव फिर से खुलकर सांस लें और जब डर, सिर्फ़ एक कहानी बनकर रह जाए. 

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