6 करोड़ के इनामी नक्सली भूपति का अतीत गजब है! दादा थे स्वतंत्रता सेनानी, खुद देखा था सेना में जाने का सपना

वेणुगोपाल उर्फ भूपति उर्फ सोनू दादा ने गढ़चिरौली में 15 अक्टूबर 2025 को जब CM देवेंद्र फडणवीस को अपना AK-47 सौंपा तो यह माओवादी आंदोलन के इतिहास में सबसे बड़े सरेंडर की घटनाओं में से एक बन गया. यह पहला मौका है जब प्रतिबंधित माओवादी संगठन के सर्वोच्च नीति-निर्धारक मंडल 'पोलित ब्यूरो' के किसी सदस्य ने इतनी बड़ी संख्या में कैडरों के साथ मुख्यधारा में वापसी की है.

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Bhupati Top Naxal Surrender: माओवादी संगठन के पोलित ब्यूरो सदस्य वेणुगोपाल उर्फ भूपति उर्फ सोनू दादा ने गढ़चिरौली में 15 अक्टूबर 2025 को जब CM देवेंद्र फडणवीस को अपना AK-47 सौंपा तो यह माओवादी आंदोलन के इतिहास में सबसे बड़े सरेंडर की घटनाओं में से एक बन गया. यह पहला मौका है जब प्रतिबंधित माओवादी संगठन के सर्वोच्च नीति-निर्धारक मंडल 'पोलित ब्यूरो' के किसी सदस्य ने इतनी बड़ी संख्या में कैडरों के साथ मुख्यधारा में वापसी की है. छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने इस घटना को 31 मार्च 2026 की समय सीमा में माओवाद हिंसा को समाप्त करने की दिशा में 'मील का पत्थर' बताया है. हालांकि इस खबर का सबसे बड़ा विरोधाभास वेणुगोपाल का अतीत है, जो देश की संवैधानिक व्यवस्था के प्रति उनके 50 साल के विद्रोह को और भी जटिल बना देता है.

सेना में जाने का था सपना, बन गया 'थिंक टैंक'

करीब 70 वर्ष के वेणुगोपाल को माओवादी संगठन का 'थिंक टैंक' माना जाता रहा है. संगठन का विस्तार करने और कैडर को लड़ाकू बनाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है.

दिलचस्प बात यह है कि करीब 50 साल तक देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा बने रहे वेणुगोपाल का बचपन में सपना सेना में जाकर देश की सेवा करना था. वेणुगोपाल से जुड़ी पुरानी कहानियों के मुताबिक साल 1966 में वो आंध्रप्रदेश के करीमनगर जिले के पेद्दापल्ली शहर में अपने बड़े भाई कोटेश्वरलु के साथ नियमित रूप से आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ) की शाखा में जाता था.

इसी शाखा में जब दोनों भाइयों से उनके जीवन के लक्ष्य के बारे में पूछा गया था तो दोनों ने ही बताया था- वे सेना में जाकर देश की सेवा करना चाहते हैं. यही बात दोनों ने अपने शिक्षक पिता और मंदिर के पुजारी वैँक्टेया मल्लोझला और मां मधुरम्मा को भी बताई. आजादी के आंदोलन में शामिल रह चुके वैँक्टेया के पिता यानी वेणुगोपाल के दादा भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रह चुके हैं. खुद वैंक्टेया कांग्रेस पार्टी से जुड़े थे और बेटों की इच्छा को जानकर बेहद खुश भी थे.

17 साल की उम्र में बना 'विद्रोही'

ऐसे सवाल ये है कि देशभक्ति के सपने देख रहा वेणुगोपाल की जिंदगी में बदलाव कैसे आया...कैसे वो माओवादियों का थिंक टैंक बन गया? तो इसका जवाब छुपा है 15 अगस्त 1973 की एक घटना में. हुआ यूं कि इन दिन उसके बड़े भाई कोटेश्वरलु ने देश की आज़ादी को 'झूठा' बताते हुए तिरंगे झंडे को जला दिया. तब वेणुगोपाल की उम्र करीब 17 साल थी. वो भी अपने बड़े भाई के विचारों से प्रभावित हुआ. इसके बाद 1974 में वेणुगोपाल ने रेडिकल स्टूडेंट यूनियन में सदस्यता ली और वह प्रतिबंधित माओवादी संगठन का हिस्सा बन गए. धीरे-धीरे उसका बड़ा भाई कोटेश्वरलु उर्फ किशन जी माओवादी संगठन के शीर्ष तीन नेताओं में शामिल हो गया. इसके बाद दोनों भाइयों ने कई बड़े वारदातों को अंजाम दिया.

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महासचिव न बन पाने की नाराज़गी

55 साल तक संगठन में रहने के बाद, वेणुगोपाल के आत्मसमर्पण के पीछे आंतरिक कलह को भी एक बड़ा कारण बताया जा रहा है. मई 2025 में महासचिव नंबाला केशव राव उर्फ बसवराजू के मारे जाने के बाद वेणुगोपाल को स्वाभाविक उत्तराधिकारी माना जा रहा था, लेकिन संगठन ने कमान तिरुपति उर्फ देव जी को सौंप दी. सूत्रों के मुताबिक इस निर्णय से वेणुगोपाल नाराज़ था. इन सबके बीच उसकी पत्नी तारक्का ने भी सुरक्षा एजेंसियों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया. इसी के बाद से वेणुगोपाल के लिए मुख्यधारा में वापसी का रास्ता और आसान हो गया.

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