Bastar Health Crisis: सोशल मीडिया पर वायरल हुए एक वीडियो ने बस्तर की स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोल दी है. वीडियो में कुछ ग्रामीण रात के अंधेरे में एक बेहोश महिला को कांवड़ (खाट पर लिटाकर) की मदद से अस्पताल ले जाते हुए दिखाई दे रहे हैं. महिला का नाम लखमे मरकाम है जो बस्तर जिले के चितालगुर पंचायत के आश्रित ग्राम गुड़ियापदर की रहने वाली है.
महिला के पति सुक्खा मरकाम ने बताया कि उनकी पत्नी गर्भवती थी, लेकिन रात में अचानक गर्भपात हो गया. गांव तक सड़क न होने के कारण एंबुलेंस का पहुंचना संभव नहीं था. पत्नी की गंभीर हालत को देखते हुए कांवड़ की मदद से उसे अस्पताल ले जाने का फैसला किया. इसके बाद दो घंटे से अधिक का पैदल सफर तय कर चितालगुर पहुंचे, जहां एंबुलेंस की व्यवस्था हुई. रात लगभग एक बजे पत्नी को डिमरापाल मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भर्ती कराया. महिला की हालत गंभीर बनी हुई है.
हैरान की बात यह है कि ये कोई पहला मामला नहीं है. बस्तर संभाग के सुकमा, बीजापुर और नारायणपुर जैसे जिलों से ऐसे मामले अक्सर सामने आते रहते हैं. लेकिन, प्रशासनिक अधिकारी इस ओर ध्यान नहीं देते. सरकार की ओर से बस्तर जिले को नक्सल मुक्त माना जाता है, ऐसे में विकास के आभाव का दोष अधिकारी माओवादियों पर भी नहीं मढ़ सकते. ऐसे में यह वीडियो सरकार के विकास और स्वास्थ्य सुविधाओं के दावों पर सवाल खड़े करती है.
गांव में सड़क नहीं, स्वास्थ्य सेवाएं ठप
पीड़िता के पति सुक्खा मरकाम ने बताया कि उनके गांव तक कोई पक्की सड़क नहीं है. हर साल बारिश में स्थिति और खराब हो जाती है. सड़कों के अभाव में न ग्रामीण सही समय पर अस्पताल पहुंच पाते हैं और न ही सरकारी सुविधाएं गांव तक आ पाती हैं. सड़क न होने के कारण गांव में कोई महिला स्वास्थ्य कर्मी नहीं पहुंच पाती. गर्भवती महिलाओं की समय-समय पर जांच नहीं हो पाती और न ही नवजात बच्चों के लिए कोई उचित मार्गदर्शन मिलता है. सुक्खा ने बताया कि उनकी पत्नी का यह दूसरा गर्भपात है. गांव की दो अन्य महिलाएं भी असमय गर्भपात का शिकार हो चुकी हैं.
गांव से 35 किलोमीटर दूर अस्पताल
गुड़ियापदर के ग्रामीणों के अनुसार, उनका गांव कई बुनियादी सुविधाओं से वंचित है. यह गांव एफआरए दर्जा प्राप्त है, लेकिन यहां तक पहुंचने के लिए पेंगारास गांव से कच्चे रास्ते से होकर आना पड़ता है. गांव में आंगनबाड़ी, सड़क और बिजली जैसी सुविधाएं नहीं हैं. केवल क्रेडा की ओर से सोलर प्लेट्स लगाई गई हैं. स्वास्थ्य विभाग की सेवाएं ग्राम चितालगुर तक ही सीमित हैं, जिसके कारण गर्भवती महिलाओं को वहां तक पैदल जाना पड़ता है. इस दूरी को तय करने में करीब दो घंटे लगते हैं. सबसे नजदीकी अस्पताल गांव से 35 किमी दूर है.
मेडिकल कॉलेज में भी परेशानी
घंटों पैदल चलने और एंबुलेंस की मदद से डिमरापाल मेडिकल कॉलेज पहुंचने के बाद भी सुक्खा की परेशानियां खत्म नहीं हुईं. गर्भपात के कारण उनकी पत्नी का अत्यधिक रक्तस्राव हो गया था, जिसके लिए उन्हें अस्पताल में खून की व्यवस्था के लिए भटकना पड़ा. डॉक्टरों द्वारा लिखी दवाएं भी बाहर से खरीदनी पड़ीं, जिनकी कीमत काफी ज्यादा थी. यह समस्या केवल सुक्खा मरकाम की नहीं, बल्कि बस्तर के सैकड़ों आदिवासी परिवारों की है जो अंदरूनी इलाकों से इलाज के लिए मेडिकल कॉलेज पहुंचते हैं.
ये भी पढ़ें: कुशवाहा के फेक AI तस्वीर से बढ़ा विवाद, धोने पड़े शराब बेचने वाले ब्राह्मण युवक के पैर? दमोह कांड की पूरी कहानी
ये भी पढ़ें: 'जिसकी लाठी उसकी भैंस', हरदा का PM कॉलेज बना राजनीति का अखाड़ा, अतिथि विद्वान को बनाया 'तमाशा'; जानें मामला
ये भी पढ़ें: दिवाली से पहले पं. धीरेंद्र शास्त्री का 'बयान बम', कहा-पटाखों पर ज्ञान न दें, हम बकरीद पर नहीं देते, हम तो...