बस्तर में 20 दिनों से मोर्चरी में रखा है पादरी का शव, गांव वालों ने दफनाने से रोका, सुप्रीम कोर्ट ने दिया ये फैसला

CG News: छत्तीसगढ़ के बस्तर में 7 जनवरी से शवगृह में पड़े होने पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला लिया है. आइए जानते हैं सुको ने इस मामले में क्या कहा? 

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पादरी का शव 20 दिनों से मोर्चरी में रखा हुआ है.

Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ के बस्तर के एक गांव में 20 दिनों से पड़े शव को दफनाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है. कोर्ट ने कहा है कि शव को 20 किलोमीटर दूर करकवाल के कब्रिस्तान में दफनाया जाएगा. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में दोनों जजों की राय बंटी है. दोनों जजों का अलग-अलग फैसला है.हालांकि दोनों जजों ने तीन जजों की बेंच के गठन के लिए मामले को अभी नहीं भेजा है. 

ये है पूरा मामला 

दरअसल बस्तर के दरभा ब्लॉक के छिंदावाड़ा गांव में रहने वाले एक ग्रामीण की मौत 7 जनवरी को हुई थी. ग्रामीण के बेटे रमेश बघेल का आरोप है कि उनके पिता का शव 20 दिनों से एक शवगृह में रखा हुआ है.

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रमेश का आरोप है कि उनके ईसाई धर्म अपनाने की वजह से पैतृक गांव छिंदावाड़ा के ग्रामीणों ने अंतिम संस्कार की अनुमति देने से इनकार कर दिया था. इस मामले को लेकर रमेश 7 जनवरी से अब तक स्थानीय प्रशासन,छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक जा चुके हैं .

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सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने 20 जनवरी, सोमवार को सुनवाई के दौरान कहा कि "हमें बहुत दुख है कि एक व्यक्ति को अपने पिता को दफनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट आना पड़ा. 

जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा कि याचिकाकर्ता के पिता के शव को अपनी निजी कृषि भूमि पर दफनाना जाए.जबकि जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने इससे असहमति जताई और कहा कि कब्रिस्तान सिर्फ 20 किलोमीटर दूर है. ऐसा कोई कारण नहीं है कि बिना शर्त के दफ़न करने का अधिकार होना चाहिए. भ्रमपूर्ण अधिकार से सार्वजनिक व्यवस्था में व्यवधान उत्पन्न हो सकता है.सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखना समाज के व्यापक हित में है.

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मृतक के परिवार के लिए 20 किलोमीटर दूर स्थित मैदान में उचित स्थान चिन्हित किया जाए और शव को शवगृह से ले जाने और दफनाने के लिए सभी परिवहन की व्यवस्था की जाए. सभी प्रकार की पुलिस सुरक्षा दी जाए. कानून-व्यवस्था से संबंधित कोई समस्या उत्पन्न न हो, यह सुनिश्चित किया जाए.

जस्टिस बीवी नागरत्ना ने अपने फैसले में ये कहा 

जस्टिस बीवी नागरत्ना ने अपने फैसले में कहा कि याचिकाकर्ता के पिता के शव को अपनी निजी कृषि भूमि पर दफनाया जाए. पुलिस और सरकार इसके लिए पर्याप्त सुरक्षा मुहैया कराएं. SP द्वारा यह घोषणा कि धर्म परिवर्तन करने वाले व्यक्तियों को दफनाया नहीं जा सकता,कानून के समक्ष समानता,धर्म के आधार पर उल्लंघन है.उन्होंने कहा कि जो मामला सौहार्दपूर्ण तरीके से सुलझाया जा सकता था,उसे प्रतिवादी ने अलग रंग दे दिया है. इससे यह आभास होता है कि कुछ वर्गों के साथ भेदभाव किया जा सकता है.

जस्टिस बीवी नागरत्ना ने ये भी कहा कि उच्च स्तर पर इस तरह का रवैया धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के साथ विश्वासघात करता है. ASP के  हलफनामे में कहा गया है कि धर्मांतरित ईसाई को वहां दफनाने की अनुमति नहीं दी जा सकती.

यह दुर्भाग्यपूर्ण है और अनुच्छेद 21 और 14 का उल्लंघन करता है . धर्म के आधार पर भेदभाव को बढ़ावा देता है.राज्य कानून के समक्ष समानता से इनकार नहीं कर सकता है. अनुच्छेद 15 के तहत धर्म, लिंग, जाति आदि के आधार पर भेदभाव का निषेध है. ग्राम पंचायत का रवैया शत्रुतापूर्ण भेदभाव को जन्म देता है.ASP बस्तर ऐसा हलफनामा कैसे दे सकते हैं और इसके लिए कौन सा प्राधिकारी जिम्मेदार है? यह धर्मनिरपेक्षता के उदात्त सिद्धांत के साथ विश्वासघात है. 

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फैसले में ये भी कहा

धर्मनिरपेक्षता भाईचारे के साथ सभी धर्मों के बीच भाईचारे का प्रतीक है और हमारे देश के सामाजिक ताने-बाने के लिए आवश्यक है और विभिन्न वर्गों के बीच भाईचारे को बढ़ावा देना हमारा कर्तव्य है. ग्राम पंचायत ने शव को दफनाने का अपना कर्तव्य पूरा नहीं किया. जिसके कारण अपीलकर्ता और उसके परिवार का सामाजिक बहिष्कार हुआ.यह देखते हुए कि शव 7 जनवरी से मुर्दाघर में है, यह उचित और न्यायसंगत है कि उसे सम्मानजनक तरीके से अंतिम संस्कार दिया जाए. 

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