Chhattisgarh: पिछले 20 साल में 1250 से ज्यादा जवानों ने दी कुर्बानी, इन इलाकों में अब 'Gun' नहीं 'गणतंत्र' हुआ हावी

Naxal in Bastar: बस्तर में नक्सलियों के गढ़ में सड़कें और पुल बनाई जा रही हैं, विकास के वो हर काम हो रहे हैं जिनसे वर्षों से बस्तर अछूता रहा है. नक्सलियों के चंगुल से बस्तर के कई इलाकों को मुक्त कराना सरकारों के लिए आसान नहीं रहा है. इसके लिए कई माताओं के लाल छीने, कई महिलाओं का सुहाग उजड़ा तो कई मासूमों के सिर से पिता का साया उठा.

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नक्सलियों के गढ़ में जवानों की मौजूदगी में सड़कों का जाल बिछ रहा है.

Republic Day Special: छत्तीसगढ़ के बस्तर के इलाके नक्सलियों के चंगुल से मुक्त हो रहे हैं. यहां अब "गन" नहीं बल्कि "गणतंत्र" हावी हो रहा है. बस्तर के इलाकों में अमन, चैन, शान्ति लाने के लिए 20 सालों में 1250 से ज्यादा जवानों ने अपने जान की कुर्बानी दी है. तब जाकर बस्तर के कुछ इलाकों में नक्सलवाद कमजोर पड़ा है और ग्रामीण गणतंत्र और आजादी के पर्व का जश्न खुलकर मनाते हैं.   

तिरंगा फहराने भी रोकते थे 

बता दें, बस्तर के कई इलाकों में राष्ट्रध्वज नहीं फहराया जाता था, यहां नक्सलियों की सरकारें चलती थी. तिरंगा फहराने वालों की पिटाई, जान से मारने और काटने तक की धमकी मिलती है. इसी भय से कई इलाकों में गणतंत्र और आजादी का जश्न ग्रामीण नहीं मना पाते हैं. लेकिन जवानों की दखल के बाद जैसे-जैसे यहां नक्सलवाद कमज़ोर पड़ रहा है, ग्रामीण खुलकर आजादी और गणतंत्र पर्व का जश्न मनाने लगे हैं. बस्तर के चांदामेटा, अबूझमाड़ नदी पार के चेरपाल, पाहुरनार, मारजूम, पोटाली, चिकपाल जैसे दर्जनों गांवों में एक साल से ग्रामीण आजादी और गणतंत्र पर्व का जश्न खुलकर मनाने लगे हैं. हालांकि अब भी कई इलाकों में नक्सलियों का खौफ अब भी है.

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एक साल में 200 जवानों की हुई थी शहादत 

बस्तर में साल 2007 सबसे बड़ी नक्सली घटना हुई थी. यहां रानी बोदली में नक्सलियों ने सुरक्षाबलों के कैंप पर हमला किया था. जवानों ने भी नक्सलियों का मुंहतोड़ जवाब दिया था. नक्सलियों से मुकाबला करते हुए जवानों की गोलियां खत्म हो गई थी. इसके बाद नक्सली सुरक्षा बलों के कैंप में घुस गए और पेट्रोल बम दागना शुरू कर दिया. नक्सलियों से बहादुरी से लोहा लेते हुए 55 जवानों की शहादत हुई थी. छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद यह पहली सबसे बड़ी घटना थी. इसी साल कई नक्सल घटनाएं और हुईं. साल 2007 में ही 200 जवानों ने अलग-अलग घटनाओं में अपने जान की कुर्बानी दी थी. 

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इन घटनाओं ने देश को सबसे ज्यादा रुलाया 

बस्तर के इलाकों में विकास के काम करवाना बड़ी चुनौती रही है. इसी कामों में सुरक्षा दे रहे जवानों पर नक्सलियों ने हमला किया है. साल 2010 में ताड़मेटला में देश की सबसे बड़ी नक्सल घटना हुई थी. जिसमें 76 जवानों की शहादत हुई थी. साल 2010 में चिंगावरम में एक बस को नक्सलियों ने आईईडी ब्लास्ट कर उड़ाया था. इस घटना में 20 जवान शहीद हुए थे. सुकमा के टाहकवाड़ा में 16 जवानों की शहादत हुई थी. सुकमा जिले के बुरकापाल में हुए हमले में 25 जवान शहीद हुए थे. सुकमा के चिंतागुफा इलाके में 17 जवानों की शहादत हुई थी. बीजापुर के टेकलगुड़ा में 22 जवान शहीद हुए थे. इन घटनाओं देश को सबसे ज्यादा रुलाया था. 

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बस्तर के इन इलाकों में अब डटे हैं जवान 

बस्तर के कमारगुड़ा, टेटम, पोटाली, छिंदनार, बड़े करका, चिक्पाल, बोदली, मालवाही, कडियामेता, जगरगुण्डा जैसे कई धुर नक्सल इलाकों में सुरक्षा बलों के कैंप खुले हैं. इन इलाकों में तैनात जवान नक्सलियों से लोहा लेकर उनके छक्के छुड़ा रहे हैं. यहां कैंप खुलने का ही नतीजा है कि इन इलाकों में अब विकास दस्तक देने लगा है. 

कराएंगे नक्सलवाद से मुक्त 

बस्तर के IG पी सुंदरराज ने कहा कि बस्तर के कई इलाकों में सुरक्षाबलों का कैम्प खुला है. हमारे जवान मुस्तैद होकर नक्सलियों से लोहा ले रहे हैं. इन इलाकों में अब विकास के काम हो रहे हैं. ग्रामीण अब बिना डरे राष्ट्रध्वज फहराते हैं. नक्सलवाद की जड़ें कमज़ोर हुई हैं. नक्सलवाद के खात्मा के लिए आगे भी हमारे जवान मुस्तैदी से काम करते रहेंगे. 

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