कभी नक्सलियों का अड्डा… अब सुरक्षा बलों का ठिकाना: अबूझमाड़ के काकुर में तेजी से बदल रहे हालात

अबूझमाड़ के काकुर में सुरक्षा बलों द्वारा स्थापित नया security camp नक्सल प्रभावित इलाके के लिए बड़ी बदलाव की शुरुआत है. नारायणपुर पुलिस, DRG और BSF की संयुक्त कार्रवाई ने anti-naxal operations को मजबूती दी है. पिछले दो वर्षों में 20 से अधिक माओवादी मारे गए, जिससे Maoist stronghold पूरी तरह कमजोर पड़ा.

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Narayanpur Maoist Operations: छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले का अबूझमाड़ क्षेत्र, जिसे कभी नक्सलियों का अभेद्य गढ़ माना जाता था, आज तेजी से बदल रहा है. घने जंगलों और कठिन पहाड़ियों के बीच बसा यह इलाका अब सुरक्षा और विकास की नई कहानी लिख रहा है. जहां कभी कम्पयू नंबर 10 के नक्सली लीडरों का दबदबा था, वही काकुर आज पुलिस और अर्धसैनिक बलों के मजबूत सुरक्षा कैंप का स्थायी ठिकाना बन चुका है. यह बदलाव सिर्फ सुरक्षा तक सीमित नहीं, बल्कि विकास की बुनियाद भी मजबूत हो रही है.

काकुर में स्थापित हुआ नया सुरक्षा कैंप

नारायणपुर पुलिस, DRG और BSF की 86वीं बटालियन ने संयुक्त रूप से अबूझमाड़ के काकुर गांव में नवीन सुरक्षा एवं जनसुविधा कैंप स्थापित किया है. यह वही क्षेत्र है, जहां कभी नक्सलियों का दबदबा था और कम्पयू नंबर 10 के बड़े माओवादी लीडर काम करते थे. पिछले दो वर्षों में काकुर और परियादी जंगलों में 20 से अधिक माओवादी मारे जा चुके हैं, जिससे नक्सलियों की पकड़ कमजोर हुई है.

दुर्गम यात्रा के बाद पहुंची टीम

NDTV की टीम नारायणपुर मुख्यालय से लगभग 62 किलोमीटर की लंबी और कठिन यात्रा तय कर काकुर पहुंची. रास्ता बेहद संकरा, ऊबड़-खाबड़ और घने जंगलों से गुजरने वाला था. गांव का नाम नक्शे पर होने के बावजूद वहां पहुंचने पर सिर्फ गहरा सन्नाटा, ऊंचे बांस के जंगल और नया सुरक्षा कैंप ही नजर आया.

कैंप के भीतर सुरक्षा तैयारियां

कैंप में जवान अलग-अलग जिम्मेदारियों में लगे थे. कहीं फेंसिंग का काम चल रहा था तो कहीं सुरक्षात्मक मोर्चों पर जवान तैनात थे. कैंप के बाहर पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए बोर खनन भी चल रहा था. सबसे दिलचस्प दृश्य वे अस्थायी तंबू थे जो पहले नक्सलियों द्वारा प्रशिक्षण कैंपों में इस्तेमाल किए जाते थे. लेकिन अब इन्हीं जंगलों में उन्हीं तंबुओं के सामने पुलिस के जवान तैनात हैं—यह बदलाव की सबसे बड़ी तस्वीर है.

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काकुर–परियादी क्षेत्र में नक्सली गतिविधियों को बड़ा झटका

काकुर और उसके आसपास का इलाका कभी नक्सलियों की मजबूत पकड़ वाला माना जाता था. यहां से पूरे बस्तर में आतंक फैलाया जाता था. लेकिन दो वर्षों में हुए लगातार ऑपरेशनों में 20 से अधिक माओवादी मारे गए. सुरक्षा बलों की स्थायी मौजूदगी ने नक्सलियों की गतिविधियों को गहरा नुकसान पहुंचाया है.

‘माड़ बचाव अभियान' से मिल रही नई दिशा

नारायणपुर पुलिस अबूझमाड़ में ‘माड़ बचाव अभियान' चला रही है. इस अभियान के तहत उन दुर्गम गांवों में सुरक्षा कैंप खोले जा रहे हैं, जहां कभी माओवादी बेखौफ घूमते थे. काकुर में स्थापित नया कैंप नक्सल विरोधी अभियानों के साथ-साथ सोनपुर–गारपा–परियादी–काकुर मार्ग पर सड़क निर्माण सुरक्षा और ग्रामीण विकास कार्यक्रमों का केंद्र बन गया है.

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विकास कार्यों की रफ्तार तेज होने की उम्मीद

  • कैंप की स्थापना के बाद अबूझमाड़ के अंदरूनी इलाकों में विकास की उम्मीदें बढ़ी हैं.
  • गारपा मार्ग से लगभग 7 किलोमीटर सड़क निर्माण शुरू हो चुका है.
  • मोबाइल नेटवर्क लगाने की योजना पर काम आगे बढ़ रहा है.
  • शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार संभव हो रहा है.
  • पुल-पुलिया निर्माण और सरकारी योजनाओं की पहुंच बेहतर हो रही है.

पहली बार ग्रामीणों ने पुलिस और प्रशासन को अपने दरवाजे पर देखा है, जिससे उनमें सुरक्षा और विश्वास दोनों बढ़ा है.

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वरिष्ठ अधिकारियों की सतत निगरानी

इस अभियान की मॉनिटरिंग बस्तर रेंज के IG पी. सुन्दरराज, कांकेर रेंज के DIG अमित कांबले, नारायणपुर SP रोबिनसन गुरिया, BSF कमांडेंट कमल शर्मा, अनिल रावत, CAF सेनानी संदीप पटेल और जिले के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा की जा रही है. नारायणपुर DRG, बस्तर फाइटर और BSF की 86वीं और 133वीं वाहिनी इस कैंप की स्थापना में मुख्य भूमिका में रहीं.

2025 में कई महत्वपूर्ण कैंपों की स्थापना

साल 2025 में भी नारायणपुर पुलिस ने कई दुर्गम इलाकों—कुतुल, कोडलियर, बेडमाकोटी, पदमकोट, कान्दुलपार, नेलांगूर, पांगूड, रायनार, ईदवाया, आदेर, कुड़मेल, कोंगे, सितरम, तोके, जाटलूर, धोबे, डोडीमरका, पदमेटा और लंका में नए सुरक्षा कैंप शुरू किए हैं. परियादी में भी कैंप स्थापित किया गया है, जिससे नक्सली गतिविधियां तेजी से कमजोर हुई हैं.

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अबूझमाड़ में एक नई सुबह की शुरुआत

काकुर का नवीन कैंप अबूझमाड़ में हो रहे बड़े बदलाव का प्रतीक बन चुका है. जहां कभी नक्सलियों के प्रशिक्षण कैंपों से गोलियों की आवाजें आती थीं, अब वहां सुरक्षा बलों की मौजूदगी और विकास की गूंज सुनाई देती है. सड़कें बन रही हैं, पुल बन रहे हैं, और भविष्य इस इलाक़े के लिए एक नई रोशनी लेकर आता दिख रहा है.