Union Budget 2024: मंगलवार यानी 23 जुलाई को केन्द्र सरकार देश का आम बजट (General Budget 2024) पेश करेगी. जिससे आपको कई अहम सवालों के जवाब मिलेंगे..मसलन इसी से पता चलेगा कि देश में विकास की रफ्तार कैसी होगी? हमारी आपकी जेब पर बोझ बढ़ेगा या घटेगा? हमें इनकम टैक्स (income tax) में राहत मिली या नहीं, किस सेक्टर को किस मद में कितने पैसे मिले, आदि-आदि...लेकिन हममें से कई लोगों को बजट को समझने में दिक्कत आती है. इसकी एक बड़ी वजह है बजट से जुड़ी विशेष शब्दावली. बजट के दौरान कई ऐसे शब्दों का प्रयोग होता है जो आम लोगों को समझ नहीं आते. ऐसे में हम आपको बताने जा रहे हैं कुछ विशेष शब्दों के मायने आसान भाषा में...
सकल घरेलू उत्पाद (GDP)
बजट भाषण के दौरान अक्सर GDP यानी सकल घरेलू उत्पाद शब्द का जिक्र आता है. वित्त मंत्री इसका जिक्र करते हुए कई बड़ी बातें कहती हैं. दरअसल इसका मतलब है देश में किसी निर्धारित वक्त के दौरान वस्तु और सेवाओं के उत्पादन की कुल कीमत. हमारे देश में GDP का आकलन साल में चार बार होता है मतलब 3 महीने में एक बार. इसे ज्यादातर प्रतिशत में बताया जाता है. इससे पता चलता है कि देश की अर्थव्यवस्था का प्रदर्शन कैसा है. इसको ऐसे भी समझ सकते हैं कि यदि GDP का आंकड़ा बढ़ा है तो देश की आर्थिक सेहत अच्छी मानी जाएगी और आंकड़े गिरे हैं तो देश की इकॉनमी में गिरावट मानी जाएगी.
राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit)
फिजिकल डेफिसिट को हिंदी में राजकोषीय घाटा कहते हैं. आसान भाषा में इसका सीधा मतलब है- देश की सरकार की कुल आमदनी और कुल खर्च के बीच अंतर. उदाहरण के तौर पर केन्द्र सरकार ने पिछले वित्तीय वर्ष में कुल 27 लाख करोड़ करोड़ रुपये खर्च किए जबकि कुल आमदनी 17 लाख करोड़ रुपये ही हुए.(ये आंकड़े केवल समझने के लिए है) यानी राजकोषीय घाटा 10 लाख करोड़ हुआ. राजकोषीय घाटे की स्थिति तब उत्पन्न होती है जब सरकार अपने संसाधनों से अधिक खर्च कर रही होती है.
राजस्व घाटा (Revenue Deficit)
ये शब्द थोड़ा तकनीकी है. दरअसल सरकार को राजस्व यानी रेवेन्यू से होने वाली आय खर्च करने की तुलना कम हो तो इसे राजस्व घाटा कहा जाता है. आसान शब्दों में कहें तो सरकार को नियमित कर, शुल्क एवं ब्याज से जो आय होती है वो इसे वेतन, पेंशन, दफ्तरों के रखरखाव और सब्सिडी पर खर्च करती है. इसी आय और खर्च में यदि आय कम और खर्च ज्यादा हो तो इसे राजस्व घाटा कहते हैं. दूसरे शब्दों में कहें तो राजस्व से होने वाली आय यदि व्यय की तुलना में अधिक हो तो उसे राजस्व घाटा कहते हैं.
पूंजीगत खर्च (Capital Expenditure)
कैपिटल एक्सपेंडेचर यानी पूंजीगत खर्च...ये बड़ा अहम तथ्य है. ये वो रकम होती है जिसके जरिए सरकार इंफ़्रास्ट्रक्चर को बनाने या अधिग्रहण करने पर खर्च करती है. पूंजीगत खर्च के द्वारा सरकार देश में एयरपोर्ट, हाई-वे, फ्लाईओवर, जमीन, मशीनें और इमारतें वैगरह बनाती हैं. इसके अलावा सरकार यदि अपने उधार का भुगतान करती है तो उसे भी पूंजीगत खर्च के दायरे में ही रखा जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि इससे सरकार की भविष्य की देनदारियां कम होती हैं.
राजस्व व्यय (Revenue Expenditure)
रेवेन्यू एक्सपेंडेचर को हिंदी में राजस्व व्यय कहते हैं. इस मद में खर्च पूंजीगत खर्च से अलग होता है. इससे देश में किसी अचल संपत्ति का निर्माण नहीं होता है. उदाहरण के द्वारा समझाएं तो सरकार अपने लोगों के वेतन, पेंशन, अलग-अलग मंत्रालयों, विभागों और योजनाओं पर इसी मद से खर्च करती हैं.
लोक लेखा (Public Account)
दरअसल केन्द्र सरकार एक बैंकर के तौर पर भी कार्य करती है. मसलन- आम लोग प्रोविडेंट फंड्स, स्मॉल सेविंग्स और फंड डिपॉजिट में जो पैसे जमा करते हैं वो इसी पब्लिक एकाउंट में ही जमा होते हैं. इसे हिंदी में लोक लेखा कहा जाता है. इस एकाउंट में जमा रकम सरकार को निर्धारित समय के बाद इसे असल मालिकों को वापस देनी पड़ती है. इस खाते का गठन संविधान के अनुच्छेद 266 (2) के जरिए किया गया है.
प्रत्यक्ष कर (Direct Tax)
डायरेक्ट टैक्स यानी प्रत्यक्ष कर..ये ऐसे कर होते हैं,जिन्हें देश के नागरिकों से सीधे-सीधे वसूल किया जाता है. इसमें आयकर (Income Tax), कारोबार से कमाई पर टैक्स, शेयरों अथवा अन्य संपत्तियों से हुई कमाई पर लगने वाला टैक्स तथा संपत्ति कर आदि शामिल होते हैं. ये ऐसे अनिवार्य टैक्स होते हैं, जिन्हें देना नागरिकों के लिए बाध्यकारी है.
अप्रत्यक्ष कर (Indirect Tax)
इन डायरेक्ट टैक्स को हिंदी में अप्रत्यक्ष कर कहते हैं. ये वो टैक्स होते हैं जिन्हें आम नागरिक सीधे तौर पर जमा नहीं करता. इसे सरकारें अलग-अलग तरीके से वसूल करती हैं. जैसे आप बाजार से कोई उत्पाद खरीदते हैं.तो सरकार उस पर टैक्स वसूलती है. मसलन- कपड़े, जूते, किताब, पेन, किचन के सामान, घर के समान, कार आदि. ये कर भारत में उत्पादित, आयातित या नियार्तित उत्पादों पर लगाया जाता है. अप्रत्यक्ष करों में उत्पाद कर (Excise Duty) तथा सीमा शुल्क (Custom Duty) भी शामिल होते हैं.
इन्कम टैक्स (Income Tax)
आपकी आय होने पर आपकी आय में से ही वसूल किए गए टैक्स को आयकर या इन्कम टैक्स कहते हैं. इन्कम टैक्स की दो रिजीम, यानी व्यवस्था फिलहाल मौजूद हैं, जिनमें अलग-अलग आय स्लैब के आधार पर अलग-अलग दरों से इन्कम टैक्स वसबल किया जाता है.
समेकित निधि (Consolidated Fund)
कंसोलिडेटेड फंड को हिंदी में समेकित निधि कहते हैं. ये सरकार का सबसे महत्वपूर्ण फंड है. दूसरे शब्दों में कहें तो यह भारत सरकार द्वारा प्राप्त सभी राजस्व का भंडार है. इसमें आयकर, सीमा शुल्क, केंद्रीय उत्पाद शुल्क और गैर-कर राजस्व जैसे विभिन्न स्रोतों से हासिल आय शामिल है. खास बात ये है कि समेकित निधि से रकम का निष्कासन केवल संसद से अनुमति मिलने के बाद ही हो सकता है. इसका प्रावधान भारत के संविधान के अनुच्छेद 266(1) में दिया गया है. भारत में सभी राज्यों के पास अपनी समेकित निधि हो सकती है.
आकस्मिक निधि (Contingency Fund)
कंटीजेन्सी फंड यानी आकस्मिक निधि...इस फंड का निर्माण इमरजेंसी के लिए यानी आकस्मिक खर्चों के लिए किया जाता है. इस फंड से राशि को निकालने के लिए सरकार को संसद से स्वीकृति की जरूरत नहीं होती. सरकार इस तरह के फंड से निकाली गई राशि का इस्तेमाल भूकंप, बाढ़ और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे मसलों पर करती है. इस फंड से राशि निकालने के लिए सरकार को राष्ट्रपति से मंजूरी लेनी पड़ती है.
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