मध्यप्रदेश में आदिवासी समुदाय हर चुनाव में अपने वोटिंग का ट्रेंड बदल देता है, जानिए क्या कहते हैं आंकड़े?

वैसे तो छत्तीसगढ़-झारंखड में को आदिवासी बहुल राज्य समझा जाता है लेकिन सच ये है कि देश में सबसे ज्यादा आदिवासी आबादी (tribal population) मध्यप्रदेश में हैं. लिहाजा इन पर डोरे डालने के लिए BJP-काग्रेस (BJP-Congress)एड़ी-चोटी का जोर लगा रही हैं. लेकिन आंकड़े बताते हैं कि हर चुनाव में आदिवासी समुदाय का मन और मत बदलता रहता है.

विज्ञापन
Read Time: 15 mins

Madhya Pradesh Assembly Elections: वैसे तो छत्तीसगढ़-झारंखड में को आदिवासी बहुल राज्य समझा जाता है लेकिन सच ये है कि देश में सबसे ज्यादा आदिवासी आबादी (tribal population) मध्यप्रदेश में हैं. लिहाजा इन पर डोरे डालने के लिए BJP-काग्रेस (BJP-Congress) एड़ी-चोटी का जोर लगा रही हैं. दोनों ही प्रमुख पार्टियां मतलब बीजेपी और कांग्रेस अपने-अपने तरीके से आदिवासी समुदाय (tribal community) के लिए लुभावने वादे कर रही है. ऐसे में सवाल ये है कि राज्य की सियासत में आखिर आदिवासी समुदाय इतना अहम क्यों है?पहले ये जान लेते हैं कि आदिवासियों के संबंध में आंकड़े क्या कहते हैं. बता दें कि मध्यप्रदेश के 54 जिलों में 56 अनुसूचित जनजातियां हैं. इनमें छह आदिवासी समुदाय हैं- भील, गोड़, कोल, कुर्क, सहरिया और बैगा. राज्य में आदिवासियों की अनुमानित संख्या है-1.53 करोड़ मानी जाती है. सूबे में अनुसूचित जनजातियों के लिए 47 सीटें रिजर्व हैं. 

दरअसल मध्यप्रदेश में हर चुनाव में आदिवासी समुदाय अपना मन और मत बदलता रहा है. इसीलिए इस बार भी आदिवासियों को अपने पक्ष में करने के लिए बीजेपी और कांग्रेस तमाम लुभावने वादे कर रहे हैं. शिवराज से लेकर कमलनाथ बीते कई महीनों से लगातार आदिवासी बहुल इलाकों के दौरे पर हैं और उनसे संबंधित घोषणाएं कर रहे हैं.  क्या हैं वे इसे भी जान लेते हैं. 

Advertisement

 

 

अब ये तो 3 दिसंबर को ही पता चलेगा कि आदिवासी समुदाय ने किसके वादे पर यकीन जताया और किसके नहीं. वैसे ये कहना गलत नहीं होगा सूबे की सत्ता की चाबी आदिवासी समुदाय के पास भी है.

Advertisement

ये भी पढ़ें: मध्यप्रदेश में आदिवासी समुदाय: वोट और सीट भी ज्यादा पर उम्मीदवार बेहद कम ! जानिए क्या है आंकड़े

Advertisement