सशक्त नारी: खोल दी ऐसी बैंक जिसमें अफसर से लेकर चपरासी तक हैं महिलाएं, अब चल रही वीरांगना कैब

ग्वालियर की एक सामान्य महिला ने ऐसा कर दिखाया है. उन्होंने न केवल नारी सशक्तिकरण (Women Empowerment) का अनूठा उदाहरण पेश किया है बल्कि यह भी दर्शाया है कि अगर बुलंद इरादे हों तो आसमान में सुराग भी किया जा सकता है. जिस महिला ने महिलाओं के लिए एक बैंक (Women's Bank) खोली है, वे हैं ग्वालियर की अलका श्रीवास्तव. इनकी कहानी सुनकर हर कोई रोमांचित हो उठता है.

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International Women's Day 2024: 8 मार्च का दिन दुनिया भर में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (International Women's Day) के रूप में मनाया जाता है. ये खास दिन दुनिया भर की महिलाओं के अधिकारों और उपलब्धियों के सम्मान के रूप में याद किया जाता है. आज महिला दिवस (Women's Day) के मौके पर NDTV आपके लिए महिलाओं से जुड़ी कुछ खास कहानियां लेकर आया है. तो चलिए यहां पर हम ग्वालियर की एक कहानी आपके सामने प्रस्तुत कर रहे हैं, जहां महिलाओं के लिए कुछ करने का ऐसा जुनून देखने काे मिला कि एक महिला ने ऐसी बैंक (Bank) शुरु कर दी जहां चपरासी से लेकर अफसर तक सब महिलाएं हैं. उसके बाद अब महिलाओं के लिए वीरांगना कैब (CAB) भी शुरु करवा दी है.

Women's day : महिला सहकारी बैंक

कौन हैं वे महिला?

ग्वालियर की एक सामान्य महिला ने ऐसा कर दिखाया है. उन्होंने न केवल नारी सशक्तिकरण (Women Empowerment) का अनूठा उदाहरण पेश किया है बल्कि यह भी दर्शाया है कि अगर बुलंद इरादे हों तो आसमान में सुराग भी किया जा सकता है. जिस महिला ने महिलाओं के लिए एक बैंक (Women's Bank) खोली है, वे हैं ग्वालियर की अलका श्रीवास्तव. इनकी कहानी सुनकर हर कोई रोमांचित हो उठता है.

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Women's day : महिला सहकारी बैंक के अंदर का दृश्य

अलका श्रीवास्तव कहती है कि उन्होंने बचपन से ही महिलाओं की बदहाली देखी जिसकी वजह थी उनका आत्मनिर्भर न होना. जब वे शादी के बाद ससुराल पहुंची तब भी महिलाओं की हालत वैसी ही मिली. वे घर में काम करने आने वाली बाइयों (Maid) से बात क़रतीं तो चिंतित हो जाती थीं. क्योंकि ज्यादातर महिलाओं का मानना था कि महिला होने का अभिशाप उन्हें हमेशा झेलना पड़ेगा. उनके अंदर का जज्बा और जुनून मर चुका था. यह देखकर उन्हें बहुत पीड़ा होती थी. उनके मन में न केवल उनके (मेड के लिए) लिए कुछ करने की इच्छा थी, बल्कि वे कुछ ऐसा करके महिलाओं को दिखाना चाहती थीं कि जिससे उनका (महिलाओं का) हौसला वापस लौटे. इसके बाद उनमें यह विचार आया कि वे महिलाएं कुछ भी कर सकतीं हैं.

1997 में की थी लक्ष्मीबाई महिला नागरिक सहकारी बैंक की स्थापना

अलका श्रीवास्तव ने 1997 में लक्ष्मीबाई महिला नागरिक सहकारी बैंक (Laxmibai Mahila Citizen Cooperative Bank) की स्थापना की थी. तब उन्होंने तय किया कि इस बैंक में सारे कर्मचारी महिलाएं हों. संभवत यह प्रदेश का इकलौता बैंक है, जिसमें  मैनेजर से लेकर सुरक्षाकर्मी तक महिला ही हैं.

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लक्ष्मीबाई महिला नागरिक सहकारी बैंक की अध्यक्ष अल्का श्रीवास्तव महिला बैंक खोलने की वजह बताते हुए कहती हैं कि बचपन में लड़कियों के साथ परिवार, समाज और बाहर दोहरा व्यवहार देखने को मिला. स्कूल, कॉलेज में उनकी उपेक्षा तथा आर्थिक रूप से असहाय जैसी स्थिति देखने के कारण ही अल्का के मन में उन महिलाओं के लिए कुछ करने का विचार आया.

मजाक को बनाया मजाक

काफी मेहनत, होमवर्क और लाल फीताशाही से संघर्ष के बाद आखिरकार अल्का श्रीवास्तव ग्वालियर में महिलाओं को आर्थिक रूप से सक्षम करने के लिए प्रदेश के पहले महिला बैंक के रूप में वे बैंक स्थापित कर पायीं. तब कुछ लोगों ने मजाक भी उड़ाया कि बैंक का संचालन गुड्डा गुड़ियों का खेल नहीं है. लेकिन उन्होंने और उनकी टीम की इच्छाशक्ति ने उस मजाक को मजाक बनाते हुए बड़ी उपलब्धि हासिल की, क्योंकि आज यह बैंक दो दशक से भी कार्य कर रहा है. इसका टर्नओवर अब करोड़ों में है और अब इसका विस्तार भी शुरू हो चुका है. शहर के अलावा इस बैंक की एक शाखा डबरा कस्बे में भी शुरू हो चुकी है.

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Women's day : वीरांगना एक्सप्रेस में अलका श्रीवास्तव

अब वीरांगना एक्सप्रेस के जरिए महिलाओं द्वारा महिलाओं का ट्रांसपोर्ट

अलका श्रीवास्तव बताती हैं कि इसके बाद एक और विचार उनमें आया कि टैक्सी में पुरूष ड्राइवर के रहते महिलाएं अपने आपको सहज और सुरक्षित महसूस नहीं करती हैं. दिल्ली सहित अनेक शहरों में हुई घटनाओं ने महिलाओं के मन में और भी भय पैदा कर दिया है.

Women's day : वीरांगना एक्सप्रेस

अलका कहती है कि मैंने सोचा कि क्यों न ऐसी  टैक्सी सेवा (Taxi Service) शुरू करें जिसे चलाएं भी महिलाएं और यात्री के रूप में महिलाएं और बच्चियां ही सवार हों. यह काम कठिन था. हमने कुछ लड़कियों को तैयार भी किया तो उनके पास ड्राइविंग लायसेंस नहीं था. पहले उन्हें ठीक से ड्राइविंग सिखवाई, फिर उनकी मदद करके उनके ड्राइविंग लायसेंस बनवाये. उसके बाद उन्हें बैंक से लोन देकर टैक्सी दिलवाई और फिर शुरू हुई वीरांगना एक्सप्रेस सेवा.

वीरांगना स्व सहायता समूह के रूप में संचालित इस सेवा को 10 कैब से शुरू किया गया था  और करीब तीन साल बाद लगभग डेढ़ दर्जन कैब से महिलाओं के परिवारों को रोजी-रोटी देने के साथ ही उनको आत्मनिर्भर भी बनाया जा रहा है. आज ग्वालियर शहर की सड़कों पर वीरांगना एक्सप्रेस फर्राटे भरते नजर आती हैं. इसमें यात्री से लेकर चालक तक सिर्फ महिलाएं ही होती हैं.

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