कांग्रेस के गढ़ में क्या फिर से खिलेगा 'कमल'? रतलाम-झाबुआ लोकसभा सीट में दिखा है कांग्रेसियों का दबदबा

Ratlam-Jhabua Lok Sabha Seat: मालवा की धरती में फैले रतलाम-झाबुआ लोकसभा क्षेत्र की सियासत दिलचस्प रही है. कांग्रेस के दबदबे वाली इस सीट में पहली बार बीजेपी ने 2014 में और दूसरी बार 2019 में चुनाव जीता था.

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कांतिलाल भूरिया रतलाम से पांच बार सांसद रहे हैं. इस बार बीजेपी ने अनिता नागर सिंह चौहान को टिकट दिया है.

Ratlam-Jhabua Lok Sabha Seat Political History: मध्य प्रदेश का रतलाम जिला (Ratlam), जो सेव, सोना, सट्टा, मावा, साड़ी, समोसा, कचोरी और दाल बाटी जैसे खाने के लिए प्रसिद्ध है. मालवा (Malwa) की धरती में फैले इस क्षेत्र की अपनी एक कहानी रही है. यह कभी मध्य भारत (Madhya Bharat) के महत्वपूर्ण वाणिज्यिक शहरों में से शामिल था, जो अफीम, तंबाकू और नमक के व्यापक व्यापार का केंद्र था. रतलाम मालवा में अपने सत्स नामक सौदागरों के लिए भी प्रसिद्ध था. वर्तमान में रतलाम में कई उद्योग हैं, जो तांबे के तार, प्लास्टिक की रस्सियां, रसायन और ऑक्सीजन सहित अन्य उत्पाद बनाते हैं. रतलाम सोना, चांदी, रतलामी सेव, रतलामी साड़ी और हस्तशिल्प के लिए भी बहुत प्रसिद्ध है.

रतलाम के पहले राजा महाराजा रतन सिंह थे. महाराजा रतन सिंह और उनके बेटे राम सिंह के नामों को जोड़कर इस शहर का नाम रतनराम पड़ा. बाद में यह नाम अपभ्रंशों के रूप में बदलते हुए क्रमशः रतराम और फिर रतलाम के रूप में जाना जाने लगा. यहां की सबसे बड़ी खासियत यहां की सेव है, जिसमें एक अलग ही स्वाद है. बताया जाता है कि रतलामी सेव का निर्माण सबसे पहले भील जनजाति ने किया था. इसका पुराना नाम भीलड़ी सेव था. 19 वीं शताब्दी के दौरान यहां भील शासकों का शासन था.

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अब बात करते हैं, रतलाम की सियासत (Politics of Ratlam) के बारे में. आदिवासी बहुल क्षेत्र होने के चलते रतलाम-झाबुआ लोकसभा सीट को अनुसूचित जनजाति यानी कि एसटी के लिए आरक्षित रखा गया है. इस सीट पर अब तक कुल 18 बार चुनाव हुए हैं. इन चुनावों के परिणाम बताते हैं, यहां की जनता ने जिस भी नेता को चुना वह लंबे समय तक यहां से सांसद रहा. तभी तो 18 बार के चुनाव में अभी तक कुल 9 नेता ही यहां से सांसद बने. वहीं पार्टी की बात करें तो कांग्रेस का दबदबा इस सीट पर लगातार रहा है. इन 18 चुनावों में 14 बार कांग्रेस ने जीत दर्ज की है.

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1952 से 67 तक लगातार चार आम चुनाव में कांग्रेस को जिताने के बाद रतलाम की जनता ने 1971 और 1977 के चुनाव में दो अलग-अलग दल संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी और जनता दल को जिताया. हालांकि, इस दौरान नेता वही रहे. दोनों ही बार भागीरथ भंवर यहां से जीतकर सांसद बने. इसके बाद 1980 से 2014 के बीच लगातार 34 वर्षों तक रतलाम में कांग्रेस का बोलबाला रहा. इस बीच कुल 9 बार लोकसभा चुनाव हुए और सभी में कांग्रेस को जीत मिली. इस दौरान दिलीप सिंह भूरिया लगातार पांच बार सांसद बने और कांतिलाल भूरिया लगातार चार बार सांसद बने.

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2014 के आम चुनाव में मोदी लहर के बीच यहां की जनता ने कांग्रेस से बीजेपी में आए आदिवासी समाज के कद्दावर नेता दिलीप सिंह भूरिया को जिताकर सांसद बनाया और पहली बार इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी की एंट्री हुई. इसके बाद 2015 में भूरिया की निधन के बाद यहां उपचुनाव हुए. जिसमें एक बार फिर कांग्रेस ने वापसी की और कांतिलाल भूरिया यहां से सांसद बने. 2019 के लोकसभा चुनाव में रतलाम सीट से बीजेपी ने दूसरी बार जीत हासिल की और गुमान सिंह डामोर लोकसभा पहुंचे. इस बार बीजेपी ने मध्य प्रदेश सरकार के वन मंत्री नागर सिंह चौहान की पत्नी अनिता नागर सिंह चौहान को टिकट दिया है.

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