दिव्यांग पति को गोद में लेकर चक्कर काट रही पत्नी, 7 सालों से नहीं मिली अनुकम्पा नियुक्ति

छतरपुर के रहने वाले अंशुल गौड़ अपने पैरों से नहीं चल सकते...जिसके चलते उसकी पत्नी उसकी गोद में लेकर कलेक्ट्रेट एवं सभी जगह आवेदन देकर परेशान हो चुकी है. दिव्यांग युवक अंशुल गौड़ लगातार अनुकम्पा नियुक्ति के लिए शिक्षा विभाग सहित जिले के आला अधिकारियों के चक्कर काट रहा है लेकिन तकनीकी खामियों को गिनाकर उसे साल 2016 से अनुकम्पा नियुक्ति नहीं मिल पा रही है.

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दिव्यांग पति को गोद में लेकर चक्कर काट रही पत्नी, 7 सालों से नहीं मिली अनुकम्पा नियुक्ति

छतरपुर के रहने वाले अंशुल गौड़ अपने पैरों से नहीं चल सकते...जिसके चलते उसकी पत्नी उसकी गोद में लेकर कलेक्ट्रेट एवं सभी जगह आवेदन देकर परेशान हो चुकी है. दिव्यांग युवक अंशुल गौड़ लगातार अनुकम्पा नियुक्ति के लिए शिक्षा विभाग सहित जिले के आला अधिकारियों के चक्कर काट रहा है लेकिन तकनीकी खामियों को गिनाकर उसे साल 2016 से अनुकम्पा नियुक्ति नहीं मिल पा रही है. मंगलवार को अंशुल की पत्नी चिलचिलाती धूप में उसे अपनी गोद में उठाकर कलेक्ट्रेट ले आई. अंशुल को एक गंभीर बीमारी के कारण चलने-फिरने में दिक्कत है जिसके चलते उसकी पत्नि को उसे गोद में लाना पड़ा. 

क्या है मामला? 

बता दें कि अंशुल गौड़ छत्तरपुर के गौरिहार के परसनियां गांव के रहने वाले हैं. अंशुल गौड़ की मां गौरिहार विकासखण्ड के शासकीय हाईस्कूल कितपुरा में अध्यापक के तौर पर पदस्थ थीं. साल 2015 में आग में जल जाने के कारण उनकी मृत्यु हो गई थी. साल 2016 में अंशुल ने 12वीं कक्षा उत्तीर्ण कर अनुकम्पा नियुक्ति के लिए आवेदन दिया लेकिन उसे आज तक अनुकम्पा नियुक्ति नहीं मिल पायी है. प्रावधान के मुताबिक, विभाग के प्रचलित भर्ती नियमों में शैक्षणिक योग्यता रखने वाले अध्यापक संवर्ग और नियमित शासकीय शिक्षक संवर्गीय दिवंगत कर्मचारियों को प्रयोगशाला शिक्षक के खाली पदों पर अनुकम्पा नियुक्ति दी जा सकती है... लेकिन फिर भी अंशुल को अनुकम्पा नियुक्ति नहीं मिल पा रही है. इस संबंध में अंशुल पिछले 6 सालों से परेशान हैं.

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क्या बोले अधिकारी? 

वह कई बार कलेक्टर और SDM के अलावा जिला शिक्षा अधिकारी से भी अनुकम्पा नियुक्ति दिए जाने की मांग कर चुका है. कलेक्टर की जनसुनवाई में अंशुल की तरफ से दी गई शिकायत की जांच कराई थी. इस जांच में पता लगा कि अनुकम्पा नियुक्ति संबंधी प्रावधानों में आश्रितों को पात्रता न होने या उम्र कम होने की दशा में दो विकल्प दिए जाते हैं या तो वे 7 वर्षों के ग्रेस पीरियड में अपनी पात्रता और उम्र को पूरा कर लें या फिर विभाग से एकमुश्त रकम लेकर सहमति पत्र दे दें. अंशुल के मामले में उन्होंने 5 साल पहले ही एकमुश्त एक लाख रूपए की राशि प्राप्त कर ली थी. इसलिए अनुकम्पा नियुक्ति दिए जाने का रास्ता तभी बंद हो गया था. फिलहाल इस मामले में न तो जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय और न ही कलेक्टर कार्यालय अनुकम्पा नियुक्ति दे सकता है. इस मामले में आवेदक को शिक्षा मंत्री अथवा वरिष्ठ अधिकारी से लिखित आदेश कराना होगा.

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