नेता जी की पहली गिरफ़्तारी में खुश हुए थे पिता, Azad Hind Fauj का ऐसे हुआ था गठन

देश की आजादी में अपने प्राण न्यौछावर करने वाले सुभाष चंद्र बोस को देशभक्तों ने "नेता जी" नाम दिया. जिनके किस्से इतिहास के पन्नों में लिख गए. आज के दिन 21 अक्टूबर 1943 को सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) ने "आज़ाद हिन्द फ़ौज" (Azad Hind Fauj) के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से सिंगापुर में स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार की स्थापना की. जिसका नाम "आज़ाद हिन्द सरकार" रखा गया.

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देश की आजादी में अपने प्राण न्यौछावर करने वाले सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) को देशभक्तों ने "नेता जी" नाम दिया. जिनके किस्से इतिहास के पन्नों में लिख गए. आज के दिन 21 अक्टूबर 1943 को सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) ने "आज़ाद हिन्द फ़ौज" (Azad Hind Fauj) के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से सिंगापुर में स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार की स्थापना की. जिसका नाम "आज़ाद हिन्द सरकार" रखा गया.

आज़ाद हिन्द फ़ौज की बागडोर महान स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने रंगून (बर्मा) में संभाली थी. इस लड़ाई में 60,000 स्वतंत्रता सैनानियों ने हिस्सा लिया था. अंग्रेजों से देश को आज़ाद कराने की क़सम खाने वाले आज़ाद नेताजी सुभाष चंद्र बोस से जुड़ा एक क़िस्सा हम आपको बताने जा रहे हैं.

अक्टूबर 1943 से 15 अगस्त 1947 को भारत को आज़ादी मिलने तक का समय आज़ाद हिन्द फौज (Azad Hind Fauj) और आज़ाद हिन्द सरकार के साथ ही आज़ाद भारत की मंज़िल तक पहुंचने का समय था.

नेताजी के भाई ने दिया स्वतंत्रता की लड़ाई में साथ
सुभाष चंद्र बोस एक परंपरावादी दत्त परिवार से थे. उनकी मां के आठ बेटे और 6 बेटियां थीं. सुभाष चंद्र बोस अपनी मां की नौवीं संतान थे. देश की स्वतंत्रता के लिए हमेशा जान हथेली पर लेकर चलने वाले सुभाष और उनके भाई शरत थे. दोनों भाई स्वतंत्रता की लड़ाई में कभी पीछे नहीं हटे. स्वतंत्रता की लड़ाई में कई बार उतार-चढ़ाव आए, लेकिन उनके माता-पिता ने हमेशा धैर्य से ही काम लिया.

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सुभाष की गिरफ़्तारी में खुश हुए थे पिता
बात उस समय कि है जब पहली बार सुभाष की गिरफ़्तारी की ख़बर मिली तो नेता जी के पिता ने बड़े बेटे शरत को पत्र लिखा. दिसंबर 1921 में जब पहली बार नेता जी गिरफ़्तार हुए, तब पिता ने पत्र में लिखा- "सुभास पर गर्व है और तुम सब पर भी" सुभाष की मां महात्मा गांधी के विचारों को मानती थी और इसलिए उन्हें सुभाष की गिरफ़्तारी की बहुत पहले से आशंका थी, लेकिन वे ये भी जानती थी कि महात्मा गांधी के सिद्धांतों से ही देश को स्वराज मिलेगा.

अंडमान में फहराया था झंडा
पंजाब के जनरल मोहन सिंह ने दिसंबर 1941 को आज़ाद हिंद फ़ौज की स्थापना की थी और अक्टूबर 1943 को नेताजी सुभाषचंद्र बोस को इसकी कमान सौंपी थी. शुरुआती दौरान में इस फ़ौज में 16 हज़ार सैनिक थे और क़ाफ़िला बढ़ता गया और इनकी संख्या 80 हज़ार से ज़्यादा तक पहुंच गई. नेताजी ने जब आज़ाद हिन्द फ़ौज की कमान संभाली उस समय इसमें 45 हज़ार सैनिक शामिल थे. जो युद्धबंदियों के साथ-साथ दक्षिण पूर्वी एशिया के अलग-अलग देशों में रह रहे थे. साल 1944 में ही बोस अंडमान गए जिस पर जापानियों का क़ब्ज़ा हुआ करता था और कड़ी मेहनत से नेताजी ने भारत का झंडा फहराया.

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 महिलाओं ने भी लिया था हिस्सा
आज़ाद हिन्द फ़ौज का "दिल्ली चलो नारा" और "सलाम जय हिन्द" सभी भारतीयों के लिए प्रेरणा के श्रोत थे. इस लड़ाई में महिलाओं ने भी कंधे से कंधा मिलाकर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. ऐसा देश में पहली बार हुआ जब आज़ाद हिन्द फ़ौज में एक महिला रेजिमेंट का भी गठन किया गया था. जिसकी कमान कैप्टन लक्ष्मी स्वामिनाथन के हाथों में थी. इस रेजीमेंट को "रानी झांसी रेजिमेंट" के नाम से जाना गया.

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