कहते हैं कि नवजात शिशु ईश्वर का सबसे सुंदर वरदान होता है, लेकिन दुर्भाग्य है कि कई बार यही मासूम जीवन अपनी पहली सांसों के साथ ही संकट में पड़ जाते हैं. समाज में ऐसे दर्दनाक हालात सामने आते हैं, जब अनचाहे बच्चों को सड़क किनारे, कचरे के ढेर या झाड़ियों में बेसहारा छोड़ दिया जाता है. नाजुक जिंदगी का यह शुरुआती संघर्ष अक्सर उनकी मौत तक ले जाता है. इन्हीं भयावह परिस्थितियों को बदलने और हर बच्चे को जीवन व प्यार का हक दिलाने के लिए विदिशा जिला प्रशासन ने एक संवेदनशील और प्रेरणादायी कदम उठाया है.
फेंके नहीं, हमें दें- सुरक्षित भविष्य की गारंटी
कलेक्टर अंशुल गुप्ता के निर्देशन में महिला एवं बाल विकास विभाग ने जिले के सभी खंड स्तरीय शासकीय चिकित्सालयों, अटल बिहारी वाजपेयी मेडिकल कॉलेज, जिला चिकित्सालय और शिशु गृह (जेल के पास) में विशेष ‘पालना' (Baby Cradle) स्थापित किए हैं.
इन पालना केंद्रों पर कोई भी व्यक्ति अगर किसी कारणवश शिशु का पालन-पोषण नहीं कर पा रहा है तो वह बिना अपनी पहचान उजागर किए, सुरक्षित रूप से बच्चे को पालना में छोड़ सकता है.
जैसे ही शिशु पालना में छोड़ा जाएगा, स्वास्थ्य अमला तुरंत बच्चे को रेस्क्यू कर शिशु गृह ले जाएगा. वहां उसकी चिकित्सीय देखभाल की जाएगी और पोषण और सुरक्षित वातावरण उपलब्ध कराया जाएगा. इसके बाद बाल कल्याण समिति की देखरेख में कानूनी प्रक्रिया पूरी कर बच्चे को गोद दिलवाया जाएगा.
क्यों जरूरी थी यह पहल?
जिला कार्यक्रम अधिकारी विनीता लोढ़ा ने बताया कि अतीत में जिले भर में करीब पांच से सात ऐसे मामले सामने आए, जब नवजातों को असुरक्षित जगहों पर छोड़ने से उनकी मौत हो गई. यह न केवल अमानवीय था, बल्कि समाज की संवेदनशीलता पर भी सवाल उठाता था. अब यह पालना व्यवस्था इन मासूमों को जीवन देने और उन्हें स्नेहिल भविष्य दिलाने का मजबूत माध्यम बनेगी.
अभियान का संदेश
“प्यार का दुलार, भविष्य निर्माण का – फेंके नहीं, हमें दें.” यह संदेश ही इस पूरी पहल की आत्मा है. जिला प्रशासन चाहता है कि कोई भी मासूम असुरक्षित हालात में अपनी जिंदगी न गंवाए. इस अभियान से बच्चे को सुरक्षित जीवन मिलेगा और गोद लेने की प्रक्रिया से बच्चों को नया परिवार मिलेगा. साथ ही समाज में संवेदनशीलता और जिम्मेदारी की भावना बढ़ेगी.
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