थाली तक पहुंचने से पहले सब्जियां क्यों हो जाती हैं महंगी? यहां समझें पूरा गणित

Vegetable Price Hike: सब्जियों की कीमतें खेत से थाली तक के सफर में बढ़ जाती हैं. इसके पीछे के कारणों में आढ़ती और खुदरा विक्रेताओं का कमीशन और मुनाफा, परिवहन और भंडारण की लागत, और मांग और आपूर्ति के बीच का अंतर शामिल है. किसानों को उनकी उपज का सही मूल्य नहीं मिलता है, और उपभोक्ताओं को अधिक कीमत चुकानी पड़ती है. यहां समझें पूरा गणित

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सांकेतिक तस्वीर: कौन ले रहा है सब्जियों की कमाई का असली हिस्सा?

Vegetable Farmers: इन दिनों सब्जियों की आवक भरपूर है, दाम भी कम हैं... ऐसे में फायदा किसका है - ग्राहक-आढती-किसान या दुकानदार ? इस रिपोर्ट में हम खेत से थोक मंडी होते हुए खुदरा की चेन आपको दिखाएंगे, समझेंगे और समझाएंगे कि क्यों किसानों की परेशानी दूनी लग रही है?  क्यों किसान फसल को मवेशियों को खिलाने के लिए मजबूर है? 

भोपाल से सटे सीहोर जिले में सब्जी की थोक मंडी, सुबह 7 बजे का वक्त. आसपास के गांव और बाहर के जिलों से आए किसान अपनी-अपनी सब्जियों को नीलाम करने के लिए खड़े हैं. सब्जी मंडी में किसानों की भीड़ है, नीलामी हो रही है. सब्जी बिकने के बाद, किसान मायूस हैं लेकिन क्यों? 

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क्या कहते हैं किसान? 

बड़ी मुंगावली से आए किसान सुरेन्द्र कुशवाहा बताते हैं कि धनियां 2 रुपए किलो, गोभी 4 रूपए किलो, टमाटर 5 रूपए किलो, मैथी भाजी 3 रूपए किलो, मूली 10 रूपए गड्डी, बैंगन 5 रूपए किलो, पालक भाजी 3 रूपए किलो, सेम 5 रूपए किलो, मटर 10 रूपए किलो, गाजर 20 रूपए किलो के भाव से नीलाम हो रही हैं.

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वहीं जमनी पडली से आए किसान पीर सिंह ठाकुर बताते हैं कि मंडी में सेम की सब्जी बेचने आए है लेकिन 3, 4, 5 रुपये से ज्यादा कोई खरीदने को तैयार नहीं हैं. सब्जियों के बीज काफी मंहगे मिलते हैं. गोभी का बीज 25 हजार रूपए किलो से लेकर 1 लाख रुपए किलो तक मिलता है. टमाटर के बीज के दाम 800 रूपए में 50 ग्राम, मूली 750 रूपए में 250 ग्राम, पालक का बीज 100 रूपए में 50 ग्राम, धनिया का बीज 350 रूपए में आधा किलो मिल रहा है. इसी प्रकार अन्य सब्जियों के बीज के दाम भी काफी मंहगे रहते हैं. 

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क्या वाकई ये भाव निराश करने वाले हैं... ये समझने हम जमोनिया के भगवान सिंह के खेतों में पहुंचे. 

‘लागत ज्यादा और उपज के दाम कम'

किसान भगवान सिंह का कहना है कि बीज महंगा है, लागत ज्यादा और उपज के दाम कम, सब्जी की खेती में मुनाफा नहीं घाटा हो रहा है. मंडियों में किसान की सब्जी कम दामों पर खरीदी जा रही है, ऐसे में कई किसान तो सब्जियों को मंडी तक भी नहीं ला रहे हैं. मेथी अच्छी आई है लेकिन दाम नहीं होने से मवेशियों को काट कर खिलाना पड़ रहा है. इसलिए किसानों के घाटे की भरपाई के लिए समर्थन मूल्य सरकार को निर्धारित करना चाहिए. 

सीहोर के खेत, थोकमंडी से निकलकर हम भोपाल के खुदरा बाजार में पहुंचे. 30-40 किलोमीटर के फासले में सब्जी की कीमत दोगुनी हो गई- पहले ये रेट कार्ड देख लीजिये

मंडीखुदरा
गोभी 4 रु/ किलो20 रु/ किलो
मटर 10 रु/ किलो40 रु/ किलो
धनियां 2 रु/ किलो15 रु/ किलो

‘किसान को नुकसान नहीं है…'

शहर में दुकानदारों की सोच अलग है, ठोस फुटकर विक्रेता कहते हैं किसान को नुकसान नहीं है लेकिन जो किसान खुद बेचने आए हैं उन्हें लगता है लागत नहीं मिल रही है. दुकानदार रईस मियां का कहना है कि किसान को मिलता है, 2000 सस्ताई में नहीं मिलता है, सर्दियों के चक्कर में कम निकलते हैं सस्ता है. वहीं एक और दुकानदार लखन कुशवाहा कहते हैं कि मेथी का बीज 100 रु. किलो है, एक किलो में 4-5 कैरेट मेथी निकलती है, सवा महीने में आती है 40-5- कैरेट का भाव मिला है क्या मिलेगा... चारों तरफ से आता है, इस सीजन में हर आदमी की सब्जी पैदा होती है. फरवरी के बाद पानी खत्म हो जाता है... बोली आती है उस भाव में माल बिकना है. मेथी 10 रु गड्डी बिक रही है, बाजी कोई नहीं मान रहा है, किसान का नुकसान है आढ़ती का भी है... दुकानदार को पैसे मिल जाते हैं, किसान को नहीं मिल रहा है, 50 की कैरेट लाए हैं, 100 तक मिल जाएंगे, गोभी 3 महीने में आती है रेट नहीं है. 

किसान प्रेम मालवीय कहते हैं कि हमें खाद-बीज, निंदाई-गुड़ाई... बच्चे जैसा पालते हैं. भाव सही नहीं मिलता ना के बराबर पैसा मिलता है. पूरा खर्चा काटते हुए 60 पैसा... फायदा खरीदारों को मंडी वालों को. वो तो मजबूरी में बच्चा तो पालना है. मैं सीहोरा के झरखेड़ा का रहने वाला हूं. 

क्या कहते हैं ग्राहक? 

ग्राहकों को सब्जी सस्ती मिल रही है लेकिन वो कहते हैं कुछ सब्जियों के ही भाव गिरे हैं, सबके नहीं. 
एक ग्राहक चांद मियां बताते हैं कि अभी कम मिल रहा है, वैसे ज्यादा मिलता है बाकी सब महंगा है...अभी हर चीज सस्ती है, किसान का माल ज्यादा आ रहा है. मुहम्मद कुरैशी का कहना है कि सस्ते चल रहे हैं, किसान दुकानदार सबका नुकसान है, पूरे शहर में ठेले वाले फिरते हैं... बाजी किसी की नहीं लग रही है, दलाल कमीशन काटता है. 10 के माल में 1 रु बनेगा. 

खेत से थाली तक आते आते क्यों बढ़ जाते हैं सब्जियों के दाम? 

हम आपको समझाते हैं, खेत से थाली तक आते-आते सब्जियों के दाम क्यों बढ़ जाते हैं और किसान क्यों परेशान है. दरअसल, तमाम खर्च कर किसान अपनी उपज का दाम तय नहीं कर पाता है. वो मंडी में अपने खर्च पर उत्पाद लाता है. वहां आढ़ती उपज की बोली लगाते हैं. खुदरा विक्रेता बोली में शामिल होते हैं और सब्जी खरीदते हैं. आढ़ती अपना मुनाफा और हम्माली जोड़कर किसान को पैसे देता है. खुदरा दुकानदार भाड़ा, मुनाफा और सब्जियों के खराब होने का संभावित नुकसान जोड़कर रेट तय करते हैं. इसलिये जिस धनिया के किसान को 2 रु. मिलते हैं, उसके लिये आप 15 रु चुका रहे हैं.

रिजर्व बैंक की एक रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक फलों और सब्जियों की बढ़ती कीमत से किसानों को बहुत ज्यादा फायदा नहीं मिलता. फर्ज कीजिये अगर आपने 100 रुपये का एक किलो टमाटर खरीदा तो किसान को सिर्फ 33 रुपये ही मिलेंगे, बाकी का हिस्सा थोक विक्रेताओं और खुदरा विक्रेताओं में बंट जाता है. 

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