Tribal Women Becoming Self Reliant By Poultry Farming : मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य डिंडौरी जिले में मुर्गी पालन के व्यवसाय से जुड़कर सैंकड़ों ग्रामीण महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही हैं. मुर्गी पालन के व्यवसाय में 23 गांव की करीब चार सौ महिलाएं जुड़ी हुई हैं, और इनका वार्षिक टर्न ओवर 15 करोड़ रुपये के करीब बताया जा रहा है. रानी दुर्गावती सहकारी समिति समनापुर की देखरेख में 23 गांव की करीब चार सौ महिलाएं मुर्गीपालन का व्यवसाय करती हैं, और साल में प्रत्येक महिला औसतन चालीस से पचास हजार रुपये कमाई कर रही हैं.
15 करोड़ रुपये बताया जा रहा है वार्षिक टर्न ओवर
रानी दुर्गावती मुर्गीपालक सहकारी समिति के मैनेजर धर्मेंद्र सिंह ने बताया की वर्ष 2008 में कुरैली गांव से मुर्गीपालन व्यवसाय की शुरुआत की गई थी, जिसमें महिलाओं ने काफी अच्छा काम किया. इसी गांव की महिलाओं से प्रेरित होकर अब 23 गांव की सैंकड़ों महिलाएं मुर्गीपालन के व्यवसाय से जुड़ गईं हैं. मैनेजर धर्मेंद्र सिंह ने बताया की प्रत्येक मुर्गीपालक महिला को साल में चार से पांच टर्म मिलते हैं, जिसमें औसतन चालीस से पचास हजार रूपये वे कमा लेती हैं, साथ ही मुर्गीपालन व्यवसाय के वार्षिक टर्न ओवर की राशि 15 करोड़ रुपये के करीब होना भी उन्होंने बताया है.
मजदूर से बनी मालिक
मुर्गी पालन के व्यवसाय से जुड़ी महिलाएं बताती हैं कि इस व्यवसाय से जुड़ने के पहले वे घरेलू कामकाज व मजदूरी का काम करती थीं और घर की चारदीवारियों में कैद रहती थीं. लेकिन जब से वे मुर्गीपालन के व्यवसाय से जुड़ीं हैं. तब से न सिर्फ उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है, बल्कि जीवन स्तर में भी बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है.
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चंद्रकली बनी रोल मॉडल
चंद्रकली ने बताया की वर्ष 2006 में प्रदान नामक एनजीओ की मदद से गांव की 14 महिलाओं ने मुर्गीपालन का काम शुरू किया था, जिसके शुरुआत में उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था. लेकिन धीरे-धीरे वो इस काम में इतनी माहिर हो गई हैं. सारा काम आसानी से निपटा लेती हैं. करीब 150 की आबादी वाले कुरैली गांव की रहने वाली पांचवी क्लास तक पढ़ी चंद्रकली से प्रेरित होकर मुर्गीपालन का यह कारोबार अब 23 गांवों तक पहुंच गया, जिसमें 476 ग्रामीण महिलाएं स्वरोजगार से जुड़ गई हैं. चंद्रकली की मेहनत और लगन को देख उसे लीडरशिप अवॉर्ड के साथ साढ़े तीन लाख रुपये नगद के साथ पुरस्कार दिया जा चुका है.
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