टॉयलेट-एक दुख कथा! इस ऑफिस में 10 साल से नहीं है शौचालय, सस्पेंड हाेने के डर से महिला कर्मचारी चुप

MP News: टीकमगढ़ शहर के चकरा तिगैला पर बने इस सरकारी मैकेनिकल ऑफिस में लगभग 10 वर्षों से टॉयलेट नहीं होने से कर्मचारियो को खुले में बाथरूम करने जाना पड़ता है. मगर दिक्कत तो महिला कर्मचारियों को होती है. वह खुले में कहां जाएं?

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MP News: एक तरफ सरकार हर घर शौचालय (Har Ghar Shauchalay) की बात करती है. स्वच्छता मिशन (Swachh Bharat Abhiyan) चला रही है. शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में शौचालय के महत्व पर जोर दे रही है. और तो और शौचालय को लेकर टॉयलेट-एक प्रेम कथा (Toilet- Ek Prem Katha) जैसी हिट फिल्म भी आ चुकी है. लेकिन मध्य प्रदेश के इस ऑफिस में टॉयलेट किसी दुख कथा से कम नहीं है. अब तो लोगों की मूलभूत सुविधाओं में टॉयलेट का नाम भी आता है लेकिन एमपी के टीकमगढ़ शहर में बने लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी के मैकेनिकल शाखा के सहायक यंत्री के सरकारी ऑफिस (Government Office) में टॉयलेट नहीं होने से एक दर्जन से अधिक कर्मचारियों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. 

सालों से परेशान हैं कर्मचारी

टीकमगढ़ शहर के चकरा तिगैला पर बने इस सरकारी मैकेनिकल ऑफिस में लगभग 10 वर्षों से टॉयलेट नहीं होने से कर्मचारियो को खुले में बाथरूम करने जाना पड़ता है. मगर दिक्कत तो महिला कर्मचारियों को होती है. वह खुले में कहां जाएं? जिले का यह पहला ऐसा सरकारी दफ्तर होगा जहां पर महिलाओं को घर से टॉयलेट करके जाना पड़ता है और फिर जब ऑफिस टाइम खत्म होता है तो शाम को फिर घर पर ही शौचायल जाना पड़ता है.

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सस्पेंड होने का है डर

कुल कर्मचारियों में सबसे ज्यादा परेशानी महिला कर्मचारियों को होती है. इतना कुछ होने के बाद भी विभाग के अधिकारियों के भय से ये महिला कर्मचारी अपनी समस्या कैमरे के सामने बयां नहीं कर पा रही हैं. उनका कहना है कि यदि हम अपनी समस्या बताएंगे तो अधिकारी हमें सस्पेंड कर देंगे. इस ऑफिस में 5 महिला कर्मचारी है. जो टॉयलेट के लिए रोज सुबह से लेकर शाम तक जंग लड़ती हैं. उनकी समस्या सुनने वाला कोई नहीं है. वहीं इस ऑफिस में 10 पुरुष कर्मियों का स्टाफ है. लेकिन इतनी बड़ी समस्या होने के बाद भी कोई आगे नहीं आ रहा है.

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इन तमाम महिला कर्मचारियों ने कैमरे से हटकर बताया कि साहब हम बहुत परेशान हैं. घर से टॉयलेट करके आना पड़ता है. ऑफिस में न तो टॉयलेट है न ही वाॅशरूम हम कहां पर जाएं? कई सालों से परेशान हैं. ऊपार साहब से कुछ कहो तो वह कहते हैं कि शासन को लिखा है. स्वीकृति आने पर नई टॉयलेट बना जाएगी, मगर सालों बीत गए अभी तक न स्वीकृति मिली न टॉयलेट. 

इस ऑफिस के अनुविभागीय अधिकारी प्रह्लाद सिंह हैं, जो छतरपुर जिला और टीकमगढ़ जिले के इस ऑफिस को देखते हैं. इस विभाग में हर साल करोड़ों रुपये का बजट आता है. लेकिन बस खुद के टॉयलेट के लिए फंड नहीं मिल पा रहा है. इस संबंध में इस विभाग के कोई अधिकारी भी सामने नहीं आ रहे हैं. लेकिन जन सरोकार और खोजी पत्रकारिता करने वाला NDTV न्यूज़ चैनल अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए इस खबर को खोज निकाला है. ताकि इन महिलाओं की समस्या का समाधान हो सके.

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