इंदौर स्वच्छता में नंबर 1, लेकिन यहां हो गई फेल... 1600 करोड़ हुए खर्च लेकिन नतीजा रहा जीरो

Rivers are getting polluted: देश के सबसे स्वच्छ शहर की नदियां सफाई के मामले में जीरो है. इसके सफाई पर हर साल 500 करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद ये स्वच्छ नहीं हो सकी.

विज्ञापन
Read Time: 4 mins
स्वच्छता में नंबर 1 फिर यहां कैसे फेल हो गई इंदौर शहर

मध्य प्रदेश के इंदौर शहर को लगातार सात सालों से देश के सबसे स्वच्छ शहरों में गिनती होती है, लेकिन यहां की नदियां सफाई के मामले में सिफर है. इन नदियों के नाम पर करोड़ों रुपये भी खर्च हुए, लेकिन अब तक ये नदियां साफ नहीं हो सकी. बता दें कि इंदौर शहर की स्थापना दो नदियों के कारण ही हुई थी, लेकिन अब ये नदियां नदी नहीं रही. इन नदियों में अब सिर्फ शहर के नाले की पानी गिर रहे हैं, जिससे नदी का पानी दूषित हो गया है. इतना ही नहीं इन नदियों को जब देखते हैं तो इसमें सिर्फ जलकुंभी और गंदगी नजर आती है. 

एनडीटीवी की टीम इन नदियों की हाल लेने इंदौर पहुंची. इस दौरान पड़ताल में पाया कि इन नदियों की सफाई के नाम पर करोड़ों रुपये भी खर्च हो गए हैं, इसके बावजूद शहर के नाले का गंदा पानी नदियों में ही मिल रहा है. 

Advertisement

देश के सबसे स्वच्छ शहर इंदौर की नदियां आखिर क्यों है इतनी प्रदूषित?

बता दें कि इंदौर नगर निगम लगातार 7 सालों से स्वच्छता में नंबर वन है. इस साल स्वच्छता में इंदौर का नंबर वन आने की वजह रही नाला टेपिंग. दरअसल, इंदौर शहर के तमाम नालों को बंद कर उससे निकलने वाले पानी की निकासी बंद कर दी गई, लेकिन एनडीटीवी की टीम ने जब हड़ताल की तो पाया कि इंदौर की कान्हा या कान नदी जिसे खान नदी भी कहा जाता है, उसमें अभी भी नाले का दूषित पानी मिल रहा है. ऐसे में ये सवाल उठने लगा कि आखिर नदी की सफाई के नाम पर फिर करोड़ों रुपये का खर्च क्यों?

Advertisement

साल 2022 तक इन दो नदियों पर खर्च हुए 1157 करोड़ रुपये

सबसे पहले इंदौर की सरस्वती नदी की बात करते हैं, जिसकी सफाई के नाम पर नगर निगम इंदौर ने करोड़ों रुपये तो खर्च कर दिए, लेकिन अब तक इस नदी की सफाई नहीं हो सकी. नदी की सफाई के नाम पर आसपास सीमेंट कंक्रीट का जाल बुन दिया गया. उद्यान बना दिए गए, लेकिन जिस उद्देश्य के लिए करोड़ों  रुपये आए थे, वो काम पूरा नहीं हो पाया.

Advertisement
साल 2022 तक 1157 करोड़ रुपये दो नदियों पर खर्च किए गए. साल 2023 में भी 500 करोड़ का बजट इन नदियों के लिए रखा गया, लेकिन इंदौर की कान्हा नदी और सरस्वती नदी अब तक साफ न हो सकी. 

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल एनजीटी ने नदी की सफाई के लिए पास किया था ऑर्डर

इन दो नदियों की सफाई के लिए लंबी लड़ाई लड़ने वाले सामाजिक कार्यकर्ता किशोर कोडवानी भी अब थक चुके हैं, लेकिन नदी साफ नहीं हो सकी. हालांकि उनकी याचिका पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल एनजीटी ने नदी सफाई के लिए ऑर्डर तो पास किया, लेकिन उस पर भी काम नहीं हो सका.

सामाजिक कार्यकर्ता किशोर कोडवानी जो लगातार नदी सफाई की लड़ाई लड़ रहे हैं. उनसे एनडीटीवी के संवाददाता समीर खान ने बात की. 

किशोर कोडवानी ने बातचीत के दौरान कहा कि किसी भी शहर की बसाहट नदी किनारे होती थी और यही वजह रही की इंदौर शहर को भी दो नदियों के किनारे बसाया गया था. खोलकर वंश से पहले यहां पर जमींदार परिवार हुआ करता था, जिसका दावा है कि उसी के द्वारा इंदौर शहर की स्थापना की गई.

अब नदियों का वजूद खतरे में 

इसी परिवार के युवा तुषार जमींदार बताते हैं कि दो नदियों की वजह से ही हमारे पूर्वजों ने इंदौर शहर को इन नदियों के किनारे बसाया था. बड़ा रावला सरस्वती नदी के एकदम करीब है जहां से इंदौर का शासन चलता था, लेकिन आज इन नदियों की सफाई नहीं हो पा रही है जिसके चलते नदियों का वजूद खतरे में है.

जब इंदौर की स्थापना हुई थी तो इनकी दो नदियां-सरस्वती और दूसरी कान थी. हालांकि नाम को लेकर आए दिन सियासत होते रहती है. एक पक्ष इस नदी को खान और एक को सरस्वती कहते हैं. वहीं एनडीटीवी की टीम सरस्वती नदी के किनारे पहुंची. इस दौरान पाया कि नदी में सिर्फ जलकुंभी और गंदगी है.

सवालों के घेरे में इंदौर नगर निगम

इंदौर नगर निगम के वर्तमान आयुक्त शिवम वर्मा से जब एनडीटीवी ने बात की तो उन्होंने कहा कि नगर निगम स्वच्छता और नदियों की सफाई के लिए  तो कार्य कर रहा है, लेकिन अगर नदी सफाई में भी कोई गलती हुई या नाल टाइपिंग में तो उस पर कार्रवाई की जाएगी.

इंदौर नगर निगम में लगातार घोटाले सामने आ रहे हैं. अगर नदी सफाई की भी जांच की जाए तो नदी सफाई भी नगर निगम का एक बड़ा घोटाला सबित होगा. 

ये भी पढ़े: MP के 16 यूनिवर्सिटी डिफॉल्टर, कुलपति बोले-माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय को 'डिफॉल्टर' बताना ‘दुर्भाग्यपूर्ण'