Teacher's Day Celebration: नरसिंहपुर का 1783 में बसा एक प्राचीन गांव सिंहपुर.. जहां की रग-रग में शिक्षा के प्रति बेमिसाल समर्पण है. करीब आठ हजार की आबादी वाले इस गांव के बारे में कहा जाता है कि यहां करीब हर घर में एक शिक्षक है. सरकारी से लेकर निजी स्कूलों में भी यहां के शिक्षक अपने ज्ञान को भावी पीढ़ी के लिए उपयोग कर रहे हैं. अध्यापन के प्रति जुनून ऐसा है कि आने वाली पीढ़ी भी आईएएस या आईपीएस से लेकर डॉक्टर इंजीनियर न बनकर शिक्षक बनने का सपना संजोते हैं. और यही कमाल की शिक्षा व्यवस्था के चलते शिक्षकों के जुनून और उत्कृष्ट कार्य ने यहां के पांच शिक्षकों को राष्ट्रपति पुरस्कार तक से नवाजा है. गांव के एक शर्मा परिवार के सभी दस सदस्यों का शिक्षक होना भी ज्ञान की अलख जगाने के प्रति सजगता का अद्भुत कमाल है.
चार से पांच पीढ़ी हैं शिक्षक
शिक्षा की अलख जगाते इस गांव की खासियत ये है कि यहां की शिक्षा व्यवस्था को कई पीढ़ियां निरंतर संभाले हुए हैं. इस गांव से 1964 में पहला राष्ट्रपति पुरस्कार पाने वाले शेख नियाज़ की आज तीसरी और चौथी पीढ़ी भी अध्यापन का कार्य करा रही है. ऐसे ही नजीर कई परिवार इस गांव में पिछली पीढ़ियों से बच्चों में शिक्षा के साथ संस्कार गढ़ने का काम कर रहीं हैं.
पांच शिक्षकों को राष्ट्रपति पुरस्कार
इस गांव की अद्भुत और बेमिसाल शिक्षा व्यवस्था की निष्ठा भरी मिसाल है यहां के शिक्षकों के रगों में बहने वाला ईमानदारी का खून. इस गांव के रहने वाले पांच शिक्षकों को राष्ट्रपति पुरस्कार से नवाजा जा चुका है. राष्ट्रपति पुरस्कार शुरू होते ही यहां के शिक्षक शेख नियाज़ को 1964 में पहला राष्ट्रपति पुरस्कार मिला था, उसके बाद लगातार 1991 में महेश शर्मा व देवलाल बुनकर को उत्कृष्ट सेवा के लिए राष्ट्रपति से पुरस्कार मिला.
फिर मोतीलाल डेहरिया यहां से चौथे राष्ट्रपति पुरस्कार पाने वाले शिक्षक बने और उसके बाद 1995-96 में नरेंद्र कुमार शर्मा को राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने राष्ट्रपति पुरस्कार से नवाजा. इन पांचों राष्ट्रपति पुरस्कार शिक्षकों में से नरेंद्र कुमार ने NDTV को बताया कि उन्होंने पुरस्कार के पहले अपने साथी शिक्षकों से कहा था कि सरकार मुझे मेरे ईमानदारी और कार्यों को पुरस्कार दे तो ही मंजूर है और यही वजह रही कि राष्ट्रपति अवार्ड का पत्र मिलते ही गांव में जश्न सा माहौल हो गया.
गांधी टोपी स्कूल की शान
सिंहपुर के 1860 में स्थापित हुए बुनियादी स्कूल की पहचान यहां की गांधी टोपी है, जो आज भी स्कूल के शिक्षक से छात्र लगाते आ रहे हैं. इसी बुनियादी शाला में पढ़ने और पढ़ाने वाले पांच शिक्षकों ने राष्ट्रपति पुरस्कार पाया है. शिक्षा के प्रति बीजारोपण की कहानी इसी बुनियादी शाला की बुनियाद है, जो अब एक वट वृक्ष की तरह मजबूत हो गई है. यहां के शिक्षकों में निजी स्कूलों की तरह काम करने का जज्बा है, जिससे यहां के शिक्षक जहां अध्यापन कार्य कराते हैं. वहां वे अपनी विशेष पहचान बनाते हैं. ये सब यहां से मिले ईमानदारी और खुद्दारी के खून का कमाल है, जो अन्य ऐसे शासकीय शिक्षकों के लिए भी सबक है जो अपने कर्तव्यों के प्रति लापरवाह हैं.