पढ़ाई के साथ-साथ कॉन्फिडेंस डेवलप करें महिलाएं: NDTV से बोलीं शिक्षिका उषा खरे

राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित डॉक्टर उषा खरे ने एनडीटीवी से खास बातचीत की. इस दौरान उन्होंने कहा कि मैं आखिरी सांस तक समाज के लिए जीना चाहती.

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राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित डॉक्टर उषा खरे ने NDTV से साझा किए अपने अनुभव
भोपाल:

शिक्षिका डॉक्टर उषा खरे का शिक्षा के क्षेत्र में बहुत बड़ा योगदान है. भोपाल के जहांगीराबाद के जिस स्कूल की ये प्रिंसिपल है वो सरकारी स्कूल है, लेकिन यहां के बच्चों को डिजिटल शिक्षा मिले इसपर उन्होंने काफी जोर दिया और उन्हें सफलता भी मिली. उषा खरे को शिक्षा के क्षेत्र मे नेशनल टीचर अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया है. इतना ही नहीं उषा खरे केबीसी के कर्मवीर स्पेशल एपिसोड में भी नजर आ चुकी हैं. इस दौरान फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन ने कर्मवीर अवॉर्ड से सम्मानित किया था. वहीं शिक्षक दिवस के मौके पर डॉक्टर उषा खरे ने एनडीटीवी से खास बातचीत की.

मेरे जिंदगी के सबसे बड़े रोल मॉडल मेरे माता पिता रहें: उषा खरे

उषा खरे शासकीय कन्या उच्च माध्यमिक विद्यालय जहांगीराबाद में प्रिंसिपल हैं और वो साल 2011 से यहां पदस्थ हैं. उन्होंने एनडीटीवी से बात करते हुए कहा कि मैंने जीवन में जो भी शिक्षा हासिल की है, जहां कहीं से की है.अच्छे विचारक मेरे लिए रोल मॉडल रहे हैं, लेकिन मेरे जिंदगी के सबसे बड़े रोल मॉडल मेरे माता पिता रहे हैं.

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शिक्षिका डॉक्टर उषा खरे ने कहा, 'महिलाएं पढ़ाई के साथ-साथ कॉन्फिडेंस भी डेवलप करें. मैं सेल्फ डिफेंस के लिए  2014 से काम कर रही हूं. सैकड़ों छात्राएं हैं जो इसमें प्रशिक्षित होकर समाज में बहुत अच्छा काम कर रहे हैं. इससे कॉन्फिडेंस डेवलप होता है और बच्चों में अपनी सुरक्षा की सारी जिम्मेदारी आ जाती है.

उषा खरे ने एक स्कूल से कर्मवीर तक का सफर पर बात करते हुए कहा, 'मैंने अपनी नौकरी को, अपनी टीचिंग को बहुत एंजॉय किया है. मैंने कभी इसे बोझ नहीं समझा. मैंने पल-पल अपने आप को मम्मी, दादी, नानी और बालिकाओं के बीच में रखा और अपने आप को मैंने पाया.अगर ईमानदारी से सच्चे मन से काम किया जाए तो आनंद की प्राप्ति होती है.

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केबीसी के कर्मवीर एपिसोड में भी उषा खरे ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी, जहां उन्हें अभिनेता अमिताभ बच्चन ने कर्मवीर अवॉर्ड से सम्मानित किया था.

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जिस स्कूल पर काम कर रही हूं वहां जाना सबसे बड़ा टास्क था

उषा खरे ने कहा कि जब विपरीत परिस्थितियों में काम करना पड़ता है तो आपको हर पल परेशानी का सामना करना पड़ता है. मैं जहांगीराबाद की जिस स्कूल पर काम कर रही हूं वहां जाना ही मेरे लिए सबसे बड़ा टास्क था.

उषा खरे कहती हैं, 'मैं आखिरी सांस तक समाज के लिए जीना चाहती हूं. जहां विश्वास हो, पर्यावरण हो, संरक्षण हो. मैं सभी क्षेत्रों में काम करना चाहती हूं. भारत में अभी भी डेवलपमेंट की आवश्यकता है.

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