Tattoo Artist Mangla Bai: इंटरनेशनल हुईं टैटू आर्टिस्ट मंगला बाई, दुनिया भर में फैली बैगा जनजाति की गुदना कला

Madhya Pradesh's Tatoo Artist: सिडनी यूनिवर्सिटी में गुदना कला प्रदर्शन करने जनवरी महीने में आस्ट्रेलिया गई टैटू आर्टिस्ट मंगला करीब डेढ़ महीने तक सिडनी यूनिवर्सिटी के चाउ चक म्यूजियम में केनवास पर गुदने की आकर्षक पेंटिंग उकेरकर अपना अपना लोहा मनवाया है.

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Tattoo Artist Mangla Bai: मध्य प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य डिंडौरी जिले में एक से बढ़कर एक प्रतिभाएं हैं, जिन्होंने न सिर्फ राष्ट्रीय बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी अपना परचम लहराया है. ऐसी ही एक प्रतिभावान महिला है गुदना आर्टिस्ट मंगला बाई, जिन्होंने कई देशों में अपनी कला की छाप छोड़ी है. 

सिडनी यूनिवर्सिटी में गुदना कला प्रदर्शन करने जनवरी महीने में आस्ट्रेलिया गई टैटू आर्टिस्ट मंगला करीब डेढ़ महीने तक सिडनी यूनिवर्सिटी के चाउ चक म्यूजियम में केनवास पर गुदने की आकर्षक पेंटिंग उकेरकर अपना अपना लोहा मनवाया है.

गुदना आर्टिस्ट मंगला बाई का आस्ट्रेलिया में जलवा

डिंडौरी जिले के छोटे से गांव लालपुर में रहने वाली मंगला बाई से गुदना बनवाने कई देशों से लोग उनके घर पहुंच जाते हैं. बीते जनवरी महीने में आस्ट्रेलिया के सिडनी यूनिवर्सिटी में कला प्रदर्शन करने का मौका मिला. करीब डेढ़ महीने तक सिडनी यूनिवर्सिटी के चाउ चक म्यूजियम में केनवास पर गुदने की आकर्षक पेंटिंग उकेर कर अपना लोहा मनवाया. 

टैटू बनाती आर्टिस्ट मंगला बाई

मां शांति बाई बैगा जनजाति के शरीर पर गुदना बनाती थी

मंगला ने बताया की आस्ट्रेलिया में मिले इस सुनहरे मौके के बाद वो बेहद खुश है और वो अपनी इस सफलता का श्रेय दिवंगत मां शांति बाई को देती हैं, जो गांव गांव जाकर बैगा जनजाति की महिलाओं के शरीर पर गुदना बनाने का काम करती थी और महज 7 साल की उम्र में मंगला भी मां के साथ गुदना बनाने के काम में जुट गई.

7 साल की उम्र से गुदना बना रही हैं आर्टिस्ट मंगला बाई

मंगला बाई महज 7 सा की उम्र में हुी गुदना गोदने में पारंगत हो गईं थी. कभी स्कूल का मुंह भी नहीं देखने के बावजूद अलग अलग देशों के लोगों के शरीर में गुदना बना चुकी मंगला बाई विरासत में मिले गुदना के इस कला को संरक्षित रखना चाहती है ताकि ये कला विलुप्त न होने पाए. 

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गुदना कला से मंगल बाई ने जिले को किया गौरान्वित

सिडनी यूनिवर्सटी, आस्ट्रेलिया में मंगला बाई

बैगा जनजाति की महिलाओं में गुदना की परंपरा आज सारी दुनिया मे लोकप्रिय हो रहा है, लेकिन मंडला के बैगाओं में यह फैशन काफी पुराना है. परम्परा बन चुके इस फैशन को सैकड़ों साल बाद भी बैगा जनजाति के लोग इसे आज भी जिन्दा रखे हुए है. बैगाओं के बदन पर गुदना उनका वो गहना है जो किसी सोने और चांदी से कम

असहनीय पीढ़ा के बावजूद गुदाते हैं बैगा जनजाति की महिलाएं

बैंगा जनजाति की महिलाएं शरीर के किस हिस्से में गुदना जरूरी है इसके लिए बैगाओं में नियम बने हुए है. गुदने को देख कर ही युवती या महिला की उम्र का अंदाजा लगाया जा सकता है, गुदना सात साल की उम्र मे माथे पर और जवानी की दहलीज पर कदम रखती युवतियों के आधे बदन पर कराया जाता है, लेकिन शादी पूर्व गोदना जरूरी होता है.

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बैगा जनजाति की महिलाओं को शादी पूर्व टैटू बनाना जरूरी

 शादी के बाद पूरे अंग पर गुदना गुदवाती हैं बैगा जनजाति महिलाएं

बैंगा जनजाति की महिलाओं को शादी के बाद पूरे बदन पर गुदना गुदवाने की परम्परा आदिकाल से चली आ रही है. इसके लिए न तो किसी मशीन की जरूरत होती है और न ही बाजार से कोई रसायन खरीदना होता है. गुदना गोदने में माहिर लोग जंगलों से जड़ी बूटियां लाकर ख़ुद ही रसायन बना लेते है, जो शरीर की कोशिकाओं के सम्पर्क में अमिट हो जाता है.

उजियारो बाई जंगल बचाओ मुहिम को लेकर कई देशों में करु चुकी प्रतिनिधुत्व

डिंडौरी जिले के वनग्राम पौंडी में रहने वाली बैगा महिला उजियारो बाई जंगल बचाओ मुहिम को लेकर साउथ अफ्रीका व फिनलैंड में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकी है. तो वहीं वनग्राम सिलपिड़ी में मोटे अनाजों का बीज बैंक चलाने वाली लहरी बाई के मुरीद प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति भी हैं और अब लालपुर की मंगला बाई ने डिंडौरी जिले का मान बढ़ाया है.

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