Shahdol: भाषा के रूप में संस्कृत की हुई रुचि कम, अभयानंद संस्कृत कॉलेज में बचे मात्र 60 विद्यार्थी

MP News in Hindi: शहडोल जिले का 62 साल पुराना अभयानंद संस्कृत महाविद्यालय छात्रों की भारी कमी का सामना कर रहा है. आज के समय में यहां मात्र 60 विद्यार्थी अध्ययन कर रहे हैं. महर्षि पारिणी संस्कृत और वैदिक विश्वविद्यालय उज्जैन से इसका संबंध है और उच्च शिक्षा विभाग के अंतर्गत ये आता है.

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अभयानंद संस्कृत कॉलेज में छात्रों की संख्या लगातार हो रही कम

Shahdol Abhayanand Sanskrit College: मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के शहडोल जिले के कल्याणपुर में स्थित अभयानंद संस्कृत महाविद्यालय में लगातार छात्रों की संख्या में कमी देखने को मिल रही है. वर्तमान में मात्र 60 विद्यार्थी ही यहां संस्कृत की पढ़ाई कर रहे हैं. साथ ही, यहां पर मात्र एक ही नियमित सहायक प्राध्यापक नियुक्ति है, जो कॉलेज के प्राचार्य की जिम्मेदारी भी संभाल रहे है... इसके पीछे मुख्य रूप से वजह संस्कृत भाषा को लेकर तेजी से कम हुई रुचि को माना जा रहा है.

अभयानंद संस्कृत कॉलेज में कम हुई छात्रों की संख्या

62 साल पुराना है अभयानंद संस्कृत कॉलेज

शहडोल के कल्याणपुर में स्थित 62 साल पुराना शाहकीय अभयानंद संस्कृत महाविद्यालय पुराने समय में संस्कृत भाषा के अध्ययन के लिए जाना जाता था. यहां पढ़ने वाले छात्र शास्त्री और आचार्य बनकर संस्कृत भाषा और कर्मकांड के छेत्र में अपना योगदान देते रहे हैं. लेकिन, वर्तमान में यह मात्र 60 विद्यार्थी ही अध्ययन कर रहे हैं. इस महाविद्यालय में पूरी तरह संस्कृत भाषा, परंपरागत पाठ्यक्रम, शास्त्री और वैदिक आचार्य की पढ़ाई होती है. महाविद्यालय का शिक्षण सत्र 1 जुलाई से शुरू होता है. वर्तमान में परीक्षा संचालित हो रही है.

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पूरे कॉलेज में केवल एक नियुक्ति

इस कॉलेज में उच्च शिक्षा विभाग ने सहायक प्राध्यापक के तीन पद और ग्रंथपाल के एक पद स्वीकृत किए हैं, लेकिन अभी मात्र एक नियमित सहायक प्रध्यापक ही पदस्थ है, जो प्रभारी प्राचार्य की भी जिम्मेदारी संभाल रहे है. इसके अलावा, एक अतिथि विद्वान भी है. जिसके चलते छात्रों की पढ़ाई में भी काफी समस्या आती है. यहां का भवन भी बहुत पुराना हो चुका है. हाल में ही सरकार से कुछ राशि मिलने पर भवन की रंगाई-पुताई और फर्श मरम्मत का काम कराया गया है. 

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नए छात्र नहीं दिखा रहे रुचि

सरकार संस्कृत भाषा के अध्ययन उत्थान के लिए लाख दावे कर रही है, लेकिन जमीनी हकीकत यही है कि जहां एक ओर इतने पुराने संस्कृत महाविद्यालय में अब भी शिक्षकों के पूरे पद नहीं भरे गए है, वहीं वर्तमान में नए छात्र भी परम्परागत संस्कृत के पाठ्यक्रम के अध्ययन में रुचि नहीं दिखा रहे हैं. इस वजह से आने वाले दिनों में समाज को कर्मकांड करने वाले शास्त्री और वैदिक आचार्य शायद नहीं मिल पाएंगे.

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