ऐसे कैसे पढ़ेगा MP ! 12 हजार स्कूलों में सिर्फ 1 शिक्षक, 9.5 हजार में तो बिजली ही नहीं

मध्यप्रदेश में सरकारी स्कूलों में शिक्षा व्यवस्था की असल तस्वीर बेहद बदरंग हैं. जो आंकड़े सामने आ रहे हैं वे बताते हैं कि यदि बच्चे यहां पढ़ रहे हैं तो वजह सिर्फ उनकी मजबूरी है. कहीं स्कूल जर्जर है तो कहीं बिजली तक नहीं है. राज्य में 12 हज़ार से ज़्यादा स्कूल सिर्फ एक शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं और करीब 9,500 स्कूल ऐसे हैं जहां अब तक बिजली पहुंची ही नहीं है.

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Madhya Pradesh School: मध्यप्रदेश में सरकारी स्कूलों में शिक्षा व्यवस्था की असल तस्वीर बेहद बदरंग हैं. जो आंकड़े सामने आ रहे हैं वे बताते हैं कि यदि बच्चे यहां पढ़ रहे हैं तो वजह सिर्फ उनकी मजबूरी है. कहीं स्कूल जर्जर है तो कहीं बिजली तक नहीं है. राज्य में  12 हज़ार से ज़्यादा स्कूल सिर्फ एक शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं और करीब 9,500 स्कूल ऐसे हैं जहां अब तक बिजली पहुंची ही नहीं है. इतना ही नहीं, सरकार ने सालों पहले जो क्लास रूम मंज़ूर किए थे, उनमें से 3,342 क्लास रूम अब भी अधूरे पड़े हैं. हैरानी की बात ये है कि करीब 2,972 स्कूलों में आज भी लड़कियों के लिए शौचालय तक नहीं हैं. मतलब सरकार ने जो वादे किए वो अधूरे हैं. पढ़िए हमारे संवाददाता आकाश द्विवेदी की ये ग्राउंड रिपोर्ट

वैसे मध्यप्रदेश की सरकार ये कह सकती है कि राज्य में शिक्षा की हालत पहले खराब थी, अब उस हालत में थोड़ा सुधार आया है. इसकी वजह सिर्फ कुछ आंकड़े हैं. लेकिन सवाल ये है कि क्या नए आंकड़े भी ऐसे हैं जिनपर आप गर्व कर सकें? दरअसल  2021 में UNESCO ने बताया था कि मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा एक-शिक्षक वाले स्कूल हैं — पूरे 21,077. अब 2024 की केंद्रीय रिपोर्ट कहती है कि राज्य में अब एक शिक्षक वाले स्कूलों की संख्या घटकर 12,210  ही रह गई है. अब इस आंकड़े पर हमारे नेता-प्रशासन अपनी पीठ थपथपाना चाहती है तो फिर क्या ही कहें...बहरहाल आगे बढ़ने से पहले कुछ और आंकड़ों पर गौर कर लेते हैं. 

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'अभावों के प्रबंधन' में माहिर है मध्यप्रदेश !

ऐसा लगता है कि बाकी राज्य जहां स्कूलों में दो-तीन शिक्षक लाने की कोशिश करते हैं वहीं मध्यप्रदेश ने यह तय किया कि स्कूल ही ऐसे बचाए जाए जहां एक शिक्षक ही काफी हो.जिस तरह पुराने ज़माने में एक ऋषि, एक गुरुकुल और सौ शिष्य हुआ करते थे, वैसे ही मध्यप्रदेश के गांवों में अब एक मास्टर, एक कमरा और कई सौ बच्चों की शिक्षा चल रही है. बस फर्क इतना है कि पहले ऋषि मुनि शिक्षा देते थे, और आज का मास्टर ड्यूटी, रजिस्टर, मिड-डे मील, सर्वे, पोलियो अभियान, और अगर बच जाए तो थोड़ा पढ़ा भी देता है. कई जगह तो मास्टर साहब इतने बहुउपयोगी हैं कि वे क्लास लेने से पहले झाड़ू लगाते हैं, फिर मिड-डे मील बनवाते हैं, फिर बच्चों को डाँटते हैं और फिर अपने सिर पर टपकती छत का प्लास्टर भी झाड़ते हैं. 

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सांदीपनि स्कूल में जमीन में बैठे स्टूडेंट्स. यहां एक साथ दो क्लास चलाया जा रहा है.

सांदीपनि स्कूल तो बना लेकिन हालात वही हैं

खैर राज्य में कुछ वीआईपी स्कूल भी हैं- जिनका नाम सीएम राइज़ से बदल कर सांदीपनि स्कूल हो गया है. जैसे किसी खटारा स्कूटर को “हेलिकॉप्टर” नाम दे दिया जाए और उम्मीद की जाए कि वो उड़ने लगे. नाम बदलने पर भी - तीन साल से बच्चे उस टीन की छत के नीचे पढ़ रहे हैं जो गर्मी में तंदूर बन जाती है और बारिश में टपकती छत के नीचे जलपरी जैसी उपस्थिति देती है. यहां एक ही हॉल में पाँच क्लासें चल रही हैं — गणित में जोड़-घटाना हो रहा है, अंग्रेज़ी में “is/am/are” की लड़ाई, संस्कृत वाले “अहं पठामि” चिल्ला रहे हैं और बाकी बच्चे “हम सुन नहीं पाति” की मुद्रा में हैं. यहां बाहर बोर्ड पर विधायक जी मुस्कुरा रहे हैं और अंदर स्कूल टीन की झोंपड़ी की शक्ल में रो रहा है. जगह इतनी कि बच्चों को दो पालियों में बांट दिया गया है — सुबह की चाय से शाम की रोटी तक तालीम जारी है. कुल 980 बच्चों पर एकाध टॉयलेट और उम्मीद का झूला टंगा हुआ है. इसी स्कूल में शिक्षक – प्रांजल श्रीवास्तव बताते हैं कि बहुत छोटे-छोटे कमरे हैं व्यवस्था सही नहीं है, बरसात के समय में क्लास के अंदर पानी घुस जाता है बच्चे टाट-पट्टी पर बैठे हैं.बैठने में भी दिक्कत होती है,टीचर स्टूडेंट दोनों को समस्या है यहां पर. स्कूल की प्रभारी प्राचार्य दिशा श्रीवास्तव  प्राचार्य भी बताती हैं कि स्कूल किराये  के भवन में चल रहा है. 3 साल से हमें बिल्डिंग नहीं मिल पा रही है.हम विषम परिस्थितियों में स्कूल चला रहे हैं. 

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खुले टीन शेड में एक साथ 5 कक्षाएं चलती हैं

जहां से पढ़े पूर्व राष्ट्रपति वहां की हालत जर्जर

अब बात भोपाल के उस स्कूल की जहां भारत के पूर्व राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा ने पढ़ाई की थी. उस स्कूल का नाम है जहांगीरिया स्कूल. स्कूल काफी पुराना है लेकिन ऐतिहासिक होने के बावजूद इसके रखरखाव पर किसी का ध्यान नहीं है. यहां अक्सर छत का प्लास्टर नीचे गिरकर छात्रों को इतिहास की गंभीरता समझता रहता है. यहां का पूरा एक फ्लोर ‘प्रवेश वर्जित' घोषित हो चुका है. स्कूल में घूमते हुए आपको मोटे अक्षरों में लिखा हुआ दिखाई दे जाता है- “ग़मों में भी मुस्कराओ”. कुछ ऐसा ही हाल हमीदिया गर्ल्स स्कूल का भी है. यहां प्राचार्य ने हमें कैमरा ही अंदर नहीं ले जाने दिया. हालांकि प्राचार्य वर्षा बनतोड़ बताती हैं कि शिक्षा के लिए यह बिल्डिंग डोनेट किया गया है. अब हम सरकार से चाहते हैं कि इसे और बेहतर बनाया जाए ताकि स्कूल और अच्छा हो सके. इन दिनों एडमिशन चल रहे हैं लिहाजा जहां जगह ठीक है वहीं हम बच्चों को पढ़ा रहे हैं. शिवपुरी से लेकर सतना तक हम जहां भी गए वहां स्कूलों की हालत हमें खराब ही मिली. 

भोपाल में यह जहांगिरिया स्कूल है. यहीं पढ़े हैं पूर्व राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा

हम बेहतर संसाधन देने की कोशिश कर रहे हैं: शिक्षा मंत्री

हालांकि इन सबके बीच स्कूल शिक्षा मंत्री उदय प्रताप सिंह की बातें थोड़ी उम्मीद जगाती हैं. NDTV के सवाल पर उन्होंने कहा- मुख्यमंत्री मोहन यादव के नेतृत्व में स्कूलों के मेंटेनेंस और स्कूलों के नए निर्माण के लिए अतिरिक्त कक्षों के लिए हमने तैयारी की हुई है. वित्त विभाग से स्वीकृति मिलते के बाद हम नए कक्ष देने वाले हैं. मेंटनेंस के लिए भी हमने बड़ी राशि दी है. चूंकि स्कूलों की संख्या हजारों में है और बच्चों की संख्या लाखों में लिहाजा मैं सहमत हूं कि आंशिक कमी की गुंजाइश रहती है लेकिन हमारा प्रयास हैं कि  बच्चों को बेहतर से बेहतर संसाधन दिला सकें. अब सवाल ये नहीं कि स्कूल कब बनेंगे…सवाल ये है कि जब बनेंगे तब तक बच्चे कक्षा 1 से निकल कर जीवन की कक्षा में न पहुंच जाएं. सरकार कहती है — “हम प्रयासरत हैं” और बच्चे कहते हैं — “हम प्रताड़ित हैं”
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