सांची के तहखाने में है 2500 साल पुराना 'खजाना' ! साल में सिर्फ 48 घंटे खुलता है, 363 दिन रहता है 'लॉक'

Sanchi Buddhist Stupa:सांची स्तूप के चेतियगिरि विहार में एक गुप्त तहखाना है,जहां गौतम बुद्ध के दो प्रिय शिष्य—सारिपुत्र और महामोद्गलायन—के 2500 साल पुराने पवित्र अवशेष सुरक्षित हैं. यह 'खजाना' सुरक्षा कारणों से साल भर बंद रहता है और सिर्फ नवंबर के आखिरी सप्ताह में दो दिन के लिए दर्शन हेतु खुलता है.

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Sanchi Stupa Mystery: मध्य प्रदेश की शांत पहाड़ियों पर बना सांची स्तूप सिर्फ पत्थरों का पुराना ढेर नहीं है, बल्कि यह करीब ढाई हजार साल पुराना जीता-जागता इतिहास है. इस जगह की भव्यता के बीच एक बहुत बड़ा रहस्य छिपा है—सांची में एक ऐसा तहखाना है,जिसके दरवाज़े पूरे साल बंद रहते हैं और सिर्फ दो दिन यानी 48 घंटे के लिए ही खुलते हैं. इस तहखाने के अंदर जो 'खजाना' रखा है, वह है गौतम बुद्ध के दो सबसे करीबी और प्यारे शिष्यों—महामोद्गलायन और सारिपुत्र—के पवित्र अस्थि कलश. इन कलशों के दुर्लभ दर्शन हर साल नवंबर के आखिरी सप्ताह में ही हो पाते हैं.

क्यों खुलता है यह 'खजाना'? इसका इतिहास जानिए

इस खास 'रिवाज' की शुरुआत 1952 में हुई थी. तब इन अस्थि कलशों को श्रीलंका से वापस सांची लाया गया था. देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू खुद इन अवशेषों को चेतियगिरि विहार में स्थापित करने आए थे. चूंकि अस्थि कलश नवंबर के आखिरी रविवार को स्थापित हुए थे, इसलिए इसी ऐतिहासिक पल को याद रखने के लिए हर साल नवंबर के आखिरी सप्ताह में दो दिन का सांची बौद्ध महोत्सव मनाया जाता है. ज़ाहिर है, यह सिर्फ एक पूजा नहीं बल्कि एक बहुत बड़ी ऐतिहासिक परंपरा है.

सांची बौद्ध स्तूप के तहखाने में रखे यही है वो अवशेष के पात्र जो साल में सिर्फ दो दिनों के लिए सार्वजनिक तौर पर दर्शाए जाते हैं.

तहखाने में ताला क्यों? सुरक्षा, श्रद्धा या कुछ और?

यह सवाल हर कोई पूछता है कि आखिर इतने ज़रूरी अवशेषों को साल भर बंद क्यों रखा जाता है? इसकी वजह है गहरी आस्था और सुपर सिक्योरिटी (अत्यधिक सुरक्षा) की भावना. दरअसल ये पवित्र अस्थियां 2500 साल पुरानी हैं.पुरातत्व एक्सपर्ट्स मानते हैं कि तहखाने के अंदर का तापमान, नमी और रोशनी को नियंत्रित रखा जाता है. यही व्यवस्था इन अवशेषों को 25 सदियों से सुरक्षित रखा जा सका है. इसके अलावा बौद्ध परंपरा भी यही कहती है कि पवित्र अवशेषों को ज़्यादा देर तक खुले में रखना ठीक नहीं है. इसलिए, विधि-विधान से पूजा खत्म होते ही, इन्हें वापस तहखाने में सुरक्षित बंद कर दिया जाता है. 

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सिर्फ दो दिनों का अंतर्राष्ट्रीय मेला

पूरे साल इंतज़ार करने के बाद, महोत्सव के पहले दिन सुबह-सुबह, श्रीलंका महाबोधि सोसायटी के बड़े भिक्षुओं की देखरेख में गहरे मंत्रोच्चार के साथ कलशों की पारंपरिक पूजा होती है.यह वह खास मौका होता है, जब अस्थि कलशों को तहखाने से बाहर निकालकर चेतियगिरि विहार में सिर्फ 48 घंटों के लिए दर्शन के लिए रखा जाता है। इन दो दिनों में पूरा सांची शांति की धुन से भर जाता है. श्रीलंका, थाईलैंड,जापान,कम्बोडिया,वियतनाम और भूटान जैसे देशों से हज़ारों बौद्ध अनुयायी और भिक्षु इस दुर्लभ दर्शन के लिए यहां आते हैं. यह महोत्सव सिर्फ मेला नहीं, बल्कि बुद्ध की सीख और उनके शिष्यों की तपस्या को सामने से महसूस करने का मौका है—मानो इतिहास खुद आपसे बात कर रहा हो.
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