Sagar: तीन रूपों में दर्शन देती हैं माँ हरसिद्धि, जानिए रानगिर शक्तिपीठ से जुड़ा रहस्य

मंदिर का निर्माण कब और कैसे हुआ इसका कोई प्रमाण नहीं है, लेकिन यह मंदिर बहुत पुराना और ऐतिहासिक है. कुछ लोग इसे महाराज छत्रसाल द्वारा बनवाए जाने की संभावना जताते हैं.

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नवरात्रि के दिनों में माता के दर्शन और आराधना करने का विशेष महत्व होता है.
सागर:

मध्य प्रदेश के सागर जिले में स्थित रानगिर में बुंदेलखंड का प्रसिद्ध शक्तिपीठ है. इस शक्तिपीठ (Rangir Shaktipeeth) में मां हरसिद्धि (Maa Harsiddhi) विराजमान हैं. यह शक्ति पीठ चारों तरफ से जंगल और पर्वत से घिरा हुआ है. प्राकृतिक सुंदरता के प्रतीक इस शक्तिपीठ में देवी के दर्शन के लिए हजारों भक्त आते हैं. ऐसा माना जाता है कि जो भी भक्त यहां आते है उनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. 

सागर जिले की रहली तहसील में पहाड़ों और जंगलों के बीच बसे रानगिर में प्रसिद्ध हरसिद्धि माता (Famous Shaktipeeth in Bundelkhand) का मंदिर है. यह क्षेत्र शक्ति साधना के लिए जाना जाता है. यहां शारदीय नवरात्रि (Shardiya Navratri) पर भव्य मेला लगता है. यहां प्रातः काल 4 बजे से मंगल आरती होती है.

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माता के 3 रूपों में होते हैं दर्शन

मान्यता है कि मां हरसिद्धि दिन में तीन अलग अलग रूपों में भक्तों को दर्शन देती हैं. प्रातः काल में माता बाल कन्या के रूप में, दोपहर बाद युवा शक्ति के रूप में और शाम के समय में बृद्ध माता के रूप में दर्शन देती हैं.

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यहां हर मनोकामना होती है पूरी

नवरात्रि के दिनों में माता के दर्शन कर आराधना करने का विशेष महत्व होने के कारण यहां भारी भीड़ होती है. प्राचीन काल से ऐसी मान्यता है कि माता से जो भी मन्नत मांगी जाती है वह पूर्ण होती है. इसी कारण माता को हरसिद्धि माता पुकारा जाता है.

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मंदिर का निर्माण एक रहस्य

मंदिर का निर्माण कब और कैसे हुआ इसका कोई प्रमाण नहीं है, लेकिन यह मंदिर बहुत पुराना और ऐतिहासिक है. कुछ लोग इसे महाराज छत्रसाल द्वारा बनवाए जाने की संभावना व्यक्त करते हैं. सन् 1726 में सागर जिले में महाराज छत्रसाल द्वारा कई बार आक्रमणों का उल्लेख इतिहास में वर्णित है. हरसिद्धि माता के बारे में कई किवदंतियां प्रचलित हैं. 

मंदिर के इतिहास की प्रचलित हैं कई किवदंतियां

एक किवदंती के अनुसार रानगिर में एक चरवाहा हुआ करता था. चरवाहे की एक छोटी बेटी थी. बेटी के साथ एक वन कन्या रोज आकर खेलती थी और उसे अपने साथ भोजन कराती थी. इसके साथ ही वह रोज एक चांदी का सिक्का देती थी. चरवाहे को जब इस बात की जानकारी लगी तो एक दिन छुपकर दोनों कन्या को खेलते देख लिया. चरवाहे की नजर जैसे ही वन कन्या पर पड़ी तो उसी समय वन कन्या ने पाषाण रूप धारण कर लिया. बाद में चरवाहे ने कन्या का चबूतरा बना कर उस पर छाया की व्यवस्था की और यहीं से मां हरसिद्धि की स्थापना हुई. 

दूसरी किवदंती के अनुसार भगवान शंकर जी ने एक बार सती के शव को हाथों में लेकर क्रोध में तांडव नृत्य किया था. नृत्य के दौरान सती माता के अंग पृथ्वी पर गिरे थे. सती माता के अंग जिन-जिन स्थानों पर गिरे वह सभी शक्तिपीठों के रूप में प्रसिद्ध हैं. ऐसी मान्यता है कि रानगिर में सती माता की राने (जांघें) गिरी थीं और इसीलिए इस क्षेत्र का नाम रानगिर पड़ा.

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