राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने सोमवार को कहा कि अयोध्या में भगवान राम के मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा की तिथि ‘प्रतिष्ठा द्वादशी' के रूप में मनाई जानी चाहिए, क्योंकि कई सदियों से परचक्र (दुश्मन का आक्रमण) झेलने वाले भारत की सच्ची स्वतंत्रता इस दिन प्रतिष्ठित हुई थी. पहले स्वतंत्रता थी पर प्रतिष्ठित नहीं थी. भागवत ने श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास के महासचिव चंपत राय को इंदौर में ‘राष्ट्रीय देवी अहिल्या पुरस्कार' प्रदान करने के बाद एक समारोह में यह बयान दिया.
भागवत ने कहा कि प्रतिष्ठा द्वादशी बहुशुक्ल द्वादशी का नया नामकरण हुआ है. पहले हम कहते थे बैकुंठ एकादशी अब उसको प्रतिष्ठा द्वादशी कहना है, क्योंकि अनेक शतकों से कष्ट झेलने वाले भारत के सच्ची स्वतंत्रता की प्रतिष्ठा उस दिन हो गई, पहले स्वतंत्रता थी पर प्रतिष्ठित नहीं थी.
15 अगस्त को भारत को...
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि 15 अगस्त को भारत को राजनीतिक स्वतंत्रता मिल गई, हमारा भाग्य निर्धारण करना हमारे हाथ में आ गया, हमने एक संविधान भी बनाया. एक विशेष दृष्टि जो भारत के स्व से निकलती है उसमें से वह संविधान निकाला लेकिन उसके जो भाव हैं उसके अनुसार चला नहीं. इसलिए सारे सपने साकार हो गए कैसे मान लें? ऐसी मन्नस्थिति समाज की थी क्योंकि आवश्यक स्वतंत्रता में स्व की जरूरत होती है. हमारा स्व राम, कृष्ण, शिव है. राम उत्तर से दक्षिण भारत को जोड़ते हैं. कृष्णा पूर्व से पश्चिम जोड़ते हैं और शिव भारत के कण-कण में व्याप्त हैं.
‘प्रतिष्ठा द्वादशी 11 जनवरी को मनाई गई'
मोहन भागवत ने कहा कि हम रामराज्य की कल्पना करते हैं और अहिल्या बाई होलकर का राज्य रामराज्य जैसा ही रहा. 1992 के बाद लोग बोलते थे मंदिर वही बनाएंगे, तारीख नहीं बताएंगे. पिछले वर्ष मंदिर की प्रतिष्ठा हुई. कोई झगड़ा नहीं हुआ. कोई कलह सामने नहीं आई. देवी अहिल्या ने अपना राज्य रामराज्य की तरह चलाया. प्रतिष्ठा द्वादशी 11 जनवरी को मनाई गई. अयोध्या में मंदिर बन गया. देश का संविधान स्व से बना है. स्व का अर्थ है राम, कृष्ण और शिव. इस तरह राम, कृष्ण, शिव ही भारत को जोड़ते हैं. भले ही हमारी पूजा पद्धतियां बदल गई, लेकिन हमारा स्व लागू है. इससे कोई इनकार नहीं कर सकता. राम दक्षिण भारत को उत्तर भारत से जोड़ते हैं. कृष्ण पूर्व से पश्चिम को और शिव भारत के कण-कण में व्याप्त हैं.
उन्होंने कहा कि भारत राम को प्रमाण मानता है और यह हमारी प्रकृति में भी है. भारत की 5000 वर्ष पुरानी परंपराओं ने ही सेक्युलरिज्म सिखाया है. राम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन स्व की जागृति का आंदोलन था. भारत की रोजी-रोटी का रास्ता राम मंदिर से होकर जाता है. भारत जीवन के मूल्यों के लिए जाना जाता है यही विचार दुनिया को दिग्दर्शित कर रहा है.
‘प्रणब मुखर्जी जब राष्ट्रपति थे तब...'
प्रणब मुखर्जी जब राष्ट्रपति थे तब मैं पहली बार उनसे मिलने गया था, तब संसद में घर वापसी को लेकर बहुत बड़ा हल्ला चल रहा था. उन्होंने हमसे कहा कि, आपके लोग कुछ लोगों को ‘वापस' ले आए तो आप लोग प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हो. ऐसा करने से हल्ला होता है, क्योंकि यह पॉलिटिक्स है. मैं भी अगर कांग्रेस पार्टी में होता और राष्ट्रपति ना होता तो मैं भी संसद में यही करता. फिर भी आप लोगों ने जो काम किया है उससे भारत का 30% आदिवासी लाइन पर आ गया है. मैंने उनसे कहा कि आदिवासी क्रिश्चियन बन जाता तो, उन्होंने कहा क्रिश्चियन नहीं देशद्रोही बन जाता, क्योंकि कन्वर्शन जड़ों को काटता है, कन्वर्शन अन्दर से आता है, सब अपने तरीके से चलो, सबको अपना तरीका चुनने का अधिकार है.
संघ प्रमुख ने कहा कि जब आंदोलन चल रहा था तब लोग ये ही प्रश्न पूछते थे कि, लोगों की रोजी रोटी की चिंता छोड़कर यह क्या मंदिर, मंदिर लगाया है. भारत की रोजी-रोटी का रास्ता राम मंदिर के प्रवेश द्वार से जाता है यह ध्यान रखना. यह पूरा आंदोलन भारत के स्वर की जागृति के लिए था. भारत फिर से भारत बनकर अपने पैरों पर खड़ा हो इसलिए था. अयोध्या में हजारों वर्षों से कलह की परंपरा चली थी, वह समाप्त हो जाए इसलिए था और अयोध्या वास्तव में अयोध्या बन जाए और वही हो रहा है, वही होगा.