Rani Durgavati Jayanti: मुगल सेना का कर दिया था सफाया, जानिए रानी दुर्गावती के साहस-बलिदान की कहानी

Rani Durgavati Birth Anniversary: चन्देलों की बेटी थी, गौंडवाने की रानी थी, चण्डी थी, रणचण्डी थी, वह दुर्गावती भवानी थी... ये पंक्तियां वीरांगना रानी दुर्गावती के लिए है. धर्म एवं राज्य की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान देने वाली, अदम्य साहस और शौर्य की प्रतिमूर्ति, महान वीरांगना रानी दुर्गावती के जयंती पर जानिए उनकी कहानी.

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500th Birth Anniversary of Rani Durgavati: रानी दुर्गावती (Rani Durgavati) की नेतृत्व क्षमता, साहस और बलिदान, राजनैतिक समझ, सामाजिक न्याय के कार्य, सांस्कृतिक समृद्धि और राज्य में स्थिरता बनाये रखने की कोशिशें अतुलनीय थीं. जन-कल्याण के प्रति इसी प्रतिबद्धता और मातृभूमि की सुरक्षा के संकल्प ने रानी दुर्गावती को एक महान नेतृत्वकर्ता और शासक के रूप में इतिहास में अमर बना दिया. उनका जीवन और न्यायपूर्ण शासन आज भी प्रेरणा का ऊर्जा स्रोत है. रानी दुर्गावती को भारतीय इतिहास (Indian History) की सर्वाधिक प्रसिद्ध महारानियों और बेहतर प्रशासकों में शुमार किया जाता है. उन्होंने जिस कुशलता से राज संभाला, उसकी प्रशस्ति इतिहासकारों ने भी की है. आईन-ए-अकबरी (Ain-i-Akbari) में अबुल फजल ने लिखा है कि "दुर्गावती के शासनकाल में गोंडवाना (Gondwana) इतना सुव्यवस्थित और समृद्ध था कि उनकी प्रजा लगान स्वर्ण मुद्राओं और हाथियों से चुकाती थी."

ऐसा था रानी का शासन

वीरांगना रानी दुर्गावती के शासन में गोंड संस्कृति ने देश की सांस्कृतिक विरासत को और समृद्ध किया है. उन्होंने अपनी पारंपरिक प्रथाओं से पर्यावरण के संवर्धन और संरक्षण में अग्रणी भूमिका निभाई है. आज़ादी के प्रति असीम प्रेम और किसी की अधीनता स्वीकार न करने की जिद और जुनून गोंड समाज की पहचान रही है. रानी दुर्गावती गोंड समुदाय के पराक्रम, भारतीय वीरता और शूरता की साक्षात् प्रतिमूर्ति थीं.

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मुगल साम्राज्य की अधीनता स्वीकार न करने वाली रियासतों के लिए मुगल काल में सुरक्षित रहना बहुत कठिन माना जाता था, क्योंकि विशाल मुगल सेना के सामने युद्ध भूमि में सामना करना बहुत चुनौतीपूर्ण था. ऐसे समय में गोंडवाना साम्राज्य की संरक्षिका के रूप रानी दुर्गावती के कार्य एवं अपूर्व वीरता के साथ राज्य के विकास में किया गया अभूतपूर्व योगदान सुनहरे अक्षरों में दर्ज है. रानी दुर्गावती के कार्यों और वीरता का गुण-गान आज भी जनजातीय क्षेत्रों में विभिन्न बोलियों और कई भाषाओं में किया जाता है, जो भावी पीढ़ियों के लिये प्रेरणास्पद है.

रानी दुर्गावती का संघर्ष मुगलों के खिलाफ था और वे जनजातीय संस्कृति और विरासत की सुरक्षा के प्रति कृत-संकल्पित थीं. उन्होंने मुगलों के खिलाफ एक सशक्त प्रतिरोध का आधार तैयार किया, जिसने देश के दूसरे क्षेत्रों में रहने वाले राजा-महाराजा और अधीनता स्वीकार न करने वाले अनेक समूहों को मुगल सत्ता के खिलाफ लगातार लड़ने के लिए प्रेरित किया. वर्तमान जबलपुर उनके साम्राज्य का केंद्र था. रानी ने करीब 16 वर्ष तक शासन किया. उन्होंने अपने कार्य-काल में अनेक मंदिर, मठ, कुएं, बावड़ियां तथा धर्मशालाएं बनवाईं. लोक कल्याणकारी कार्यों के लिए रानी की कीर्ति दूर-दूर तक फ़ैल गई.

रानी दुर्गावती के गढ़ मंडला पर मुगल सूबेदार बाजबहादुर की नजर थी, लेकिन युद्ध में रानी दुर्गावती ने उसकी पूरी सेना का सफाया कर दिया और फिर वह कभी पलटकर नहीं आया. मुगल सेना के कई हमलों को नाकाम करने वाली रानी दुर्गावती का खौफ दिल्ली की मुगल सत्ता को भी प्रभावित करने लगा. रानी दुर्गावती को अपनी रणनीतिक योग्यता, पारम्परिक सैन्य संसाधन और सैन्य शक्ति पर इतना विश्वास था कि वे विशाल मुगल सेना से कभी विचलित नहीं हुईं.

रणक्षेत्र में रानी ने मुगलों की अपेक्षा में बेहद छोटी सेना होने के बाद भी असीम वीरता का परिचय दिया. इस कारण मुगल सेना युद्ध मैदान से भाग खड़ी हुई. रानी दुर्गावती ने मुगलों के खिलाफ अपनी भूमि की रक्षा के लिए जिस अद्वितीय साहस का परिचय दिया, वह भारत की मातृशक्ति के पराक्रम, शौर्य और आत्मनिर्भरता का प्रतीक है.

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इन कामों के लिए भी रानी को किया जाता है याद

रानी दुर्गावती ने गोंडवाना की स्थिरता, विकास तथा कानून-व्यवस्था बनाये रखने के लिए प्रभावी न्याय प्रणाली की स्थापना की. उन्होंने स्व-शासन को बढ़ावा देते हुए गांवों को मजबूत किया, जिससे किसान खुशहाल हुए. रानी दुर्गावती ने कृषि, व्यापार और हस्तशिल्प को बढ़ावा दिया. उन्होंने कृषि सुधारों और सिंचाई योजनाओं को लागू किया, जिससे खाद्य उत्पादन बढ़ा. रानी दुर्गावती ने शिक्षा और संस्कृति के विकास पर अधिक जोर दिया. उन्होंने साहित्य, कला और संगीत को प्रोत्साहित किया, जिससे गोंडवाना की सांस्कृतिक धरोहर को बढ़ावा मिला.

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