मैं तुम्हें राखी भेजना चाहती हूं... पाक की जेल में बंद भाई के नाम बहन का खत, बालाघाट की महिला प्रसन्नजीत का वर्षों से कर रही इंतजार

Rakshabandhan 2025 Special: दिसंबर 2021 में बहन संघमित्रा खोब्रागड़े के लिए फोन आया. उन्हें पता चलता है कि उनका भाई प्रसन्नजीत पाकिस्तान के लाहौर के कोट लखपत जेल में बंद है. तब से लेकर अब तक बहन अपने भाई को छुड़वाने के लिए दफ्तरों के चक्कर काट रही है.

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Rakshabandhan 2025 Special Story: भाई रक्षाबंधन पर बहुत याद करती हूं. मैं तुम्हें राखी भेजना चाहती हूं, लेकिन तू भारत से बहुत दूर है. मैं तुझे राखी भेजना चाहती हूं. प्यार से भेजी राखी भारत सरकार कुबूल करें और पाकिस्तान के लाहौर कोट लखपत जेल भेजकर बहन का भाई को राखी बांधने का अरमान पूरा करें. हर बहन अपने भाई को राखी बांधती है, लेकिन मैं बदनसीब बहन अपने भाई को राखी नहीं बांध सकती. मां तुम्हें बहुत याद करती है और तेरा इंतजार करती है. तुम्हारी भांजियां भी तुम्हें याद करती और देखना चाहती है....

ये खत उस बहन का है, जिसका भाई पाकिस्तान की कोट लखपत सेंट्रल जेल में करीब 6 सालों से बंद है. उन्होंने करीब 14 साल से अपने भाई को राखी नहीं बांधी है, लेकिन बदनसीबी भी ऐसी की उनकी चिट्ठी पाकिस्तान की जेल में नहीं पहुंच सकती. दरअसल, पहलगाम हमले के बाद से पाकिस्तान में चिट्ठी या कुरियर की सर्विस बंद कर दी गई है.

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संघमित्रा खोब्रागड़े का कहना है कि मेरा भाई जिंदा है, तो मैं किसी और को राखी नहीं बांधूंगी. उन्होंने सौगंध ली है कि वो तब तक किसी को राखी नहीं बांधेगी, जब तक वह अपने भाई को पाकिस्तान की जेल से छुड़वा कर न लाए.

बालाघाट की संघमित्रा खोब्रागड़े के भाई प्रसन्नजीत रंगारी करीब आठ साल पहले अचानक घर से लापता हो गया था और वो पाकिस्तान के जेल में बंद है. 

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पढ़ा लिखा है पाकिस्तान की जेल बंद प्रसन्नजीत

मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले के खैरलांजी में रहने वाला प्रसन्नजीत रंगारी पढ़ाई में तेज था. इसलिए कर्ज लेकर उनके बाबूजी लोपचंद रंगारी ने उनको पढ़ने के लिए जबलपुर के गुरु रामदास खालसा इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी से बी. फार्मेसी की पढ़ाई की थी. पढ़ाई पूरी कर साल 2011 एमपी स्टेट फॉर्मसी काउंसिल में अपना रजिस्ट्रेशन किया था. इसके बाद वह फिर से आगे की पढ़ाई करना चाहता था. उसे फिर पढ़ने भेजा भी गया, लेकिन उसका मानसिक स्थिति खराब हो गया और वो आगे की पढ़ाई छोड़ घर आ गया. इसके बाद वो घर छोड़कर भाग गया. फिर खुद ही 8 माह बाद बिहार से लौट आया. जिसके बाद वह अपनी बहन के घर में रहने लगा.

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फिर घर से गया तो अब तक न लौटा

प्रसन्नजीत करीब एक साल तक अपनी बहन के यहां रहा. इसके बाद वह अपने माता-पिता के पास रहने चला गया. हालांकि इसके बाद वो फिर अपनी बहन के यहां महकेपार नाम के गांव में रहने आया, लेकिन कुछ दिन बाद वो अचानक घर से लापता हो गया. इसके बाद कुछ दिनों तक तलाश की गई, लेकिन कोई खबर न मिली. इसके बाद प्रसन्ननजीत के परिवार ने उसे मरा हुआ मान लिया.

एक फोन और फिर जगी उम्मीद

दिसंबर 2021 में अचानक महकेपार में रह रही संघमित्रा खोब्रागड़े के लिए फोन आया. उन्हें पता चलता है कि उनका भाई प्रसन्नजीत पाकिस्तान के लाहौर के कोट लखपत जेल में बंद है. इसके बाद बहन को खुशी तो हुई, लेकिन पाकिस्तान की बात सुन वह हैरान रह गई. ये फोन था कूलदीप सिंह का, जो 29 साल पाकिस्तान की उसी जेल में रहकर आए, जहां प्रसन्नजीत भी बंद है. तब से लेकर अब तक बहन संघमित्रा अपने भाई को छुड़वाने के लिए दफ्तरों के चक्कर काट रही है. उन्हें उम्मीद है कि वो अपने भाई को जेल से छुड़वा लेगी.

कोई गुनाह अब तक तय नहीं

बहन संघमित्रा खोब्रागड़े ने बताया कि मंत्रालय से प्रसन्नजीत के पहचान के लिए दस्तावेज मंगाए गए थे. उन्हीं में कुछ दस्तावेज थे, जिसमें उसमें प्रसन्नजीत का जिक्र था. वहां पर सुनिल अदे के नाम से बंद है. वहीं, उसने वहां अपना असली नाम और रिश्तेदारों के नाम भी बताए. उनकी बहन का कहना है कि 1 अक्तूबर 2019 में प्रसन्नजीत को पाकिस्तान के बाटापुर से हिरासत में लिया गया. उस पर किसी तरह के आरोप तय नहीं हुए हैं.

बेटे के इंतजार में पिता की मौत, मां को अब भी उम्मीद

वेरिफिकेशन के दस्तावेज भी उसी दिन आए थे, जिस दिन संघमित्रा और प्रसन्नजीत के पिता लोपचंद रंगारी की मौत हुई थी. बेटे के इंतजार में दुनिया से चल बसे और मां को लगता है कि उनका बेटा अब जबलपुर में है. वो मानसिक रूप से बीमार है और पड़ोसियों से खाना लेकर अपना गुजारा कर रही है.

पाकिस्तान की जेल में प्रसन्नजीत को छुड़ाने की जिम्मेदारी बहन संघमित्रा के ऊपर है. वो पूरे साल मजदूरी करके अपना जीवन यापन करती है. उनकी दो बेटियां है, उनके पालन पोषण की भी जिम्मेदारी है. वहीं उनके पति राजेश खोब्रागड़े भी मजदूरी करते हैं और उनकी सांस बीड़ी बनाने का काम करती है, लेकिन ये परिवार अपना गुजारा बड़ी मुश्किल से कर रहा है.

प्रसन्नजीत के जीजा राजेश खोब्रागड़े का कहना है कि इस प्रक्रिया में काफी खर्च होता है. कई दफ्तरों के चक्कर कांटने पड़ते हैं. ऐसे में काफी खर्चा हो जाता है. उन्होंने सरकार से मदद की गुहार लगाई है.

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