इंदौर में आदिवासी दिवस के मौके पर जननायक "टंट्या मामा भील" को किया गया याद

इंदौर में विश्व आदिवासी दिवस मनाया जा रहा है, इस अवसर पर आदिवासियों ने अपने जननायक टंट्या मामा भील को याद किया और उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण भी किया. आदिवासी संगठन 'जयस' ने देश भर में आदिवासियों पर हो रहे अत्याचार का विरोध किया.

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इंदौर:

विश्व आदिवासी दिवस का कार्यक्रम राजस्थान के मीणा हाईकोर्ट में चल रहा है तो वहीं मध्य प्रदेश के इंदौर में भी आदिवासी दिवस मनाया जा रहा है. इंदौर में आदिवासियों के जननायक रहे टंट्या मामा भील के नाम से बनाए गए चौराहे पर बड़ी संख्या में आदिवासी समाज के लोग सुबह से ही जुटने लगे. लोगों ने टंट्या मामा भील की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया. इस मौके पर सांस्कृति रैली भी निकाली गई. 

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हर साल 9 अगस्त को मनाया जाता है आदिवासी दिवस

हर साल 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस मनाया जाता है. इंदौर में जिस चौराहे पर आदिवासी दिवस मनाया जा रहा है पहले इस चौराहे का नाम भंवरकुआं चौराहा था लेकिन जब यहां जननायक टंट्या मामा की प्रतिमा स्थापित की गई तो इस चौराहे का नाम टंट्या मामा के नाम पर ही रख दिया गया. आदिवासी दिवस पर टंट्या मामा भील की प्रतिमा को अच्छी तरह से सजाया गया है, आदिवासी यहां आकर अपने जननायक की प्रतिमा को देखकर अपने नायक पर गर्व करते हैं.

आदिवासी संगठन "जयस" ने उठाई विरोध की आवाज

आदिवासियों के सबसे मजबूत संगठन "जयस" ने इस बार सांस्कृतिक रैली के दौरान आदिवासियों पर होने वाले अत्याचार का मुद्दा उठाया. जयस के राष्ट्रीय अध्यक्ष लोकेश मुजाल्दा ने मणिपुर में आदिवासियों के ऊपर हो रहे अत्याचार ,मध्य प्रदेश के सीधी में हुई घटना में और देश भर में आदिवासियों के ऊपर हो रहे अत्याचार का विरोध किया.

अंग्रेजों ने दी थी फांसी

आदिवासियों के जननायक टंट्या मामा भील का जन्म पंधाना तहसील के बडदा गांव में 26 जनवरी 1842 को हुआ था. अंग्रेजों के खिलाफ टंट्या भील ने जोरदार क्रांति की थी जिसके बाद 4 दिसम्बर 1889 को अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार करके फांसी की सजा दी थी. अंग्रेजों ने फांसी के बाद इनके शव को कालाकुंड पातालपानी  रेलवे स्टेशन के पास फेंक दिया था, आज इसी जगह पर उनकी समाधि बनाई गई है.

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