खुले आसमान में ठंड से ठिठुरते लोग ! बेतवा के 'मजबूरों' की परवाह किसी को क्यों नहीं  ?

MP Temperature : सर्दी के इस मौसम में इन बस्तियों में कोई चंदामामा नहीं निकलता. यहां निकलते हैं सिर्फ भूख, ठंड और सरकार के वादों के साये. आखिर कब तक गरीबों को अपने हालातों से लड़ते हुए इस सर्द मौसम से समझौता करना पड़ेगा? 

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खुले आसमान में ठंड से ठिठुरते लोग ! बेतवा के 'मजबूरों' की परवाह किसी को क्यों नहीं  ?

हर साल सर्दियों में गरीबों को ठंड से बचाने के नाम पर बड़ी योजनाएं बनती हैं और करोड़ों खर्च होने के दावे किए जाते हैं.  लेकिन विदिशा जिले के बेतवा नदी के किनारे रहने वाले लोग इन दावों की असलियत बयां कर रहे हैं. दरअसल, बेतवा नदी के किनारे कई सारे परिवार पन्नियों और कमजोर झोपड़ियों में रहने को मजबूर हैं. हर साल की तरह इस साल भी इन लोगों की कोशिश है कि कैसे भी करके सर्दी के सितम से बच जाएं. इनके पास न तो गर्म कपड़े हैं और न ही कोई ठोस आश्रय. रात ढलते ही ठंड से लड़ने का हर इंतजाम इनकी मजबूरी और बेबसी से हार मान लेता है. ठंड का ये मौसम महज़ कुछ दिन या हफ्तों की समस्या नहीं बल्कि हर साल आने वाली एक बड़ी मुसीबत है जिसे ये लोग चाह कर भी टाल नहीं सकते.

सर्दी के सितम में बच्चों की बदतर स्थिति

इन बस्तियों में छोटे-छोटे बच्चे ठंड से बचने के लिए अधूरे कपड़ों में घूमते दिखते हैं. उनके पास न तो पर्याप्त गर्म कपड़े हैं और न ही ठंड से बचने के लिए किसी तरह की मदद. एक तरफ सरकारी आंकड़ों में बच्चों को देश का भविष्य बताया जाता है लेकिन यहां के बच्चे अपनी भूख और ठंड से जूझते हुए बड़े हो रहे हैं.

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सरकारी योजनाएं बस्तियों से कोसों दूर

हर साल सरकार गरीबों के लिए कंबल, अलाव और रैन-बसेरा व्यवस्था की योजनाओं का प्रचार करती है. लेकिन बेतवा किनारे की इन बस्तियों तक ये योजनाएं नहीं पहुंच पातीं. यहां रहने वाले लोग हर साल मदद की उम्मीद करते हैं लेकिन उन्हें केवल वादा और भरोसा ही मिलता है.

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यह समस्या सिर्फ विदिशा तक सीमित नहीं है. देश के कई हिस्सों में ऐसी बस्तियां हैं जहां लोग ठंड को अपनी किस्मत मान चुके हैं. सरकारी नीतियां और योजनाएं क्यों इन जरूरतमंदों तक नहीं पहुंचतीं? यह एक बड़ा सवाल है.

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कब होगा समाधान ?

सर्दी के इस मौसम में इन बस्तियों में कोई चंदामामा नहीं निकलता. यहां निकलते हैं सिर्फ भूख, ठंड और सरकार के वादों के साये. आखिर कब तक गरीबों को अपने हालातों से लड़ते हुए इस सर्द मौसम से समझौता करना पड़ेगा? आखिर कब तक गरीब खुले आसमान के नीचे अपनी जान बचाने की कोशिश करते रहेंगे?

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