बारिश में भीगती किताबें और टूटे सपने... खतरे में आदिवासी बच्चों का भविष्य

GUNA NEWS: जिम्मेदार अधिकारियों का कहना है कि कम बच्चों की संख्या के कारण स्कूल भवन के लिए फंड नहीं मिल सका. परिजन सवाल उठा रहे हैं कि क्या संख्या के आधार पर शिक्षा का अधिकार तय होगा?

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MP NEWS: मध्यप्रदेश के गुना जिले के बमोरी विधानसभा क्षेत्र स्थित आदिवासी बहुल सांगई गांव में शिक्षा की स्थिति बदहाल है. यहां बच्चों को बीते तीन वर्षों से एक कच्चे टपरे में बैठकर पढ़ाई करनी पड़ रही है. यह गांव केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के लोकसभा क्षेत्र में आता है. स्कूल पहले एक सरकारी भवन में संचालित था, लेकिन भवन की हालत अत्यधिक जर्जर हो जाने के कारण उसे बंद कर दिया गया और विद्यालय को पंचायत द्वारा बनाए गए अस्थायी टपरे में शिफ्ट कर दिया गया.

बच्चों की पढ़ाई टपरे में किसी जुगाड़ की तरह चल रही है. बारिश के मौसम में हालात बेहद खराब हो जाते हैं—छत से पानी टपकता है, बच्चे भीग जाते हैं, किताबें गीली हो जाती हैं, स्कूल बैग खराब हो जाते हैं. एक छात्र ने बताया, “पिछले तीन साल से हम टपरे में पढ़ रहे हैं, बारिश में बहुत परेशानी होती है, किताबें भीग जाती हैं.”

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गांव के एकमात्र शिक्षक ने बताया कि स्कूल भवन में बारिश का पानी भर जाता था, इसलिए गांव वालों से कहा गया कि किसी और स्थान पर वैकल्पिक व्यवस्था हो, तब पंचायत ने टपरा बनवाया. अब 40 से अधिक छात्र टपरे में पढ़ाई कर रहे हैं, लेकिन ये व्यवस्था केवल मजबूरी में टिकाई जा रही है. सांगई गांव की स्थिति इतनी विषम है कि यहां स्कूल के अलावा कोई अन्य सरकारी भवन तक नहीं है. प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत यहां सिर्फ तीन मकान बने हैं, जो सभी परिवारों के लिए पर्याप्त नहीं हैं.

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कम बच्चों वाली स्कूलों को नहीं मिलती प्राथमिकता

इस मामले में जिला परियोजना समन्वयक (DPC) ऋषि शर्मा का बयान शिक्षा विभाग की सोच पर सवाल खड़े करता है. उनका कहना है कि केंद्र सरकार मरम्मत और भवन निर्माण के लिए बजट छात्रों की संख्या के आधार पर जारी करती है. इसलिए ऐसे स्कूल पीछे रह जाते हैं जहां बच्चों की संख्या कम होती है. सांगई का स्कूल इसी वजह से सूची से बाहर रह गया है.

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लेकिन बच्चों के परिजन इस तर्क से संतुष्ट नहीं हैं. उनका सवाल है कि अगर बच्चों की संख्या कम है तो क्या उन्हें अच्छी शिक्षा का अधिकार नहीं मिलेगा? क्या स्कूल भवन बनाना संख्या पर आधारित होना चाहिए या ज़रूरत पर? एक परिजन ने कहा, “कोई स्कूल की चिंता नहीं करता. टपरे में बच्चे पढ़ रहे हैं. अगर कम बच्चे हैं तो स्कूल का भवन नहीं बनेगा, ये कैसा न्याय है?”

जब यह मामला केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के संज्ञान में आया तो उन्होंने तुरंत गंभीरता दिखाते हुए गुना कलेक्टर किशोर कुमार कन्याल से फोन पर बात की और तत्काल कार्रवाई के निर्देश दिए. इसके बाद अब उम्मीद जगी है कि सांगई गांव के बच्चों को जल्द ही पक्की छत और बेहतर शिक्षा व्यवस्था मिल सकेगी.