एक महीने की दिवाली! आदिकाल से चली आ रही परंपरा, जानें इसके पीछे का धार्मिक कारण

मध्य प्रदेश के वनांचल क्षेत्र में दीपावली सिर्फ एक दिन नहीं बल्कि पूरे एक महीने तक मनाई जाती है. मालेगांव सहित अन्य गांवों में गोठान मेले, मुठवा बाबा पूजा, गोदोनी और पारंपरिक चित्रकला-संगीत की तैयारियां पहले से शुरू हो जाती हैं.

विज्ञापन
Read Time: 3 mins

One-Month Diwali Celebration: जहां देशभर में दीपावली कुछ दिनों तक ही मनाई जाती है, वहीं मध्य प्रदेश के वनांचल क्षेत्र में यह उत्सव पूरे एक महीने तक चलता है. यहां के आदिवासी समाज में दीपावली सिर्फ एक त्यौहार नहीं, बल्कि जीवन का उत्सव है, जो परंपरा, संस्कृति और श्रद्धा से जुड़ा हुआ है. हर गांव में अलग-अलग दिन दीपावली मनाई जाती है और इसी परंपरा ने सदियों से इस क्षेत्र की पहचान बनाई है.

वनांचल की अनोखी परंपरा

वनांचल क्षेत्र के गांवों में दीपावली का त्योहार एक दिन नहीं, बल्कि क्रमवार पूरे एक महीने तक मनाया जाता है. कौन-से गांव में दीपावली कब होगी, इसका निर्णय गांव के भोमका (मुखिया) और ग्राम पटेल करते हैं. इस तय कार्यक्रम के अनुसार ग्रामीण अपने-अपने गांवों में उत्सव की तैयारी करते हैं और आसपास के गांवों से लोग भी उसमें शामिल होते हैं.

मालेगांव में सजी रौनक

इसी परंपरा के तहत टिमरनी विकासखंड के मालेगांव में गोठान मेले का आयोजन किया गया. मेले में सैकड़ों ग्रामीण परिवारों के साथ पहुंचे और दिनभर हर्षोल्लास का माहौल बना रहा. वहां खिलौनों, खान-पान की चीजों, घरेलू सजावटी सामग्री और सब्जियों की दर्जनों दुकानें सजी थीं. महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग सभी पारंपरिक पोशाक में नजर आए.

पारंपरिक नृत्य और सांस्कृतिक झलक

इस अवसर पर भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा के प्रदेश उपाध्यक्ष एवं पूर्व विधायक संजय शाह विशेष रूप से मौजूद रहे. उन्होंने ग्रामीणों के साथ पारंपरिक डंडार नृत्य की थाप पर थिरकते हुए आदिवासी संस्कृति का आनंद लिया. इस मौके पर पूरा गांव झूम उठा और वातावरण उल्लास से भर गया.

Advertisement

ये भी पढ़ें- Haq Release Controversy: इमरान-यामी की फिल्म का रास्ता साफ, तय तारीख पर होगी रिलीज; हाईकोर्ट ने याचिका की खारिज

महीनेभर चलती हैं तैयारियां

ग्रामीण पूर्व जिला अध्यक्ष जयस राकेश ककोड़िया ने बताया कि वनांचल में दीपावली की तैयारियां एक महीने पहले से ही शुरू हो जाती हैं. महिलाएं घरों की साफ-सफाई करती हैं, दीवारों पर पारंपरिक चित्रकारी बनाती हैं और रंगोली से घर सजाती हैं. रात में ‘जगोरा' (रतजगा) की परंपरा निभाई जाती है, जिसमें पूरा गांव देर रात तक गीत-संगीत में डूबा रहता है.

Advertisement

धार्मिक मान्यता और पूजा-अर्चना

उत्सव की शुरुआत मुठवा बाबा की पूजा से होती है. इसके बाद गांव में ‘गोदोनी' निकाली जाती है, जिसमें गायकी (ठाठ्या) लोग सात प्रकार के पेड़ों की पत्तियों से बने चावरा लेकर चलते हैं. महिलाएं आरती करती हैं और अनाज भेंट स्वरूप देती हैं. यह आयोजन सामूहिक एकता, आस्था और प्रकृति के प्रति सम्मान का प्रतीक माना जाता है.

ये भी पढ़ें- 8 साल से लापता गीता! CBI भी नहीं ढूंढ पाई, अब खोजने पर मिलेगा 2 लाख का इनाम

Advertisement

पीढ़ियों को जोड़ती है  परंपरा 

वनांचल की यह एक महीने तक चलने वाली दीपावली सिर्फ उत्सव नहीं, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर है. यह परंपरा न सिर्फ गांवों को जोड़ती है, बल्कि नई पीढ़ी को भी अपने पूर्वजों की संस्कृति और आस्था से परिचित कराती है. यहां की दीवाली यह संदेश देती है कि रोशनी का पर्व केवल घरों में नहीं, बल्कि दिलों में भी जलना चाहिए.