Naxalite Surrender Balaghat: बालाघाट जिले में पिछले दिनों 14 लाख की इनामी नक्सली सुनीता सियाम ने अब आत्मसमर्पण कर समाज की मुख्यधारा में लौटने का फैसला किया था. 22 वर्षीय सुनीता ने महज 19 साल की उम्र में नक्सलियों का रास्ता चुना था, लेकिन अब उसने हिंसा छोड़ शांति की राह अपनाई है. सरकार के मिशन 2026 के तहत नक्सलियों के खिलाफ चल रहे अभियान के बीच सुनीता का यह कदम बदलाव की मिसाल बन गया है.
सुनीता के आधिकारिक सरेंडर से पहले उसके परिजन उससे मिलने बालाघाट पहुंचे. इस दौरान उसके पिता दसरू ओयाम, मां कुमली, चाची और गांव के सरपंच भी मौजूद रहे. मुलाकात के दौरान परिवार भावुक हो गया. सुनीता के पिता ने छत्तीसगढ़ी भाषा में बताया कि नक्सली उनकी बेटी को डरा-धमकाकर अपने साथ ले गए थे. उन्होंने कई बार विनती की, लेकिन माओवादी नहीं माने. यहां तक कि नक्सलियों ने धमकी दी थी कि अगर बेटी को नहीं भेजा, तो पूरे परिवार को गांव छोड़ना पड़ेगा.
सरपंच ने किया पिता के बयान का अनुवाद
क्योंकि सुनीता के पिता हिंदी नहीं बोल पाते, इसलिए उनके साथ आए गांव के सरपंच ने उनका बयान हिंदी में बताया. सरपंच ने कहा कि दसरू पहले कभी नक्सल संगठन से जुड़े थे, लेकिन बाद में उन्होंने हिंसा का रास्ता छोड़ दिया. उन्होंने यह भी बताया कि उनके गांव से कई युवाओं को नक्सलियों ने जबरन अपने साथ जोड़ लिया है, जिसके कारण इलाके में लगातार डर का माहौल बना हुआ है.
माता-पिता से मिलकर खुश दिखी सुनीता
सुनीता जब अपने माता-पिता से मिली, तो उसके चेहरे पर संतोष और सुकून झलक रहा था. लंबे समय बाद परिवार से मिलकर वह बेहद खुश नजर आई. उसके माता-पिता ने भी अपनी भाषा में अन्य नक्सलियों से अपील की कि वे भी आत्मसमर्पण करें और समाज की मुख्यधारा से जुड़ें.
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पुलिस की रणनीति आई काम
बीते कुछ हफ्तों से बालाघाट पुलिस नक्सल प्रभावित इलाकों में पोस्टर और बैनर लगा रही थी, जिनमें पहले सरेंडर कर चुके नक्सलियों की तस्वीरें और उनके संदेश दिखाए गए थे. इस अभियान का असर अब दिखने लगा है. 1 नवंबर की सुबह, सुनीता ने अपने पिता बिसरु सियाम के साथ पितकोना चौकी के चौरिया कैंप में आत्मसमर्पण किया. उसने अपनी INSAS राइफल, तीन मैगजीन, वर्दी और पिट्ठू बैग पुलिस को सौंप दिए.
समाज की मुख्यधारा में लौटने की मिसाल
सुनीता का आत्मसमर्पण न सिर्फ पुलिस की मेहनत का परिणाम है, बल्कि उन दर्जनों युवाओं के लिए भी एक संदेश है जो अभी भी नक्सली संगठनों में फंसे हुए हैं. यह कहानी बताती है कि बदलाव हमेशा संभव है—बस हिम्मत की जरूरत होती है. बालाघाट पुलिस अब बाकी नक्सलियों को भी शांति का रास्ता अपनाने के लिए प्रेरित कर रही है.
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