फर्जी एनकाउंटर में CBI जांच की मांग खारिज, HC ने मप्र पुलिस पर लगाया एक लाख का जुर्माना

MP High Court Verdict: एमपी हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच ने एक फेक एनकाउंटर मामले में मृतक के परिजनों की सीबीआई जांच की याचिका खारिज कर दी है. जिसके बाद अब परिजन सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी में हैं.

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फाइल फोटो

Fake Encounter Case: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (MP High Court) ने एक फर्जी एनकाउंटर मामले में पुलिस (MP Police) पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया है. हालांकि, हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच (MP High Court Gwalior Bench) ने इस मामले में दायर याचिका को खारिज कर दिया है. दरअसल, इससे पहले हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने इस मामले में पुलिस पर 20 हजार रुपये का जुर्माना लगाया था. फेक एनकाउंटर (MP Police Fake Encounter) में मारे गए युवक के परिजनों ने सिंगल बेंच के फैसले को चैलेंज करते हुए इस मामले की जांच सीबीआई (CBI Investigation) या किसी निष्पक्ष एजेंसी के कराए जाने की मांग की थी. हाईकोर्ट ने देरी से अपील पेल करने की बात कहते हुए याचिका को खारिज कर दिया है. अब परिजन सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) जाने की तैयारी कर रहे हैं.

एमपी हाईकोर्ट ने इस मामले में जांच अधिकारी के खिलाफ कई तल्ख टिप्पणियां की. हाईकोर्ट ने कहा कि उन्हें इतना लंबा अरसा बीत जाने के बावजूद एफआईआर पर खात्मा रिपोर्ट पर बयान के लिए कोर्ट में हाजिर नहीं हो सकें. विडम्बना यह है कि अपने बेटे को कथित फर्जी मुठभेड़ में मारने के मामले में न्याय पाने की 18 साल तक कानूनी लड़ाई लड़ते-लड़ते जनका बाई केवट की पिछले साल मौत भी हो गई. अब मृतक के भाई यह केस लड़ रहे हैं. वहीं मजदूरी करके पेट पालने वाले भाई बाल किशन का कहना है कि वे चाहे जैसे भी पेट पालें या कोर्ट का खर्चा उठाएं, लेकिन न्याय के लिए सुप्रीम कोर्ट भी जाएंगे.

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2005 में पुलिस उठाकर ले गई

यह मामला साल 2005 का बताया जा रहा है. ग्वालियर के डबरा में रहने वाले एक परिवार का आरोप है कि 22 अप्रैल 2005 को कथित रूप से डबरा पुलिस परिवार के तीन युवकों को अवैध रूप से उठाकर ले गई. परिजनों का कहना है कि पूछताछ के बाद दो युवकों को पुलिस ने छोड़ दिया था, लेकिन खुशालीराम नाम के युवक को नहीं छोड़ा था. परिवार वाले अफसरों के चक्कर काटते रहे, लेकिन खुशाली का कोई पता नहीं चला.

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सिंगल बेंच ने ये दिया था फैसला

5 फरवरी 2007 को समाचार पत्र के माध्यम से पता चला कि पुलिस ने मुठभेड़ में डकैत कालिया उर्फ बृजकिशोर को मार दिया है. अखबार में छपी फोटो देखकर खुशाली राम की मां ने उसे पहचान लिया कि वह उसके बेटे का शव है. उसने इस मामले में पुलिस अधिकारियों से शिकायत की. इसके बाद पुलिस ने उसका नाम खुशाली उर्फ कालिया लिख दिया और आर्म्स एक्ट के आरोपी बता दिया.

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इसके बाद खुशाली के परिजन हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ पहुंचे, जहां सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने मामले की उच्चस्तरीय जांच कराकर रिपोर्ट देने के आदेश दिए. साथ ही पुलिस पर बीस हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया.

परिजनों को कहा- सीआईडी से निष्पक्ष जांच संभव नहीं

सिंगल बेंच के फैसले के खिलाफ खुशाली का परिवार यह कहते हुए डबल बेंच में गया कि मामले की जांच सीआईडी से कराई जा रही है जो पुलिस का ही एक हिस्सा है. इस मामले में कई बड़े पुलिस अफसर जुड़े हैं इसलिए इसकी निष्पक्ष जांच संभव नहीं है. इसकी जांच सीबीआई या किसी अन्य निष्पक्ष जांच एजेंसी से करानी चाहिए. 

झांसी की जेल में बंद है असली डकैत

सुनवाई के दौरान एडवोकेट जितेंद्र शर्मा ने बताया कि एक आरटीआई में मिली जानकारी में यह खुलासा हुआ है कि जिस डकैत के एनकाउंटर का पुलिस ने दावा किया है वह जिंदा है और झांसी की जेल में बंद है. साथ ही सीआईडी की जांच पर भी सवाल उठाए गए कि उसने सिर्फ एक एफआईआर की जांच करने के बाद ही मामले में फाइनल रिपोर्ट लगा दी. इसी आधार पर मृतक के परिजनों ने सीबीआई जांच और मुआवजे की मांग करते हुए हाईकोर्ट की सिंगल बेंच में याचिका दायर की, जो खारिज हो गई. 2011 में सिंगल बेंच के फैसले के खिलाफ अपील पेश की गई. 

एडवोकेट जितेंद्र शर्मा ने कोर्ट को बताया कि इस मामले में हुए खुलासे के बाद एएसपी ने मुठभेड़ की जांच की. इसमें ये स्पष्ट हुआ कि डकैत कालिया तो जेल में बंद है. लेकिन, ये स्पष्ट नहीं हो सका कि मृतक कौन है?

कोर्ट में पेश नहीं हुए जांच अधिकारी

एडवोकेट शर्मा ने बताया कि मृतक के परिजनों ने जांच को लेकर आवेदन भी दिया था, लेकिन पुलिस ने ना तो एफआईआर दर्ज की और ना ही मामले की निष्पक्ष जांच की. खास बात यह है कि पुलिस ने मुठभेड़ मामले में दतिया जिले में दर्ज एफआईआर पर खात्मा रिपोर्ट कोर्ट में पेश कर दी, लेकिन कई साल बीत जाने के बावजूद जांच अधिकारी कोर्ट में पेश नहीं हुए. कोर्ट ने उनका और शासन का पक्ष सुनने के बाद सुरक्षित रखा फैसला सुना दिया. कोर्ट ने याचिका को देरी से आने का हवाला देते हुए अस्वीकार कर दिया. हालांकि, जुर्माने की राशि पांच गुना बढ़ा दी. कोर्ट ने इसमें काफी तल्ख टिप्पणी भी की और कहा कि जांच अधिकारी कोर्ट में पेश होने का समय नहीं निकाल सके, यह गंभीर मामला है. इसकी जांच करके दोषी लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट में अपील करेगा मृतक का परिवार

पीड़ित पक्ष के वकील जितेंद शर्मा का कहना है कि उनका पक्षकार इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी में है, क्योंकि वह निर्दोष को मुठभेड़ में मारने वाले अधिकारियों को सजा दिलाना चाहता है. उन्होंने कहा कि यह साफ हो गया है कि जिस कालिया को मारा गया वह जिंदा है. अब सुप्रीम कोर्ट में मामले की सीबीआई जांच की मांग के लिए अपील करने की तैयारी है.

न्याय के इंतजार में पिछले साल मां की हो गई मौत

न्याय के इंतजार में मृतक खुशाली राम की मां की पिछले साल मौत हो गई. वह किराए के कमरे में रहती थीं. अब इस मामले को उनका बड़ा बेटा बालकिशन लड़ रहा है. वह भी किराए के कमरे में रहता है और बेलदारी करता है. वह कहता है कि पेट पालना ही मुश्किल है, लेकिन भाई की मौत और उसे न्याय दिलाने के लिए लड़ाई तो जारी रखूंगा ही. सुप्रीम कोर्ट भी जाऊंगा ताकि दोषी को सजा मिल सके.

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