High Court On UCC: तीन तलाक से जुड़े मामले में MP हाईकोर्ट की टिप्पणी, UCC को बताया समाज की आवश्यकता

MP High Court Verdict: एमपी हाईकोर्ट ने तीन तलाक से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए यूसीसी की जरूरत को लेकर टिप्पणी की है. हाईकोर्ट ने कहा कि हमें देश में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) की आवश्यकता को समझना चाहिए.

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फाइल फोटो

MP High Court Comment on UCC: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (MP High Court) ने 'तीन तलाक' से जुड़े मामले की सुनवाई करते हुए 'समान नागरिक संहिता' (Uniform Civil Code) की आवश्यकता को लेकर टिप्पणी की है. एमपी हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ (MP High Court Indore Bench) ने मामले की सुनवाई करे हुए कहा कि हमें अब समान नागरिक संहिता (यूसीसी) की आवश्यकता को समझना चाहिए. जस्टिस अनिल वर्मा ने कहा कि कानून निर्माताओं को यह समझने में कई साल लग गए कि तीन तलाक (Triple Talaq) असंवैधानिक है और समाज के लिए बुरा है. अब हमें देश में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) की आवश्यकता को समझना चाहिए.

एमपी हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी तीन तलाक और दहेज मामले की सुनवाई करते हुए की. बता दें कि मुंबई में रह रहीं दो मुस्लिम महिलाओं ने पिछले हफ्ते भारतीय दंड संहिता, मुस्लिम महिला (विवाह के अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 2019 और दहेज निषेध अधिनियम 1961 के तहत एमपी हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसकी सुनवाई सोमवार को हुई.

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हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी

सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट की एकल पीठ ने कहा, "समाज में कई अन्य निंदनीय, कट्टरपंथी, अंधविश्वासी और अति-रूढ़िवादी प्रथाएं प्रचलित हैं, जिन्हें आस्था और विश्वास के नाम पर छुपाया जाता है. हालांकि, भारत के संविधान में पहले से ही अनुच्छेद 44 में नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता की वकालत की गई है, फिर भी इसे केवल कागजों पर नहीं, बल्कि वास्तविकता में बदलने की आवश्यकता है. एक अच्छी तरह से तैयार किया गया समान नागरिक संहिता ऐसी अंधविश्वासी और बुरी प्रथाओं पर लगाम लगा सकता है और राष्ट्र की अखंडता को मजबूत करेगा." 

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जस्टिस अनिल वर्मा ने कहा, "कानून निर्माताओं को यह समझने में कई साल लग गए कि तीन तलाक असंवैधानिक है और समाज के लिए बुरा है. हमें अब अपने देश में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) की आवश्यकता को समझना चाहिए." उन्होंने कहा कि तीन तलाक एक गंभीर मुद्दा है.

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याचिकाकर्ताओं ने की थी यह मांग

बता दें कि मुंबई की मुस्लिम मां-बेटी की याचिका का निपटारा करते हुए हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी की. अपनी याचिका में दोनों महिलाओं ने आईपीसी, दहेज अधिनियम और मुस्लिम महिला अधिनियम के तहत उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की थी. साथ ही महाराष्ट्र की सीमा से सटे बड़वानी जिले के राजपुर में न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी के समक्ष लंबित मामले को भी रद्द करने की मांग की थी.

ये है पूरा मामला

तीन तलाक से जुड़ा यह मामला बड़वानी जिले के राजपुर का है. जहां की एक मुस्लिम महिला ने अपनी सास, ननद और पति के खिलाफ कथित तौर पर 2 लाख रुपये दहेज के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित करने का आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज कराई थी. महिला ने कहा कि उसका निकाह 15 अप्रैल, 2019 को इस्लामिक रीति-रिवाजों के अनुसार हुआ था, इसके साथ ही उसने अपने पति पर तीन बार तलाक बोलने के बाद उसे तलाक देने का आरोप लगाया है.

इसके बाद पीड़ित महिला की शिकायत पर महिला के पति, सास और ननद के खिलाफ आईपीसी की धारा 498-ए और 323/34, दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3/4 और मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम की धारा 4 के तहत मामला दर्ज किया गया था. इस मामले के बाद पीड़ित महिला बड़वानी में अपने माता-पिता के साथ रह रही है.

याचिकाकर्ताओं ने दी ये दलील

वहीं याचिकाकर्ताओं के वकील ने दावा किया कि कथित अपराध मुंबई के घाटकोपर इलाके के चिराग नगर के मच्छी मार्केट में किया गया था. इसलिए, मध्य प्रदेश के राजपुर पुलिस स्टेशन को उक्त एफआईआर दर्ज करने का कोई अधिकार नहीं था. याचिकाकर्ताओं के वकील ने यह भी तर्क दिया कि मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम 2019 की धारा 3 (तलाक को अमान्य और अवैध घोषित करना) और 4 (तलाक घोषित करने की सज़ा) केवल पति के खिलाफ लागू होती है, न कि पत्नी के ससुराल वालों और अन्य रिश्तेदारों के खिलाफ.

अपने आदेश में हाईकोर्ट ने कहा, "यह कानून की एक स्थापित स्थिति है कि सीआरपीसी की धारा 177 में 'सामान्य नियम' को शामिल किया गया है, जो दूसरे स्थानीय क्षेत्र की अदालतों को अपराध का संज्ञान लेने की अनुमति देता है. इसके अलावा, यदि एक इलाके में किया गया अपराध दूसरे इलाके में दोहराया जाता है, तो दूसरे स्थान की अदालतें मामले की सुनवाई कर सकती हैं." अदालत ने कहा कि यदि किसी अपराध के परिणामस्वरूप किसी अन्य क्षेत्राधिकार में अपराध किया जाता है, तो उस क्षेत्राधिकार की अदालत भी धारा 179 के तहत मामले में संज्ञान ले सकती हैं.

सास और ननद के खिलाफ तीन तलाक का मामला किया रद्द

अदालत ने कहा कि 2019 के अधिनियम की धारा 3 ने तीन तलाक को अमान्य और अवैध घोषित कर दिया है, जबकि धारा 4 में तीन साल तक की जेल की सजा का प्रावधान है. अदालत ने अपने आदेश में कहा, "इसलिए, यह बिल्कुल स्पष्ट है कि धारा 3 और 4 के प्रावधान स्पष्ट रूप से केवल मुस्लिम पति के संबंध में ही लागू होते हैं. इसलिए, याचिकाकर्ता, जो शिकायतकर्ता की सास और ननद हैं, उनके ऊपर 2019 के अधिनियम के तहत तीन तलाक के अपराध के लिए मुकदमा नहीं चलाया जा सकता." इसलिए, 2019 के अधिनियम की धारा 4 के तहत याचिकाकर्ताओं के खिलाफ दर्ज अपराध को रद्द किया जाना चाहिए.

अदालत के आदेश में कहा गया है कि दहेज की मांग पूरी न होने पर शिकायतकर्ता के मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न से संबंधित एफआईआर में लगाए गए आरोपों को, रिकॉर्ड पर उपलब्ध प्रथम दृष्टया साक्ष्यों के मद्देनजर, रद्द नहीं किया जा सकता है.

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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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