शॉपिंग कॉम्प्लेक्स मामला! फर्जी जाति प्रमाण पत्र लगाकर हथियाई दुकानें, कलेक्टर से की शिकायत

मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में बने नए shopping complex की नीलामी में fake caste certificate scandal सामने आया है. आरोप है कि reserved category shops में SC/ST/OBC महिलाओं के लिए आरक्षित दुकानों पर फर्जी प्रमाण पत्र लगाकर बोली लगी और दुकानें हथियाई गईं.

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Fake Caste Certificate Scandal: मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में बने नए शॉपिंग कॉम्प्लेक्स की नीलामी अब विवादों में घिर गई है. आरोप है कि कुछ लोगों ने फर्जी जाति प्रमाण पत्र लगाकर आरक्षित श्रेणी में आने वाली दुकानों पर कब्जा जमा लिया. इस मामले में अखिल भारत अनुसूचित जाति परिषद और अन्य संगठनों ने कलेक्टर से शिकायत की है और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की मांग की है.

फर्जी प्रमाण पत्र से हासिल की दुकानें

सिवनी जनपद पंचायत कार्यालय के पीछे बने शॉपिंग कॉम्प्लेक्स की नीलामी कुछ दिनों पहले की गई थी. बताया जा रहा है कि नीलामी प्रक्रिया के दौरान कई लोगों ने खुद को अनुसूचित जाति (SC), जनजाति (ST) या अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) का बताकर आवेदन किया. लेकिन जांच में सामने आया कि इनमें से कुछ लोगों ने फर्जी जाति प्रमाण पत्र लगाकर दुकानों पर बोली लगाई और उन्हें हासिल कर लिया.

आरक्षित वर्गों के लिए थी दुकानें

मध्य प्रदेश पंचायत अधिनियम 1993 की धारा 65 के अनुसार, जनपद पंचायत द्वारा बनाए गए शॉपिंग कॉम्प्लेक्स की कुछ दुकानें आरक्षित वर्गों अनुसूचित जाति, जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, महिलाओं, स्वतंत्रता सेनानियों और शिक्षित बेरोजगारों के लिए निर्धारित की गई थीं. इसका उद्देश्य था कि समाज के इन वर्गों को आत्मनिर्भर बनाने का अवसर मिले. लेकिन फर्जी प्रमाण पत्रों के इस्तेमाल से यह उद्देश्य धूमिल हो गया.

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कलेक्टर से की शिकायत, जांच की मांग

इस मामले को लेकर अखिल भारत अनुसूचित जाति परिषद सहित कई सामाजिक संगठनों ने जिला कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा है. ज्ञापन में मांग की गई है कि फर्जी दस्तावेज़ लगाने वालों की दुकानों का आवंटन तुरंत निरस्त किया जाए और पूरे मामले की निष्पक्ष जांच कराई जाए. संगठनों ने यह भी कहा है कि दोषियों पर कानूनी कार्रवाई की जाए ताकि भविष्य में कोई इस तरह की धोखाधड़ी न कर सके.

प्रशासन पर उठे सवाल

यह मामला सामने आने के बाद प्रशासन की नीलामी प्रक्रिया पर भी सवाल उठने लगे हैं. लोग पूछ रहे हैं कि जब दुकानें आरक्षित वर्गों के लिए थीं, तो प्रमाण पत्रों की सही तरीके से जांच क्यों नहीं की गई?  

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