Shankar Prasad Patel: एक सैनिक का जीवन केवल वर्दी तक सीमित नहीं होता... वह त्याग, अनुशासन और सर्वोच्च बलिदान की परिभाषा बन जाता है. CISF के सहायक उप निरीक्षक (ASI) शंकर प्रसाद पटेल ने इसी बलिदान का जीवंत उदाहरण प्रस्तुत किया. साल 2022 में जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों से लोहा लेते हुए शंकर प्रसाद पटेल शहीद हो गए थे. अब उन्हें मरणोपरांत प्रेसिडेंट मेडल फॉर डिस्टिंग्विश्ड सर्विस से सम्मानित किया गया. गृह मंत्री अमित शाह ने यह पदक उनकी पत्नी लक्ष्मी पटेल और छोटे बेटे सुरेंद्र पटेल को सौंपते हुए कहा, 'राष्ट्र उनका यह त्याग कभी नहीं भूलेगा.'
पांच भाइयों में दूसरे नंबर पर थे शंकर प्रसाद पटेल
मध्य प्रदेश के मैहर के नौगवां गांव के रहने वाले शंकर प्रसाद पटेल का जीवन केवल एक सैनिक का जीवन नहीं था. वो अनुशासन और कर्तव्यनिष्ठा से परिपूर्ण थे. शंकर पांच भाइयों में दूसरे नंबर पर थे. शुरू से उनकी रुचि देश सेवा में थी, इसलिए उन्होंने CISF जॉइन की. उनके दो बेटे हैं. बड़ा बेटा संजय कुमार टोल प्लाजा में एम्बुलेंस ड्राइवर है, जबकि छोटा बेटा सुरेंद्र सॉफ्टवेयर इंजीनियर है.
तैनाती के कुछ घंटे बाद हो गए शहीद
शंकर प्रसाद CISF में सहायक उप निरीक्षक के तौर पर पदस्थ थे. वो छत्तीसगढ़ के भिलाई में पदस्थ थे. 18 अप्रैल 2022 को उन्हें विशेष ड्यूटी के तहत जम्मू-कश्मीर भेजा गया था. वहां तैनाती के कुछ ही घंटों बाद तड़के 4:30 बजे, जब वो अपने साथियों के साथ गश्त कर रहे थे, तब आतंकियों ने घात लगाकर हमला किया. गोलीबारी और ग्रेनेड हमले के बीच शंकर प्रसाद पटेल ने असाधारण वीरता का परिचय दिया. गोलियों की बौछार और बारूद के धुएं में वे अंतिम समय तक मोर्चा संभाले रहे और अपने साथियों की जान बचाते हुए शहीद हो गए. बता दें कि शंकर प्रसाद 2024 में रिटायर होने वाले थे.
बागवानी और सफाई का था शौक
बता दें कि शंकर प्रसाद पटेल केवल एक सैनिक नहीं थे, वो एक अनुशासित योद्धा थे. उनके परिवार और करीबी साथी बताते हैं कि वो कर्तव्य के प्रति अडिग, ईमानदारी के प्रतीक थे. उन्हें स्वच्छता और बागवानी से विशेष लगाव था. जब भी वो छुट्टियों में गांव आते थे तो अपना अधिकांश समय पेड़-पौधों की देखभाल और साफ-सफाई में लगाते थे.
परिवार के लिए उनका प्रेम जितना गहरा था, राष्ट्र के प्रति उनकी प्रतिबद्धता उतनी ही दृढ़ था. उनका मानना था, 'राष्ट्र सेवा केवल वर्दी पहनकर नहीं होती, बल्कि हर नागरिक को अपने हिस्से का योगदान देना चाहिए.'
बड़े बेटे संजय कुमार कहते हैं कि पिता का सपना था कि हम मेहनत करें और अपने देश की सेवा करें. उनका बलिदान हमें हमेशा यह याद दिलाएगा कि हम केवल अपने लिए नहीं, बल्कि अपने समाज और देश के लिए भी जी रहे हैं.
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