Mamleshwar Lok Project Cancelled: खंडवा जिले के ओंकारेश्वर में ममलेश्वर लोक प्रोजेक्ट को लेकर उठी जनता की आवाज़ आखिर सरकार तक पहुंच ही गई. दो दिनों से बंद पड़े बाजार, परेशान श्रद्धालु और सड़कों पर उतरकर विरोध जताते लोगों ने प्रशासन को बड़ा फैसला लेने पर मजबूर कर दिया. भारी विरोध और संतों के कड़े रुख के बाद सरकार ने ममलेश्वर लोक प्रोजेक्ट को तत्काल प्रभाव से रद्द कर दिया है.
जनता के दबाव ने बदला फैसला
ओंकारेश्वर की पवित्र नगरी में ममलेश्वर लोक निर्माण को लेकर लंबे समय से असंतोष था, लेकिन बीते दो दिनों में यह विरोध एक बड़े आंदोलन का रूप ले चुका था. बाजारों से लेकर घाटों तक हर गतिविधि ठप हो गई थी. स्थानीय लोग लगातार कह रहे थे कि यह प्रोजेक्ट उनके जीवन पर सीधा असर डाल रहा है, इसलिए इसे रोका जाना जरूरी है.
प्रशासन का आदेश- वर्तमान स्थल पर प्रोजेक्ट रद्द
अपर कलेक्टर काशीराम बड़ोले ने आदेश जारी करते हुए स्पष्ट कहा कि “वर्तमान स्थल पर ममलेश्वर लोक का विस्तार तुरंत निरस्त किया जाता है.” उन्होंने बताया कि इस क्षेत्र में हुए सर्वे के दौरान बड़ी संख्या में लोगों के विस्थापन की बात सामने आई थी. कई आश्रमों पर भी प्रोजेक्ट का असर पड़ रहा था, जिससे संत समाज और स्थानीय परिवारों में गहरी नाराजगी थी.
विस्थापन और आजीविका पर खतरा
सर्वे में यह साफ हुआ कि प्रोजेक्ट लागू होने पर कई परिवार अपनी जमीन और रोजगार दोनों खो देते. आश्रमों के विस्थापन को लेकर संत समाज भी विरोध में उतर आया था. लोगों का कहना था कि यदि प्रोजेक्ट यहां बनाया गया, तो उनके भरण-पोषण और जीवन में भारी संकट आ जाएगा.
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संत समाज का कड़ा रुख
संत समाज लगातार अपील कर रहा था कि ममलेश्वर लोक वर्तमान स्थल पर नहीं बनना चाहिए. उनका तर्क था कि इससे धार्मिक माहौल प्रभावित होगा और वर्षों से स्थापित आश्रम व परंपराएं खतरे में पड़ेंगी. यही कारण रहा कि जनता और संत समाज की एकजुटता ने सरकार पर दबाव बनाया.
प्रोजेक्ट किसी अन्य जगह बनाने का प्रस्ताव
अपर कलेक्टर बड़ोले ने यह भी कहा कि ममलेश्वर लोक प्रोजेक्ट को पूरी तरह छोड़ा नहीं जा रहा है. इसे दूसरी उचित जगह बनाया जाएगा, लेकिन वह स्थान संत समाज, जनप्रतिनिधियों और स्थानीय लोगों से चर्चा कर तय किया जाएगा. यानी अगली बार बिना जनता की सहमति के कोई कदम नहीं उठाया जाएगा.
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दो दिन का बंद
पिछले दो दिनों से ओंकारेश्वर पूरी तरह बंद रहा. होटल–ढाबे, चाय–नाश्ते की दुकानें और ऑटो-नाव सेवा ठप थी. ओंकारेश्वर में दवाइयां भी आसानी से नहीं मिल रहीं थीं. बुजुर्गों और श्रद्धालुओं को 2–3 किलोमीटर पैदल चलना पड़ा. महिलाएं और बच्चे भीषण परेशानी में रहे.