रीवा में है महामृत्युंजय मंदिर जहां मौत के कदम भी ठिठक जाते हैं ! सावन में उमड़ा भक्तों का सैलाब

Sawan First Somwar 2025: सावन के पहले सोमवार को देश के अलग-अलग मंदिरों में शिवभक्तों की कतार लगी हुई है और पूरे श्रद्धा भाव से भगवान भोलेनाथ की पूजा हो रही है. ऐसे में रीवा के महामृत्युंजय मंदिर में भक्तों का तांता लगा है. खास बात ये है कि ये दुनिया का एकमात्र महामृत्युंजय मंदिर है और कहा जाता है कि यहां आकर मृत्यु भी हार जाती है.

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Rewa Mahamrityunjay Temple: सावन के पहले सोमवार को देश के अलग-अलग मंदिरों में शिवभक्तों की कतार लगी हुई है और पूरे श्रद्धा भाव से भगवान भोलेनाथ की पूजा हो रही है. ऐसे में रीवा के महामृत्युंजय मंदिर में भक्तों का तांता लगा है. खास बात ये है कि ये दुनिया का एकमात्र महामृत्युंजय मंदिर है और कहा जाता है कि यहां आकर मृत्यु भी हार जाती है. रीवा के किले में स्थित इस मंदिर में 1001 छिद्र वाले भगवान शिव के दर्शन करने के लिए सुबह से भक्तों की लंबी लाइन लगी हुई दिखी. क्या है इस मंदिर की कहानी और सोमवार को वहां क्या तस्वीर सामने आई पढ़िए इस रिपोर्ट में

रीवा के महामृत्युंजय मंदिर में पूजा करती महिलाएं
Photo Credit: जावेद

हिरण को बाघ से मिला था यहां अभयदान

दरअसल महामृत्युंजय मंदिर को लेकर कई दिलचस्प कहानियां हैं. इसका इतिहास रीवा राजघराने का जितना पुराना है.जितना अद्भुत यह शिवलिंग है, उतनी ही अद्भुत इसके मिलने की कहानी है. कहा जाता है किसी जमाने में बांधव नरेश यहां पर शिकार खेलने आए थे. इसी  दौरान उन्होंने बिहर बिछिया नदी के संगम पर एक अद्भुत नजारा देखा. यहां  एक बाघ एक हिरण का पीछा कर रहा होता है लेकिन पास में ही मौजूद एक टीले पर चढ़ जाता है लेकिन बाघ उस टीले पर नहीं चढ़ता और नीचे ही रुक जाता है. थोड़ी देर बाद हिरण जब नीचे उतरता है तो बाघ उसको फिर दौड़ा देता है. हिरण फिर टीले पर चढ़ जाता है.महाराज ने यह नजारा देखा तो इतने प्रभावित हुए कि यहां पर किला बनाने का फैसला किया.

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सावन के पहले सोमवार को रीवा के महामृत्युंजय मंदिर में पूजा करने के लिए भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ा.
Photo Credit: जावेद

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इतना ही नहीं उन्होंने बांधव गढ़ से अपनी राजधानी रीवा में शिफ्ट कर दिया. जिसके बाद यहां किला बनाने का काम शुरु हुआ. इसके लिए जैसे ही टीले की खुदाई की गई उसके नीचे अद्भुत शिवलिंग मिला. तब महाराज को लगा कि इसी शिवलिंग की वजह से हिरण की जान बची थी. इसके बाद इस शिवलिंग को वहीं मंदिर बना कर स्थापित कर दिया गया. हालांकि मंदिर को लेकर एक दूसरी कहानी भी है. कहा जाता है कि एक बार लावण्या जाति के लोग यहां से गुजर रहे थे. उनके साथ एक अद्भुत शिवलिंग था. यात्रा के दौरान जब नदी के किनारे उनका पड़ाव पड़ा हुआ तो रात में उन्हें सपना आया शिवलिंग को यहीं पर छोड़कर आगे बढ़ जाएं. उन्होंने ऐसा ही किया. बाद में यहां पर मंदिर बना दिया गया.

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तीन बार मंदिर में होती है खास पूजा

बहरहाल जब से मंदिर  बना है तब से आज तक यहां पर साल के 12 महीने शिव भक्त पहुंचते हैं.लेकिन सावन महीने में यहां पर बेहद भीड़ होती है. महामृत्युंजय मंदिर में भगवान भोलेनाथ की दिन में तीन बार खास पूजा अर्चना होती है. पहली पूजा मंदिर खुलने पर, दूसरी दोपहर को मंदिर बंद होने पर और फिर शाम को तीसरी बार मंदिर बंद होने पर .भक्त भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए ,बेलपत्र, मदार के फूल, दूध, दही के साथ शहद लेकर पहुंचते हैं.खास बात ये है कि यहां पर रीवा महाराज भी रोज पूजा करने आते हैं. जब भी कोई भी महत्वपूर्ण व्यक्ति रीवा आता है, वह भगवान भोलेनाथ के दर्शन करने महामृत्युंजय मंदिर जरूर आता है. 

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