Health Services: अस्पताल में डॉक्टर और नर्स नदारद, यहां माली लगाते हैं टांके और करते हैं मरहम पट्टी

मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के मऊगंज (Mauganj) जिले का नईगढ़ी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में डॉक्टर और नर्स नदारद रहते हैं. यहां गर्भवती महिलाएं आयरन की गोली और ड्रिप के लिए तीन-तीन दिन तक भटकती रहती हैं. मरीज घंटों इंतजार करते रहते हैं, पर इलाज भगवान भरोसे है. हाल तो ऐसा है कि अस्पताल का माली ही पट्टी और टांके लगाने का काम करते दिखाई देते हैं.

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Health Services in MP: मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के मऊगंज (Mauganj) जिले का नईगढ़ी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र लापरवाही और भ्रष्टाचार का अड्डा बन चुका है. सरकारी रिकॉर्ड में लाखों रुपये की दवाएं और संसाधन दर्ज हैं, लेकिन सच्चाई बिल्कुल अलग है. अस्पताल में डॉक्टर और नर्स नदारद रहते हैं. यहां गर्भवती महिलाएं आयरन की गोली और ड्रिप के लिए तीन-तीन दिन तक भटकती रहती हैं. मरीज घंटों इंतजार करते रहते हैं, पर इलाज भगवान भरोसे है. हाल तो ऐसा है कि अस्पताल का माली ही पट्टी और टांके लगाने का काम करते दिखाई देते हैं.

इस हकीकत को कैमरे में कैद करने पहुंचे पत्रकारों पर ही मुसीबत टूट पड़ी. सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में पदस्थ डॉ. पुष्पेंद्र मिश्रा कैमरा देखते ही बौखला गए. उन्होंने पत्रकारों से हाथापाई शुरू कर दी. इसके साथ ही गाली-गलौज और धमकी दी कि ये खबर बिल्कुल भी न चलाई जाए और जब यह भी काम न आया, तो डॉक्टर ने नया खेल रच दिया. पत्रकार पर ही फर्जी शिकायत दर्ज करा दी.

लापरवाही उजागर करने वाले पर ही एफआईआर

चौंकाने वाली बात यह रही कि नईगढ़ी थाना पुलिस ने भी डॉक्टर के इशारे पर बिना किसी जांच, बिना साक्ष्य और बिना विवेचना के ही पत्रकार पर संगीन धाराओं में एफआईआर दर्ज कर दी. जबकि माननीय सर्वोच्च न्यायालय अपने एक टिप्पणी में कहा था कि पत्रकारों को पब्लिक प्लेस पर कवरेज करने का पूर्ण अधिकार है और प्रशासन को सहयोग करना चाहिए. प्रदेश के मुखिया मोहन यादव ने भी पत्रकारों की सुरक्षा और स्वतंत्रता को लेकर सख्त आदेश दिया था, जो इन अफसरों पर बेअसर साबित हो रहा है.

पुलिस ने बताई ये कहानी

इस पूरे मामले पर जब मऊगंज जिले के एसपी से सवाल किया गया, तो उन्होंने कहा कि पुलिस के पास आवेदन आया था, उसी के आधार पर हमने मामला दर्ज किया है. अब हम पूरी जांच करेंगे. जब उनसे यह पूछा गया कि क्या यह प्रोटोकॉल का हिस्सा है? क्या कवरेज कर रहे पत्रकार को समर्थन देने की जगह उसे झूठे मुकदमे में फंसाना सही है? तो एसपी ने साफ कहा कि मुझे इस बारे में कोई जानकारी नहीं है.

बिना जांच, एफआईआर

मामले की जांच करने पहुंचे मऊगंज बीएमओ प्रद्युम्न शुक्ला ने भी सिर्फ स्टाफ के कथनों के आधार और चिकित्सक की शिकायती आवेदन को ही आधार मानकर मामला दर्ज करने की बात कहते नजर आए, जबकि परिसर में लगे सीसीटीवी कैमरे में कैद दृश्य के बावजूद एफआईआर दर्ज करने के बाद जांच की बात कही जा रही है.

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एक तरफ अस्पताल का माली इलाज कर रहा है. वहीं, गर्भवती महिलाएं भटक रही हैं और डॉक्टर-नर्स गायब हैं और दूसरी तरफ जो पत्रकार सच्चाई उजागर करने की हिम्मत करता है, उसे ही अपराधी बना दिया जाता है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सिस्टम इसी तरह अपनी गंदगी पर पर्दा डालने के लिए ईमानदार आवाज़ों को कुचलता रहेगा?

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