Political History of Bhopal Lok Sabha Seat: मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh), भाजपा का ऐसा गढ़ जो पिछले दो बार के लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) से लगातार मजबूत होता दिख रहा है. प्रदेश में भाजपा को मजबूत करने में कई लोकसभा क्षेत्रों की अहम भूमिका रही है. जिनमें से एक भोपाल लोकसभा सीट (Bhopal Lok Sabha Seat) है. भले ही भोपाल लोकसभा सीट भाजपा का गढ़ कहलाती हो और पिछले 40 साल से यहां पर सिर्फ बीजेपी का ही प्रत्याशी जीता हो, लेकिन यह भी एक कड़वा सच है कि जो भी यहां से भाजपा का प्रत्याशी बना वो जीतने के बाद अपने राजनीतिक वजूद के लिए तरसता रहा है. अपवाद के रूप में एक-दो नेताओं को छोड़ दिया जाए तो अभी तक के सभी प्रत्याशी अपने वजूद के लिए जद्दोजहद करते नजर आए हैं. सबसे ज्यादा हैरानी की बात यह है कि जिन कांग्रेस (Congress) नेताओं को भोपाल लोकसभा सीट से हार मिली, वह केंद्रीय मंत्री, प्रदेश सरकार में मंत्री और राज्यसभा सांसद तक बने.
BJP ने दो बार से नहीं रिपीट किया प्रत्याशी
एक और खास बात यह है कि विजयी सीट होने के बावजूद भी बीजेपी ने पिछले दो बार से लोकसभा चुनाव में अपने प्रत्याशी को रिपीट नहीं किया है. 2014 के लोकसभा चुनाव में भारी मतों से जीते हुए आलोक संजर (Alok Sanjar) का टिकट काटकर 2019 के चुनाव में प्रज्ञा सिंह ठाकुर (Pragya Singh Thakur) को टिकट दिया गया. लेकिन, बंपर वोट से पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह (Digvijay Singh) को हराने के बावजूद भी प्रज्ञा ठाकुर को दोबारा टिकट न देते हुए उनका टिकट काटकर इस बार पूर्व महापौर आलोक शर्मा को टिकट दिया गया है.
BJP नेताओं का हुआ डिमोशन
अगर 1999 से अब तक के भाजपा प्रत्याशियों की बात करें तो 1999 में बीजेपी ने उमा भारती (Uma Bharti) को भोपाल से चुनाव लड़ाया था. चुनाव जीतने के बाद वह केंद्रीय मंत्री बनीं, फिर उन्हें प्रदेश की राजनीति में लाया गया और 2003 विधानसभा चुनाव के बाद उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया. हालांकि वह महज एक साल ही मुख्यमंत्री रह पाईं. वहीं 2004 से लेकर आज तक उमा भारती 20 साल बीत जाने के बाद भी दोबारा सीएम नहीं बन पाईं. एक साल पहले उन्होंने ऐलान किया कि मैंने 5 साल का ब्रेक लिया था और 2024 में लोकसभा चुनाव लडूंगी. अब आलम यह है कि 2024 में उनको प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहना पड़ा कि मैं चुनाव नहीं लड़ना चाहती थी इसलिए मुझे टिकट नहीं दिया गया.
वहीं राजनीति के संत कहलाने वाले कैलाश जोशी (Kailash Joshi) को 2004 में उमा भारती की जगह भोपाल से चुनाव लड़ाया गया और वह चुनाव जीतकर सांसद बने. इसके बाद 2009 में एक बार फिर उन्हें टिकट दिया गया और वह फिर सांसद बने. लेकिन, इसके बाद उन्हें फिर कोई पद नहीं दिया गया. उनके समर्थकों को उम्मीद थी कि पार्टी उनको किसी राज्य का राज्यपाल बनाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. उनके निधन के बाद उनके बेटे और मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री रह चुके दीपक जोशी को उम्मीद थी कि उनके पिता की मूर्ति लगवाई जाएगी व उनका स्मारक बनवाया जाएगा. लेकिन, ऐसा भी नहीं हुआ और उन्होंने नाराज होकर भाजपा छोड़ दी.
हर बार अलग प्रत्याशियों को उतारकर बीजेपी ने चौंकाया
मध्य प्रदेश भाजपा के प्रदेश कार्यालय मंत्री जैसे छोटे पद पर आसीन नेता आलोक संजर को 2014 में बीजेपी ने भोपाल से टिकट देकर सबको चौंकाया था. संजर चुनाव जीते और सांसद बने, लेकिन 5 साल के बाद उनका टिकट बदल दिया गया. अब पिछले 5 साल से वह अपने राजनीतिक पुनर्वास के इंतजार में हैं और जिसको पार्टी प्रत्याशी बनाती है, उसके प्रचार में जुट जाते हैं.
2019 में आलोक संजर का टिकट काटकर भाजपा ने अपनी फायर ब्रांड नेत्री प्रज्ञा सिंह ठाकुर को चुनाव में उतारा. प्रज्ञा का मुकाबला कांग्रेस के बड़े नेता पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह से था. 2019 लोकसभा चुनाव में भोपाल लोकसभा सीट इन दोनों के चुनाव लड़ने के कारण देश की सबसे ज्यादा चर्चित सीटों में से एक सीट रही. हालांकि प्रज्ञा ने दिग्विजय सिंह को 3.50 लाख से ज्यादा वोटों से हराया. माना जा रहा था कि प्रज्ञा सिंह ठाकुर का टिकट रिपीट किया जाएगा, लेकिन पार्टी ने प्रज्ञा का टिकट काटकर इस बार भोपाल के पूर्व महापौर आलोक शर्मा को टिकट दिया है.
कांग्रेस के नेताओं का हुआ प्रमोशन
अब अगर भोपाल लोकसभा सीट से कांग्रेस के हारे हुए प्रत्याशियों की बात करें तो जिन सुरेश पचौरी (Suresh Pachauri) को उमा भारती ने 1999 में लोकसभा चुनाव हराया था, वह सुरेश पचौरी बाद में केंद्रीय मंत्री बना दिए गए. इसके अलावा वे मध्य प्रदेश कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भी बने. वहीं पिछले दिनों उन्होंने कांग्रेस छोड़ बीजेपी का दामन थाम लिया. उम्मीद जताई जा रही है कि लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा उन्हें किसी बड़े ओहदे से नवाज सकती है.
वहीं, जिन पीसी शर्मा (PC Sharma) को 2014 में आलोक संजर ने लोकसभा चुनाव हराया. वह पीसी शर्मा 2018 की कांग्रेस की प्रदेश सरकार में जनसंपर्क मंत्री बना दिए गए. यही नहीं सबसे खास बात यह है कि जिन दिग्विजय सिंह को प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने 2019 में लोकसभा चुनाव हराया, वह दिग्विजय सिंह वर्तमान में राज्यसभा सदस्य हैं. कुल मिलाकर कांग्रेस के हारे हुए प्रत्याशी हारने के बाद भी बड़े पदों पर आसीन रहे और उनको हराने वाले बीजेपी नेता अपने राजनीतिक भविष्य के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
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