Lok Sabha Election 2024: ना संगठन, ना नेता, ना उम्मीदवारों में कोई उत्साह! ऐसे कैसे होगी कांग्रेस की नैया पार

Lok Sabha Polls 2024: कांग्रेस के राज्यसभा सांसद विवेक तंखा, जो पूर्व में लोकसभा के उम्मीदवार रह चुके हैं उन्होंने चुनाव न लड़ने की घोषणा कर दी. उसके बाद वर्तमान विधायक लखन घनघोरिया, पूर्व विधायक एवं मंत्री तरुण भनोट, संजय यादव और विनय सक्सेना ने भी संगठन को सूचित कर दिया कि वे चुनाव लड़ने में इच्छुक नहीं है. लोकसभा के पूर्व उम्मीदवार रहे डॉक्टर आलोक चंसोरिया ने भी भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया है.

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Lok Sabha Election 2024 News: महाकौशल अंचल के सबसे बड़े शहर जबलपुर (Jabalpur) में इन दिनों कांग्रेस की स्थिति बहुत दयनीय है, कांग्रेस (Congress Party) के नगर अध्यक्ष और महापौर (Jabalpur Mayor) जगत बहादुर सिंह अन्नू ने पिछले दिनों भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) यानी बीजेपी (BJP) की सदस्यता ग्रहण कर ली थी, उसके बाद से प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी (Jitu Patwari) ने ना तो इस महाकौशल के महत्वपूर्ण शहर की तरफ कोई ध्यान दिया ना ही संगठन में किसी नए अध्यक्ष को नियुक्त किया. लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election) सिर पर हैं, लेकिन जबलपुर में बिना अध्यक्ष वाली कांग्रेस के संगठन में कोई भी हलचल दिखाई नहीं दे रही है. बिना अध्यक्ष के संगठन कर भी क्या सकता है? जब कोई निर्णय और नीति तय करने वाला ही ना हो तो क्या ही हो सकता है? भारतीय जनता पार्टी से वर्तमान में एक ही विधायक (BJP MLA) हैं, जो जबलपुर पूर्व (Jabalpur East) क्षेत्र से विजयी हुए हैं. इसके बावजूद भी लोकसभा चुनाव में ना तो वर्तमान और ना ही पूर्व विधायक किसी तरह की कोई सक्रियता संगठन में नहीं दिखा रहे हैं, ना ही अपने विधानसभा  क्षेत्र में कांग्रेस की कोई की गतिविधियां दिखाई पड़ रही हैं. कुछ वर्तमान कांग्रेस के पार्षद ही कांग्रेस का नेतृत्व संभाले हुए हैं.

चुनाव लड़ने में नहीं है नेताओं का कोई रुझान 

एक तरफ भारतीय जनता पार्टी ने 15 दिन पूर्व अपनी पहली लिस्ट (BJP Lok Sabha Candidates 1st List) में ही जबलपुर (Jabalpur Lok Sabha BJP Candidate) के आशीष दुबे (Ashish Dubey) को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है.

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आशीष भारतीय जनता पार्टी के ग्रामीण अध्यक्ष रह चुके हैं, जिनकी संगठन और आम जनता में अच्छी पकड़ है. वहीं दूसरी तरफ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राज्यसभा सांसद विवेक तंखा, जो पूर्व में लोकसभा के उम्मीदवार रह चुके हैं उन्होंने चुनाव न लड़ने की घोषणा कर दी. उसके बाद वर्तमान विधायक लखन घनघोरिया, पूर्व विधायक एवं मंत्री तरुण भनोट, संजय यादव और विनय सक्सेना ने भी संगठन को सूचित कर दिया कि वे चुनाव लड़ने में इच्छुक नहीं है. लोकसभा के पूर्व उम्मीदवार रहे डॉक्टर आलोक चंसोरिया ने भी भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया है.

अब जो बचे हुए नेता है उनमें पूर्व नगर अध्यक्ष दिनेश यादव सौरभ नाटी शर्मा और अंजू सिंह बघेल ही चुनाव लड़ने के इच्छुक बताए जा रहे हैं, लेकिन इनकी भी अपनी शर्त है. इनका संगठन से कहना है कि चुनाव के लिए फंड की व्यवस्था संगठन करे.

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ऐसा जबलपुर में पहले भी देखा गया है कि चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी को ना सिर्फ फंड बल्कि अपने पूरे चुनाव की व्यवस्था, कार्यकर्ता की व्यवस्था स्वयं के खर्चे से करनी पड़ती है, जबलपुर में चुनाव प्रत्याशी ही लड़ता है बाकी नेता टांग खींचने में लगे रहते है. कॉंग्रेस की आर्थिक हालात भी  कठिन दिख रहा है. जबलपुर से जो भी प्रत्याशी कांग्रेस से चुनाव लड़ना चाह रहा है उसका कहना है कि फंड की व्यवस्था संगठन की ओर से की जानी चाहिए कार्यकर्ताओं की व्यवस्था, चुनाव लड़ने वाला प्रत्याशी स्वयं कर लेगा. 

भारतीय जनता पार्टी की तैयारियां जोरों पर है

भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी आशीष दुबे ही नहीं बल्कि पूरा संगठन टिकट घोषित होने के बाद से ही उनके साथ काम कर रहा है. प्रतिदिन भारतीय जनता पार्टी के कार्यालय में मंडल और बूथ प्रमुखों की बैठक की जा रही है. आशीष दुबे ने भी अपना 15 दिन का समय ग्रामीण क्षेत्रों में बैठक करने और दौरे करने में लगाया है, वह लगातार बुजुर्ग नेताओं से घर-घर जाकर मिल रहे हैं और युवा कार्यकर्ताओं की देर रात तक बैठक ले रहे हैं.

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बताया जा रहा है कि इन 15 दिनों में आधे से ज्यादा लोकसभा क्षेत्र का दौरा आशीष  कर चुके हैं , लोगों को लगता है कि आशीष दुबे शहरी क्षेत्र में कम जाने पहचाने प्रत्याशी हैं, तो उन्होंने इन 15 दिनों का उपयोग लोगों के बीच जाकर अपनी छवि बनाने में किया है.

आशीष दुबे पारंपरिक रूप से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) परिवार के निर्विवाद, स्वच्छ छवि वाले  नेता रहे हैं, इसलिए जो लोग उन्हें नहीं भी जानते उनके लिए मोदी (PM Modi) के लिए वोट का विकल्प खुला है. वैसे भी पिछले लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के राकेश सिंह सांसद रहे हैं और पिछला चुनाव वह चार लाख से भी ज्यादा मतों से जबलपुर में जीते थे. इस बार मोदी फैक्टर (Modi Factor), मोदी की गारंटी (Modi's guarantee) और राम मंदिर (Ram Mandir) जैसे मुद्दे आशीष के लिए काम के साबित होंगे. इन्हीं सबके चलते कांग्रेस में न सिर्फ प्रत्याशियों का टोटा है बल्कि जो प्रत्याशी चुनाव लड़ने के इच्छुक है वह भी किसी तरह का उत्साह नहीं दिखा रहे हैं.

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