एक्टर अक्षय कुमार व अन्य को हाईकोर्ट का नोटिस, फिल्म जॉली LLB-3 के गाने “भाई वकील है” पर आपत्ति का मामला

MP News: मध्य प्रदेश की जबलपुर हाईकोर्ट बॉलीवुड के मशहूर एक्टर अक्षय कुमार को नोटिस जारी किया है. पूरा मामला जॉली एलएलबी 3 फिल्म के एक गाने से जुड़ा हुआ है.

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Madhya Pradesh News: मध्यप्रदेश हाई कोर्ट की युगलपीठ ने एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए अभिनेता अक्षय कुमार सहित अन्य लोगों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. मुख्य न्यायाधीश संजीव सचदेवा और न्यायमूर्ति विनय सराफ ने फिल्म जॉली एलएलबी-3 के गाने “भाई वकील है” को चुनौती संबंधी मामले में अभिनेता अक्षय कुमार, अरशद वारसी, निर्माता आलोक जैन, अजित अंधारे और निर्देशक सुभाष कपूर सहित अन्य को नोटिस जारी किया है.

अदालत ने 17 सितंबर तक जवाब दाखिल करने की समय-सीमा तय की है जबकि फिल्म की रिलीज 19 सितंबर को प्रस्तावित है.

दरअसल जबलपुर निवासी एक युवा अधिवक्ता ने जनहित याचिका लगाी थी. जनहित याचिका में राज्य शासन, गृह विभाग के प्रमुख सचिव, भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण सचिव तथा सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (सीबीएफसी) के चेयरमैन को भी पक्षकार बनाया गया है.

अधिवक्ता की आपत्ति

गोविंद भवन कॉलोनी, साउथ सिविल लाइंस, जबलपुर निवासी अधिवक्ता प्रांजल तिवारी ने यह याचिका दायर की है. उनकी ओर से अधिवक्ता प्रमोद सिंह तोमर और आरजू अली पैरवी करेंगे. याचिकाकर्ता का तर्क है कि गीत के बोल वकालत जैसे गरिमामय पेशे को बदनाम करने का प्रयास करते हैं. गीत में प्रयुक्त शब्दावली—जैसे “रगों में तगड़मबाजी है, हर ताले की चाबी है… हर केस की पैकेज डील है, फिक्र न कर तेरा भाई वकील है” न केवल अनुचित है बल्कि कानूनी पेशे की छवि को आहत करती है.

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वकीलों की वेशभूषा का मज़ाक उड़ाने का आरोप

याचिका में कहा गया है कि गाने में अक्षय कुमार और अरशद वारसी वकीलों की वेशभूषा नेकबैंड और गाउन पहने नाचते हुए दिखाई देते हैं. यह आचरण न्यायालयों में अपनाए जाने वाले गंभीर और गरिमामय गणवेश का उपहास करता है. वकालत का पेशा जिम्मेदारी और अनुशासन का प्रतीक है, जिसे इस प्रकार मनोरंजन के नाम पर हास्यास्पद रूप में नहीं दिखाया जाना चाहिए. 

इलाहाबाद हाई कोर्ट का संदर्भ

राज्य की ओर से पेश अधिवक्ता ने अदालत को अवगत कराया कि इलाहाबाद हाई कोर्ट इसी प्रकार की एक याचिका पहले ही खारिज कर चुका है. वहां भी “भाई वकील है” गीत के आधार पर फिल्म की रिलीज पर रोक लगाने की मांग की गई थी, जिसे अदालत ने अस्वीकार कर दिया था. इस जानकारी को रिकॉर्ड पर लेते हुए हाई कोर्ट ने टिप्पणी की कि यदि याचिका में निर्माता और निर्देशक का नाम शामिल नहीं किया गया होता तो उस पर कोई आदेश पारित करना संभव नहीं था.

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विधिक और सामाजिक पहलू

याचिका के अनुसार, गीत के बोल न केवल अपमानजनक और अश्लील हैं बल्कि युवाओं पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं. इसमें कहा गया है कि फिल्म में इस तरह का चित्रण न्यायपालिका और वकालत पेशे की गरिमा को ठेस पहुंचाता है और यह सिनेमैटोग्राफ अधिनियम, 1952 की धारा 5(बी) में वर्णित सिद्धांतों का उल्लंघन है. 

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