Prophet Muhammad नहीं हैं इस्लाम धर्म के प्रवर्तक, ये सच्चाई आपको हैरान कर देगी

Last Prophet in Islam: खुद पैगंबर मुहम्मद ने अरब के लोगों से फरमाया था कि मैं कोई नया धर्म लेकर नहीं आया हूं, बल्कि वही धर्म (दीन) लेकर आया हूं, जो तुम्हारे बाप इब्राहीम का धर्म था.

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Last Prophet in Islam: इतिहास की किताबों में पैगंबर मुहम्मद (Prophet Muhammad-PBUH) को इस्लाम धर्म (Religion Of Islam)के प्रवर्तक (Founder) यानी इस्लाम धर्म की बुनियाद रखने वाले के तौर पर बताया जाता है. लेकिन, इस्लामी तालीम (Islamic Education) के मुताबिक ये बातें सही नहीं है. इस्लाम धर्म में दुनिया के सबसे पहले इंसान यानी आदम अलैहिस्सलाम (Adam -PBUH) को पहला पैगंबर माना जाता है. वहीं, पैगंबर मुहम्मद (PBUH) को इस्लाम धर्म के एक लाख 24 हजार पैगंबरों की श्रृंखला में आखिरी पैगंबर माना जाता है. यानी इस्लाम धर्म के कुल एक लाख 24 हजार पैगंबरों में से मोहम्मद (PBUH) आखिरी पैगंबर यानी ईशदूत हैं.

इसके बारे में कुरआन शरीफ की सूरह शूरा की आयह नम्बर 13 में अल्लाह ने इस तरह फरमाया है कि ऐ मुहम्मद  (PBUH) आप लोगों से कह दीजिए कि अल्लाह तआला ने तुम लोगों के लिए धर्म का वही तरीका तय किया है, जिसका उसने (अल्लाह ने) नूह (मनु) को हुक्म दिया था. और ए रसूल (मुहम्मद) जो किताब हमने आप पर भेजा है. ठीक इसी तरह का हुक्म हमने इब्राहीम, मूसा और ईसा को भी दिया था कि धर्म को कायम करों और आपस में फूट मत डालों.

कुरआन में बताया गया है आखिरी नबी

इसके बारे में कुरआन शरीफ की 33वें चैप्टर सूरह अल अहज़ाब की खतमुन नबीयीन (पैगंबरों की मुहर) शीर्षक से कुरान की आयत नंबर 40 में अल्लाह ने इस तरह फरमाया है कि "मुहम्मद किसी भी आदमी के पिता नहीं है, लेकिन वह अल्लाह के दूत और पैगम्बरों की मुहर यानी आखिरी पैगंबर है और अल्लाह को सभी चीजों का पूरा ज्ञान है. अरबी में ख़तम शब्द का अर्थ "सर्वश्रेष्ठ" भी होता है. इस अर्थ में, खतमुन नबीयीन वाक्यांश का अर्थ यह भी हो सकता है कि मुहम्मद (स) सभी पैगम्बरों में सर्वश्रेष्ठ हैं. इसी तरह कुरआन शरीफ के पांचवें चैप्टर सुरह अल- मायदा की आयत नंबर 3 में अल्लाह ने फरमाया है कि ‘‘…आज मैंने तुम्हारे दीन (इश्वरीय जीवन पद्धति) को तुम्हारे लिए पूरा कर दिया है और तुम पर अपनी नेमत पूरी कर दी और मैंने तुम्हारे लिए इस्लाम को तुम्हारे लिए दीन की हैसियत से क़बूल कर लिया है…''

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पैगंबर मुहम्मद (PBUH) ने कभी नहीं कहा, मैं नया मजहब लेकर आया हूं

खुद पैगंबर मुहम्मद ने अरब के लोगों से फरमाया था कि मैं कोई नया धर्म लेकर नहीं आया हूं, बल्कि वही धर्म (दीन) लेकर आया हूं, जो तुम्हारे बाप इब्राहीम का धर्म था. इसी तरह कुरआन शरीफ में भी पहले नबियों की कहानी, शिक्षाएं और दुआएं शामिल हैं. इससे ये साबित होता है कि पैगंबर मुहम्मद (PBUH) इस्लाम धर्म के प्रवर्तक नहीं, बल्कि आखिरी पैगंबर हैं. इस्लाम धर्म के अनुयायियों का माना है कि जिस ईश्वरीय शिक्षा की शुरुआत हजरत आदम (PBUH) से हुई थी, उसी ईश्वरीय शिक्षा को पूर्ण करने के लिए पैगंबर मुहम्मद साहब आए थे. वह इस दुनिया में कोई नया मजहब लेकर नहीं आए थे. इस तरह कुरआन शरीफ को पुरानी सभी किताबों का निचोड़ माना जाता है.

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हजरत मूसा और ईसा को भी पैगंबर मानते हैं मुसलमान

दरअसल, मुसलमान पहले पैगंबर हजरत आदम (PBUH)से लेकर आखिरी पैगंबर हजरत मुहम्मद (PBUH) तक सभी पैगंबरों को मानते हैं. हालांकि, इन सभी पैगंबरों का देश, काल और भाषाएं भी अलग-अलग भी अलग-अलग थी. इसके बावजूद मुसलमान किसी क्षेत्र, भाषा या नस्ल की आड़ में किसी पैगंबर का इनकार नहीं करते हैं. हालांकि, कुरआन में इनमें से मात्र 25 बड़े पैगंबरों के ही नाम दर्ज है. मुसलमानों का मानना ​​है कि मुहम्मद (PBUH) पैगंबरों (भविष्यवक्ताओं) की लंबी कतार में सबसे आखिरी थे, जिनमें हजरत इब्राहीम (PBUH), हजरत मूसा (PBUH), हजरत दाऊद (PBUH) और और हजरत ईसा (PBUH) भी शामिल हैं. इसके साथ ही मुसलमान ये भी मानते हैं कि इन सभी पैगंबरों को अल्लाह ने अपनी किताब दी थी. लिहाजा, मुसलमान उन सभी किताबों को ईश्वरीय किताब मानते हैं. हालांकि, इन किताबों की सिर्फ उन्हीं बातों को मानते है, जो कुरआन से टकराती नहीं है और इस्लामी ज्ञान की व्याख्या में सहायक है, लेकिन बाकी बातों को नहीं मानते हैं, क्योंकि मुसलमानों का मानना है कि इन किताबों को वक्त के साथ बदल दिया गया और इसमें कई ऐसी बातें भी शामिल कर दी गई हैं, जो पैगंबरों और अल्लाह की शान के खिलाफ है.

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हज का संबंध भी हजरत इब्राहीम (PBUH) से है

मुहम्मद (PBUH) इस्लाम धर्म के प्रवर्तक नहीं है. इसे समझने के लिए हज और बकर ईद का त्योहार ही काफी है. दरअसल, हज का संबंध हजरत इब्राहीम(PBUH) और हजरत इस्माइल नामक दो पैगंबरों से है. जदीद काबे की बुनियाद भी इन्हीं दोनों पिता-पुत्र पैगंबरों ने रखी थी. इसके अलावा, हज भी इन्हीं दोनों पिता-पुत्र (हजरत इब्राहीम (PBUH)और हजरत इस्माइल) और उनकी माता हजरत हाजरा (PBUH) की यादगार के तौर पर किया जाता है. हज के दौरान जो अरकान हैं. वह सभी हजरत इब्राहीम (जिसे ईसाई और यहूदी अब्राहम कहते हैं) के परिवार से जुड़ी यादों को ताजा कर देती है. खुद मुहम्मद (PBUH) मकाम ए  इब्राहीम पर नमाज पढ़ते थे. इसी तरह मुहर्रम के महीने की 10 तारीख को मदीने के यहूदी रोजा रखते थे, तो मुहम्मद (PBUH) ने पूछा कि तुम लोग इस दिन क्यों रोजा रखते हो, तो यहूदियों ने बताया कि इसी दिन हजरत मूसा को मिस्र के जालिम शासक फराओ पर विजय प्राप्त हुई थी और फराओं की फौज को अल्लाह ने नील नहीं में डुबो दिया था. इस पर मुहम्मद (PBUH) ने फरमाया था कि हजरत मूसा तुम से ज्यादा हम से करीब हैं, लिहाजा, हम अगले साल से दो रोजा रखेंगे.

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इससे भी साबित होता है कि हजरत इब्राहीम, हजरत मूसा और हजरत ईसा का वहीं धर्म था, जो पैगंबर मुहम्मद का था. यही वजह है कि यहूदी, ईसाई और इस्लाम तीनों का पूरा इतिहास एक जैसा है. बस इतना फर्क है कि यहूदी सभी पैगंबरों को मानते हैं, सिर्फ हजरत ईसा और हज़रत मुहम्मद को नहीं मानते हैं. इसी तरह ईसाई हजरत ईसा तक सभी पैगंबरों को मानते हैं, सिर्फ पैगंबर मुहम्मद (PBUH) को नहीं मानते हैं, जबकि मुसलमान हजरत आदम (PBUH)से लेकर हजरत मुहम्मद (PBUH) तक सभी को मानते हैं. 

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी इस्लामी शिक्षा (कुरआन और हदीस) से प्राप्त जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी ऐतिहासिक शिक्षा से पुष्टि नहीं करता है.)