International Tiger Day: MP को 'टाइगर स्टेट' बनाने में इनकी रही भूमिका, इस रिजर्व को UNESCO की सूची में मिली जगह

Tigers Day 2024: वर्ष 2010 में सेंट पीटर्सबर्ग शहर में आयोजित बाघ सम्मेलन में 2022 तक बाघों की आबादी दोगुनी करने का लक्ष्य रखा गया था. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए मध्य प्रदेश में कई बेहतरीन कदम उठाए गए और प्रदेश ने तय समय सीमा से पहले ही लक्ष्य को हासिल कर लिया.

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International Tiger Day 2024: मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में बाघों का बढ़ती आबादी प्रदेशवासियों के लिए गौरव का विषय है. मध्य प्रदेश ने समय सीमा से पहले ही बाघों की संख्या दोगुनी से ज्यादा कर ली है. इस सफलता के पीछे नेशनल पार्क (National Parks), टाइगर रिजर्व (Tiger Reserve) और सरकार (MP Government) के बीच सकारात्मक समन्वय और प्रबंधन का बेहतरीन योगदान है. वर्तमान में मध्य प्रदेश बाघों की संख्या के लिहाज से देशभर में सबसे आगे है. विश्व बाघ दिवस (Tiger Day 2024) के मौके पर हम आपको मध्य प्रदेश की इस सफलता के पीछे के कारणों के बारे में बताएंगे.

2010 में सेंट पीटर्सबर्ग में हुआ था सम्मेलन

दरअसल, वर्ष 2010 में सेंट पीटर्सबर्ग शहर में एक बाघ सम्मेलन किया गया था. इस सम्मेलन में बाघों की आबादी वाले 13 देशों ने वादा किया था कि वर्ष 2022 तक बाघों की आबादी दोगुनी करेंगे. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए मध्य प्रदेश में कई बेहतरीन कदम उठाए गए और प्रदेश ने तय समय सीमा से पहले ही लक्ष्य को हासिल कर लिया.

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बाघों की आबादी में इतनी वृद्धि

अब तक में बाघों की संख्या में 33% की सबसे बड़ी ग्रोथ देखने को मिली है, जो 2006 से 2010 के बीच 21% और 2010 और 2014 के बीच 30% थी. साल 2006 के बाद बाघों की संख्या में वृद्धि औसत वार्षिक वृद्धि दर के अनुरूप थी. मध्य प्रदेश में 526 बाघों की सबसे अधिक संख्या है. इसके बाद कर्नाटक में 524 बाघों की संख्या और 442 बाघों के साथ उत्तराखंड तीसरे नंबर पर था. मध्य प्रदेश के लिए गर्व का विषय है कि वर्ष 2022 की समय-सीमा से काफी पहले यह उपलब्धि हासिल कर ली है.

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तेंदुए की आबादी में भी MP आगे

वन्यजीव सुरक्षा के कारण  तेंदुओं की संख्या में भी मध्य प्रदेश देश में सबसे आगे है. देश में 12 हजार 852 तेंदुए हैं. अकेले मध्य प्रदेश में यह संख्या 4100 से ज्यादा है. देश में तेंदुए की आबादी औसतन 60% बढ़ी है, जबकि प्रदेश में यह 80% है. देश में तेंदुओं की संख्या का 25% अकेले मध्य प्रदेश में है.

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वन्य प्राणियों के रहवास का हुआ विस्तार

प्रदेश में बाघों की संख्या बढ़ाने में नेशनल पार्कों के बेहतर प्रबंधन की मुख्य भूमिका है. मध्य प्रदेश सरकार की सहायता से 50 से अधिक गांवों का विस्थापन किया गया है, इसके चलते बहुत बड़ा भू-भाग जैविक दबाव से खाली कराया गया है. वहीं संरक्षित क्षेत्रों से गांवों के विस्थापन के फलस्वरूप वन्य-प्राणियों के रहवास क्षेत्र का विस्तार हुआ है.

विस्थापन से हो रहे ये फायदे

कान्हा, पेंच, और कूनो पालपुर के कोर क्षेत्र से सभी गांवों को विस्थापित किया जा चुका है. सतपुड़ा टाइगर रिजर्व का 90 प्रतिशत से अधिक कोर क्षेत्र भी जैविक दबाव से मुक्त हो चुका है. विस्थापन के बाद घास विशेषज्ञों की मदद लेकर स्थानीय प्रजातियों के घास के मैदान विकसित किए जा रहे हैं. इससे शाकाहारी वन्य-प्राणियों के लिए सालभर चारा उपलब्ध रहेगा. इसके अलावा सभी संरक्षित क्षेत्रों में रहवास विकास कार्यक्रम चलाया जा रहा है.

प्रबंधन की रही अहम भूमिका

मध्य प्रदेश ने टाइगर राज्य का दर्जा हासिल करने के साथ ही राष्ट्रीय उद्यानों और संरक्षित क्षेत्रों के प्रभावी प्रबंधन में भी देश में शीर्ष स्थान प्राप्त किया है. सतपुड़ा टाइगर रिजर्व को यूनेस्को की विश्व धरोहर की संभावित सूची में शामिल किया गया है. वहीं भारत सरकार की टाइगर रिजर्व के प्रबंधन की प्रभावशीलता मूल्यांकन रिपोर्ट के अनुसार पेंच टाइगर रिजर्व ने देश में सर्वोच्च रैंक हासिल की है. बांधवगढ़, कान्हा, संजय और सतपुड़ा टाइगर रिजर्व को सर्वश्रेष्ठ प्रबंधन वाला टाइगर रिजर्व माना गया है. इन राष्ट्रीय उद्यानों में यूनीक मैनेजमेंट प्लान और नवाचारी तरीकों को अपनाया गया है.

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