India Rural Colloquy In Bhopal: मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के ग्रामीण क्षेत्रों के विकास के लिए आयोजित क्षेत्रीय संगोष्ठी 'इंडिया रुरल कोलोक्ची' का शुभारंभ किया गया. मैनिट भोपाल (MANIT Bhopal) के सभागार में आयोजित इस संगोष्ठी का शुभारंभ मध्य प्रदेश की कैबिनेट मंत्री निर्मला भूरिया (Cabinet Minister Nirmala Bhuria) ने किया. 'समृद्ध ग्रामीण मध्य प्रदेश' (Prosperous Rural Madhya Pradesh) की परिकल्पना के साथ आयोजित इस संगोष्ठी में मध्य प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों (Rural Areas of Madhya Pradesh) के सुसंगत विकास के लिए रणनीतियों पर चर्चा हुई. संगोष्ठी में मैग्सेसे अवॉर्ड से सम्मानित राजेन्द्र सिंह “जलपुरुष” और डायरेक्टर मैनिट विशेष अतिथि के रूप में शामिल हुए. संगोष्ठी का आयोजन आयोजन ट्रांसफॉर्म रूरल इंडिया (Transform Rural India) और मौलाना आजाद राष्ट्रीय तकनीकी संस्थान भोपाल (Maulana Azad National Institute of Technology, Bhopal) ने संयुक्त रूप से किया, जिसमें NDTV मीडिया पार्टनर के रूप में सहयोग दे रहा है.
पोषण को एक अभियान के रूप में बनाएंगे: निर्मला भूरिया
संगोष्ठी के दौरान कैबिनेट मंत्री निर्मला भूरिया ने अपने संबोधन में कहा कि हम लोग गांवों से निकल कर आए हैं और गांवों में ही रहते हैं, ये बताने की जरूरत क्यों पड़ रही है? शहरों के आकर्षण के कारण लोग शहरों की तरफ भाग रहे हैं, लेकिन भारत मूल रूप से ग्रामीण केंद्रित है. वह देश जहां सांस्कृतिक समृद्धि, एकजुटता और अपनी मिट्टी से जुड़ाव है. मुझे आज टीआरआई द्वारा ग्रामीण समृद्धि के लिए आयोजित इस कार्यक्रम में शामिल हो कर बड़ी खुशी महसूस हो रही है, जहां सब मिलकर समृद्ध ग्राम बनाने की दिशा मे एक नई रणनीति तैयार करेंगे.
मंत्री भूरिया ने कहा, "हम मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव के मार्गदर्शन और प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी के नेतृत्व में कुपोषण और महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य के मुद्दे से निपटने के लिए प्रतिबद्ध हैं. बाल और महिला कल्याण के लिए जिम्मेदार मैंने पोषण को एक अभियान के रूप में बनाने का निर्णय लिया है."
'जलपुरुष' राजेंद्र सिंह ने बताया प्रकृति का महत्व
वहीं 'जलपुरुष' राजेंद्र सिंह (Water Man Rajendra Singh) ने कहा कि हमारे देश में अब 72% जल संरचना सूखे की आशंका वाली है. भूजल पर निर्भर जीवनशैली ने इसे बदतर बना दिया है. जब किसी देश की आंखों का पानी सूखता है तो सरिताएं (नदियां ) भी सूख जाती हैं और फिर सभ्यताएं भी मुरझा जाती हैं. जल जीवन है, जीविका है और जमीन है. इस दर्शन और मूल को वापस लाने की जरूरत है. इस ज्ञान और कौशल को लाने की जरूरत है. सामुदायिक कार्य विकेन्द्रित स्तर पर करने की जरूरत है.
उन्होंने कहा कि समुदाय के पास विश्लेषण करने और कार्य करने के अपने तरीके हैं, लेकिन हमें सोते हुए मेढ़े को जगाना है. आशा यानी सोए हुए बीज को अंकुरित होने देना है. हमारा समाज स्थानीय समझ, सामान्य ज्ञान और चेतना से समृद्ध है और स्थानीय ज्ञान सहेजे हुए है. इसलिए प्रकृति को बनाए रखें और प्रकृति को प्यार देने के साथ ही इसका पोषण भी करें.
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