ग्वालियर सीट पर 'अपने' ही बने बड़ी चुनौती...बीजेपी-कांग्रेस दोनों के प्रत्याशी क्यों हैं परेशान?

ग्वालियर लोकसभा सीट पर भाजपा और कांग्रेस दोनों ने ही अपने उम्मीदवारों मैदान में उतार दिए हैं. लेकिन, दोनों का चुनाव अभियान ठीक से शुरू नहीं हो पा रहा है और इसकी वजह एक ही है, अपनों को साधना. एक तरफ BJP ने लगभग एक माह पहले ही अपने प्रत्याशी के नाम की घोषणा कर दी थी लेकिन अभी तक उनके प्रत्याशी भारत सिंह कुशवाहा अपने नेताओं को एकजुट करने में सफल नहीं हुए हैं वही कांग्रेस ने यहां अपने पूर्व विधायक प्रवीण पाठक को उम्मीदवार बनाया है तो उनके खिलाफ भी विरोध के स्वर खत्म नहीं हो रहे हैं.

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Lok Sabha Elections 2024: ग्वालियर लोकसभा सीट (Gwalior Lok Sabha Seat) पर भाजपा और कांग्रेस दोनों ने ही अपने उम्मीदवारों मैदान में उतार दिए हैं. लेकिन, दोनों का चुनाव अभियान (Election Campaign) ठीक से शुरू नहीं हो पा रहा है और इसकी वजह एक ही है, अपनों को साधना.  एक तरफ भारतीय जनता पार्टी ने लगभग एक माह पहले ही अपने प्रत्याशी के नाम की घोषणा कर दी थी लेकिन अभी तक उनके प्रत्याशी भारत सिंह कुशवाहा (Bharat Singh Kushwaha) अपने नेताओं को एकजुट करने में सफल नहीं हुए हैं वही कांग्रेस ने यहां अपने पूर्व विधायक प्रवीण पाठक (Praveen Pathak) को उम्मीदवार बनाया है तो उनके खिलाफ भी विरोध के स्वर खत्म नहीं हो रहे हैं.  दोनों ही प्रत्याशी फिलहाल अपनी पार्टी के रूठे और नाराज नेताओं को मनाने में जुटे हैं जिसके चलते प्रचार अभियान वैसी गति नहीं पकड़ पा रहा है जो आम तौर पर दिखाई देता है. यहां सात मई को मतदान होना है यानी एक महीने से कम वक्त बचा है. 

भाजपा ने पिछड़े पर क्यों लगाया दांव?

प्रत्याशी के नाम की घोषणा करने में भारतीय जनता पार्टी ने सबसे पहले बाजी मार ली थी ,उसने अपने मौजूदा सांसद विवेक नारायण शेजवलकर का टिकट काटकर 2022 में विधानसभा का चुनाव हारे पूर्व मंत्री भारत सिंह कुशवाहा को अपना प्रत्याशी घोषित किया है.पहली बार हुआ है जब भाजपा ने शहर की जगह ग्रामीण क्षेत्र के नेता को अपना प्रत्याशी बनाया है . यही नहीं अब तक सवर्ण प्रत्याशी पर दांव खेल कर लगातार जीत का रिकॉर्ड बनाती रही भाजपा ने पहली बार पिछड़ा वर्ग के कुशवाहा समाज से आने वाले भारत सिंह को मैदान में उतारा है.  इसकी वजह कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा ओबीसी को लेकर उठाई जा रही बातें मानी जा रही हैं.  

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राहुल गांधी पिछले दिनों भारत जोड़ो यात्रा के तहत ग्वालियर आए थे और उन्होंने पिछड़ी युवाओं से संवाद करके पूछा था कि उन्हें क्या मिला ?  माना जाता है कि इसी से घबराकर भाजपा ने ग्वालियर सीट पर पहली बार श्रवण की जगह पिछड़ा प्रत्याशी देने का निर्णय लिया हालांकि इसकी एक वजह यह भी है कि ग्वालियर क्षेत्र में कुशवाहा समाज के काफी वोटर हैं इसीलिए भाजपा ने कुशवाहा को ही टिकट देकर ओबीसी लोगों को रिझाने के लिए यह दांव खेला है.

शहर में सुस्त दिख रही है भाजपा

ग्वालियर संसदीय क्षेत्र में आने वाली आठ विधानसभा क्षेत्र में से साढ़े शहरी क्षेत्र में आते हैं . ग्वलियर पूर्व , ग्वलियर दक्षिण और ग्वालियर के अलावा ग्वलियर ग्रामीण का भी आधा हिस्सा शहर से जुड़ा है.  इन क्षेत्रों में शुरू से ही भारतीय जनता पार्टी की पकड़ मजबूत रही है अगर हम पिछले चार चुनाव देखें तो भाजपा की जीत की वजह शहरी क्षेत्र में मिलने वाली वोटो की बड़ी लीड ही रही है।  इसकी  इसकी एक वजह  यह भी है कि भाजपा अब तक इस सीट पर किसी शहरी सवर्ण को ही मैदान में उतरती रही है .  भाजपा ने अब तक यहां से जयभान सिंह पवैया, यशोधरा राजे सिंधिया, नरेंद्र सिंह तोमर और विवेक नारायण शेजवलकर को मैदान में उतारा.यह सभी शहरी पृष्ठभूमि के नेता हैं और सभी ने यहां जीत दर्ज की लेकिन पहली बार भाजपा ने ग्वालियर ग्रामीण से विधायक रह चुके पूर्व मंत्री भारत सिंह कुशवाहा को प्रत्याशी बनाकर नया प्रयोग किया है.  फिलहाल एक माह बीत जाने के बावजूद उनके प्रचार में वह जोश और उत्साह नजर नहीं आ रहा जैसा सदैव आता रहता था.  उन्हें शहरी नेताओं और कार्यकर्ताओं का कोई खास समर्थन नहीं मिल पा रहा है, इसकी वजह यही है कि एक तो शहरी नेता को टिकट न मिलने से पार्टी के कार्यकर्ताओं में उत्साह की जगह निराशा का भाव है ,वही भारत सिंह का शहरी कार्यकर्ता और नेताओं से कोई पुराना खास समन्वय भी नहीं है. फिलहाल वे अपने नेताओं के घर-घर जाकर उन्हें मनाने और पटाने में ही व्यस्त हैं हालांकि पार्टी का संगठन जिला और मंडल की बैठके कर चुका है लेकिन उसमें भी कार्यकर्ता कम संख्या में तो पहुंचे ही उनमें कोई जोश और जुनून नजर नहीं आया   इस बात को लेकर भाजपा में ग्वालियर से लेकर भोपाल तक चिंता है.

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चुनाव कार्यालय उदघाटन का दांव भी नहीं चला

इस चिंता के चलते पार्टी में एकजुटता दिखाने के लिए फटाफट भोपाल में रणनीति बनाई गई और ग्वालियर में चुनाव कार्यालय के बहाने उद्घाटन के बहाने एकजुटता दिखाने का निर्णय लिया गया इसीलिए  विगत दिनों ग्वालियर में भारत सिंह का चुनाव कार्यालय का उद्घाटन बड़े भव्य समारोह के रूप में आयोजती हुआ इसमें केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ,वर्तमान सांसद विवेक नारायण शेजवलकर पूर्व गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा कैबिनेट मंत्री नारायण सिंह कुशवाहा से लेकर हर छोटे बड़े नेता को मंच पर स्थान दिया गया.

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इसका  मकसद शहर में चल रही गुटबाजी की खबरों से परेशान और हतोत्साहित पार्टी कार्यकर्ताओं को उत्साहित करना था हालांकि इस आयोजन के बाद भी स्थिति में कोई खास अंतर नजर नहीं आ रहा है.

भाजपा आलाकमान इसको लेकर काफी चिंतित तो है लेकिन अभी तक कोई रास्ता नहीं निकाल सका है. 

ग्वालियर में कांग्रेस प्रत्याशी के सामने भी अपनों को मनाने की चुनौती है

कांग्रेस में भी गंभीर अंतरकलह 

कांग्रेस ने भी इस बार भाजपा की वजह से अपनी रणनीति में ऊपर से नीचे तक बदलाव कर दिया है ग्वालियर संसदीय क्षेत्र में पिछड़ा वर्ग बड़ी संख्या में है और उनमें से कुशवाहा को छोड़कर अधिकांश जातियां कांग्रेस के समर्थन में रहती हैं.यही वजह है कि अगर इक्का - दुक्का अपवादों को छोड़ दिया जाए तो कांग्रेस यहां से सिर्फ पिछड़ा वर्ग के ही कैंडिडेट उतारती रही है. लेकिन इस बार भाजपा ने पिछड़ा प्रत्याशी उतारा तो कांग्रेस ने भी अपनी लीक बदलते हुए सवर्ण प्रत्याशी मैदान में उतार दिया. कांग्रेस ने ब्राह्मण वर्ग से आने वाले प्रवीण पाठक को प्रत्याशी बनाया है. ग्वालियर सीट में ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या भी अच्छी खासी है. 

इसीलिए कांग्रेस ने ब्राह्मण कैंडिडेट दिया लेकिन पाठक के लिए चुनाव प्रचार को गति देना आसान नजर नहीं आ रहा है.इसकी वजह उनकी जिले के कांग्रेस नेताओं से पटरी न बैठ पाना है.ग्वालियर दक्षिण विधानसभा क्षेत्र से विधायक रहे पाठक के टिकट की चर्चा चली तो शहर जिला कांग्रेस के अध्यक्ष डॉ देवेंद्र शर्मा ने तो हाई कमान को चिट्ठी लिखकर ही चेतावनी दे दी थी कि अगर पाठक को प्रत्याशी बनाया गया तो वह अध्यक्ष पद छोड़ देंगे.

पाठक के नाम का ऐलान होने के बाद भी उन्होंने कहा कि वह अपनी बात पर अडिग हैं और चुनाव के बाद अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे देंगे.डॉक्टर शर्मा अकेले नहीं है बल्कि ज्यादातर प्रमुख नेता पाठक से नाराज हैं हालांकि नाम घोषित होने के बाद से ही प्रवीण पाठक लगातार अपने नेताओं से मिलकर उनकी नाराजी दूर करने की कोशिशें में लगे हुए हैं लेकिन उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती समय की भी है क्योंकि उनका टिकट काफी विलंब से घोषित हुआ है और फिर जिले में कांग्रेस और स्वयं पाठक का भी अपना कोई खास नेटवर्क नहीं है इसलिए उनके सामने यह बड़ी चुनौती है कि वह कैसे पूरे संसदीय क्षेत्र में अपने प्रचार अभियान को गति दें ऐसे में उनके शुरुआती दिन तो पार्टी के रूठे नेताओं और कार्यकर्ताओं को मनाने में ही जाया हो रहा है.

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