Shivpuri Dalit youth beaten up: शिवपुरी जिले के दिनारा थाना क्षेत्र के सलैया डामरौन गांव में बुधवार रात 8 बजे, 35 साल के भाईसाहब जाटव की सांसें थम गईं. वजह, इंसान का इंसान पर गुस्सा, जातीय अहंकार और पुरानी दुश्मनी. आरोप है कि पाल समाज के चार लोगों ने उन्हें पहले घर में बंधक बनाया, रस्सियों से बांधा और फिर लाठी-डंडों से पीट-पीटकर मौत के घाट उतार दिया. पुलिस के रिकॉर्ड में यह बस "धारा 302" का केस है, मगर इंसानियत की नजर से देखें तो ये हमारे समाज को हिलाकर रख देने वाली डरावनी सच्चाई है.
पुराने विवाद को लेकर था गुस्सा
बताया जा रहा है कि भाईसाहब जाटव और रामजीलाल पाल के परिवार के बीच पुराना विवाद था. हाल ही में भाईसाहब ने रामजीलाल के पिता के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणी कर दी. शब्द तीर की तरह लगे और नाराज़गी ने आग पकड़ ली. लेकिन सवाल यह है- क्या कोई टिप्पणी इतनी भारी हो सकती है कि इंसानियत को कुचल दे? गुस्से की ज्वाला इतनी अंधी हो सकती है कि एक आदमी की जान ले ले.
बंधक बनाकर बेरहमी से पीटा
गांववालों के मुताबिक, रामजीलाल और उसके परिवार ने साजिश के तहत भाईसाहब को घर में कैद किया और फिर बेरहमी से पीटते रहे. नतीजा यह हुआ कि उनके पास बचने का कोई रास्ता ही नहीं रहा. वहीं पुलिस ने चार नामजद आरोपियों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया है. लेकिन सभी आरोपी फिलहाल फरार हैं और पुलिस सभी की तलाश में जुटी है. शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया है और गांव में तनाव पसरा हुआ है.
क्या जान से बड़ी है जाति?
यह घटना हमें सोचने पर मजबूर करती है. आखिर इस समाज में इंसान की जान की कीमत इतनी सस्ती कब हो गई? क्या गुस्सा इतना हावी हो गया कि इंसानियत का नामो-निशान मिटा दिया जाए? या फिर यह सब उस मानसिकता का नतीजा है, जो सदियों से खुद को दूसरे से ऊंचा साबित करने की ज़िद के लिए समाज में ज़हर घोल रही है? भाईसाहब जाटव का कसूर शायद इतना ही था कि उन्होंने कुछ ऐसा कह दिया जो सामने वाले को नागवार गुज़रा. लेकिन क्या कोई शब्द, कोई टिप्पणी, किसी की ज़िन्दगी से बड़ी हो सकती है? समाज में यह पहली घटना नहीं, शायद आखिरी भी नहीं होगी. आए दिन ऐसी खबरें आती हैं जहां एक पल का गुस्सा, जात का अभिमान या पुरानी दुश्मनी किसी घर का चिराग बुझा देती है. भाईसाहब जाटव अब इस दुनिया में नहीं हैं. मगर उनकी मौत हमें आईना दिखाती है कि समाज को अब भी सीखना बाकी है- गुस्से और जातीय अहंकार से बड़ी चीज़ इंसानियत है. अगर यह सबक हमने नहीं सीखा, तो कल किसी और घर से भी यही चीखें उठेंगी.
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