एमपी में बड़ा फैसला: अब जनता सीधे चुनेगी नगरपालिका अध्यक्ष, 'राइट टू रिकॉल' की अवधि बढ़ी

MP Assembly Winter Session: एमपी विधानसभा के शीतकालीन सत्र में एक बड़ा फैसला लिया गया है, जिसके तहत अब जनता सीधे नगरपालिका अध्यक्ष को चुनेगी. इसके साथ ही, प्रतिनिधियों को हटाने वाले 'राइट टू रिकॉल' प्रावधान की समयसीमा को भी ढाई साल से बढ़ाकर तीन साल कर दिया गया है.

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MP Nagar Palika Election: मध्य प्रदेश में अब नगरपालिका-परिषद अध्यक्षों का चुनाव जनता सीधे करेगी. दरअसल इस संबंध में विधानसभा में आज यानि 2 दिसंबर को नगर पालिका संशोधन विधेयक 2025 को ध्वनि मत से पास किया गया. इस बदलाव के बाद, जनता अब सीधे अपने अध्यक्ष का चुनाव करेगी, जिससे नगरीय निकायों में जवाबदेही और सशक्त होगी. हालांकि इस संशोधन विधेयक में 'राइट टू रिकॉल' की समयसीमा बढ़ाए जाने को लेकर बीजेपी और कांग्रेस सदस्यों में तीखी बहस हुई. जिसके बाद 'राइट टू रिकॉल' की समयसीमा ढाई साल से बढ़ाकर तीन साल कर दिया गया. 

 2027 नगरीय निकाय चुनाव से लागू होगी 'प्रत्यक्ष प्रणाली'

मुख्यमंत्री मोहन यादव की कैबिनेट ने पहले ही इस चुनावी प्रक्रिया को हरी झंडी दे दी थी. नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने विधानसभा में यह बिल प्रस्तुत किया, जिसे सदन ने बहुमत से पास कर दिया. इस संशोधन के बाद, मध्य प्रदेश में 2027 में होने वाले नगरीय निकाय चुनावों में अध्यक्षों के चुनाव की प्रक्रिया अब प्रत्यक्ष प्रणाली (सीधे जनता द्वारा) से ही पूरी करवाई जाएगी.

सरकार का कहना है कि यह कानून मूल रूप से पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा परिकल्पित स्थानीय निकायों को अधिक अधिकार देने और जनता को जवाबदेह शासन प्रदान करने के उद्देश्य को पूरा करता है.

'राइट टू रिकॉल' की समयसीमा बढ़ी, पक्ष-विपक्ष में तीखी बहस

विधेयक में किए गए संशोधनों में 'राइट टू रिकॉल' की समयसीमा बढ़ाए जाने को लेकर बीजेपी और कांग्रेस के विधायकों में तीखी बहस देखने को मिली। 'राइट टू रिकॉल' वह प्रावधान है जिसके तहत जनता अपने चुने हुए प्रतिनिधि को उसके कार्यकाल के दौरान हटाने की मांग कर सकती है. संशोधन के तहत, पहले नगरपालिका अध्यक्ष या पार्षद को हटाने की प्रक्रिया शुरू करने के लिए ढाई साल पूरे होना आवश्यक था, जिसे अब बढ़ाकर तीन साल कर दिया गया है. नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने सदन में तर्क दिया कि शुरुआती दो-ढाई वर्षों में किसी भी प्रतिनिधि को काम दिखाने का पर्याप्त समय नहीं मिल पाता, इसलिए तीन साल की अवधि अधिक न्यायसंगत होगी.

कांग्रेस ने नहीं किया विरोध, सुझाव भी दिए

दूसरी ओर, विपक्ष (कांग्रेस) ने बदलाव का विरोध करने के बजाय इसे और बेहतर बनाने के लिए सुझाव दिए. विपक्ष ने आग्रह किया कि राइट टू रिकॉल प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए नियमावली को स्पष्ट और व्यावहारिक बनाया जाए, ताकि जनता को वास्तविक शक्ति मिल सके और दुरुपयोग की गुंजाइश न रहे. 

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