Holi 2025: बुंदेलखंड के 2 हजार गांवों में होली के बाद 3 दिनों तक छिपते फिरते हैं पुरुष! क्या है मान्यता?

Holi 2025: बुंदेलखंड की इस होली के बारे में पूर्व विधायक प्रदुम्न सिंह लोधी बताते हैं कि इस परंपरा को बुंदेलखंड में बड़े उत्साह के साथ लोग मानते हैं. कहते हैं, लाठी खाने के बाद मिठाई खिलाने जैसी अनूठी परंपरा से भाईचारा मजबूत होता है.

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Holi 2025: बुंदेलखंड की होली

Holi 2025: बुंदेलखंड (Bundelkhand) में होली (Holi) के दिन से ही होली शुरुआत हो जाती है, होलिका दहन (Holika Dahan) के बाद एक दिन कीचड़ की होली मनाई जाती है, लेकिन भाई दूज के बाद रंग की होली मनाई जाती है. इसमें खास तौर से गांव की महिलाएं एक झुंड बनाकर एवं गांव के लोग इकट्ठा होकर पूरे गांव में घूमते हैं. इस दौरान फाग गाते हैं और रंग लगते हैं, इसमें जो महिलाएं होती हैं वह लठमार होली होती है, क्योंकि इनका मानना है कि लाठियों में प्रेम है तो ताकत भी है. इसमें आत्मरक्षा का भाव भी पैदा होता है. पहीं पुरुषों को पीटने वाली महिला के घर मिठाई भेजी जाती है.

बुंदेलखंड की लठमार होली

यह लठमार होली बुंदेलखंड के छतरपुर, पन्ना, टीकमगढ़, सागर एवं उत्तर प्रदेश के जालौन, हमीरपुर और महोबा के  गांवों में मनाई जाती है. महिलाएं लठ लेकर निकलती हैं और गांव के पुरुष उनसे बचने के लिए भागते हैं. होली को रोचक बनाए रखने के लिए कुछ पुरुष छिप-छिपकर महिलाओं पर रंग डालते हैं. महिलाएं पुरुषों को ललकार कर खदेड़ती हैं. गांवों में पुरुष छिपते फिरते रहते हैं, यह सिलसिला तीन दिन तक चलता रहता है, ध्यान रखा जाता है कि लाठी हाथ या पैर पर ही लगे, सिर पर नहीं. इसके बाद पुरुष उस महिला के घर मिठाई भेजकर यह विश्वास दिलाता है कि उसे कहीं कोई चोट नहीं लगी है.

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महिलाएं जिस तरह लाठी भांजती है, वह युद्धक तरीके जैसा है. इस कारण, इसे स्त्रियों के युद्ध पारंगत होने की रानी लक्ष्मीबाई की मुहिम से भी जोड़ते हैं. रविंद्र अरजरिया कहते हैं कि परंपरा शुरू होने की जानकारी नहीं है, लेकिन बुंदेलखंड की भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार इसे आत्मरक्षा के गुर सीखने से जोड़ा जाता है. तब लाठी ही बचाव का प्रमुख हथियार थी.

वरिष्ठ पत्रकार राकेश शुक्ला बताते हैं कि उसे समय यह नारी सशक्तीकरण की परंपरा है को इस परंपरा से जोड़ा गया था जिससे नारियां सशक्तिकरण की ओर चले कई बार पुरुषों की टोली पीछे हटी है.

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